महादेव शिव और देवी पार्वती का एक दूसरे के प्रति अत्यन्त दृढ़ प्रेम है जो किसी भी तरह नहीं टूट सकता, लेकिन साधारण मनुष्यो के भाँती ही भगवान शिव और देवी पार्वती में भी छोटी-बड़ी नोक-झोक होती रहती है। परन्तु एक दिन भगवान शिव और देवी पार्वती के बीच की लड़ाई इतनी बड़ी हो गई की भगवान शिव ने अपने प्राणो से भी प्रिय माता पार्वती को श्राप दे डाला।
माता पार्वती हमेशा भगवान शिव से जन्म मृत्यु के भेद इनके बन्धनों से मुक्ति तथा अमरत्व के युक्ति के संबंद्ध में सवाल किया करती थी तथा उनका वृत्तांत पूछा करती थी। इन सवालों के संबंध में भगवान शिव के उत्तर इतने लम्बे होते थे की इन उत्तरो के बीच-बीच में माता पार्वती को नींद की झपकियाँ आ जाती थी।
एक दिन किसी कारण भगवान शिव का स्वभाव उखड़ा हुआ था तथा देवी पार्वती उनके पास आकर वेदो के बारे में पूछने लगी। शिव ने जब उनसे किसी और दिन इस विषय में चर्चा करने की बात कही तो देवी पार्वती जिद करने लगी। अंत में देवी पार्वती के जिद के आगे विवश होकर भगवान शिव उन्हें वेदो का ज्ञान देने लगे। इसी बीच माता पार्वती को नींद आ गई, जब भगवान शिव की नजर माता पार्वती पर पड़ी तो वे क्रोधित हो गए तथा क्रोध में आकर उन्होंने माता पार्वती को भीलनी का श्राप दे डाला।
माता पार्वती को श्राप देकर भगवान शिव उस स्थान से कही एकांत में ध्यान करने चले गए। जब उनकी ध्यान साधना टूटी तो माता पार्वती की खोज करते हुए वे कैलाश पर्वत आये तथा माता पार्वती को खोजने लगे। परन्तु माता पार्वती उन्हें कैलाश में कही नहीं मिली क्योकि वे भगवान शिव के श्राप के कारण भील के पुत्री के रूप में धरती में जन्म ले चुकी थी। भगवान शिव पार्वती को न पाकर विचलित हुए परन्तु उसी समय नारद जी उनके सामने प्रकट हुए तथा उन्हें दिलासा दी।
धीरे-धीरे समय बिता तथा जब माता पार्वती विवाह के योग्य हुई तो भगवान शिव ने अपने गण नंदी को एक महत्वपूर्ण उद्देश्य से धरती पर भेजा। नंदी ने एक बहुत ही विशाल मछली का रूप धरा तथा उस नदी में उत्पात मचाना शुरू कर दिया जहा भील कबीले के लोग मछलियाँ पकड़ते थे। माता पार्वती के पिता भील कबीले के मुख्या थे तथा उन्होंने अपनी पुत्री का विवाह उस व्यक्ति से करने का प्रस्ताव रखा जो उन्हें नदी में उत्पात मचा रही भयानक मछली से मुक्ति दिलाएगा। तब भगवान शिव भील का रूप धारण कर नदी के समीप गए तथा नंदी रूपी उस विशाल मछली को वश में कर उसे वहाँ से भगा दिया। शर्त के अनुसार भील कबीले के मुखिया ने अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव से कराया तथा इस तरह भगवान शिव और माता पार्वती का पुनः मिलन हुआ ।
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