राम की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेहरूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुगरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। हे गिरिर...
राम की कथा हाथ की सुंदर ताली है, जो संदेहरूपी पक्षियों को उड़ा देती है। फिर रामकथा कलियुगरूपी वृक्ष को काटने के लिए कुल्हाड़ी है। हे गिरिराजकुमारी! तुम इसे आदरपूर्वक सुनो।
वाल्मीकि रामायण या तुलसीदास लिखित रामचरितमानस पूरी कथा पढ़ लेने मात्र से जीवन-दर्शन का संपूर्ण उत्तर मिल सकता है। श्रद्धावान के लिए वह धर्म-कथा है, साहित्य-कला प्रेमी के लिए वह क्लासिक साहित्य भी है, किंतु दर्शन, राजनीति, नैतिकता और सामंजस्यपूर्ण व्यवहार के सूत्र खोजनेवाले बुद्धिवादी के लिए भी रामचरितमानस में प्रचुर सामग्री है। आज भी सभी के लिए सर्वोत्तम आदर्श हैं राम।
गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं —
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
झषाणां मकरश्चास्मि स्रोतसामस्मि जाह्नवी।।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं मैं पवित्र करने वालों में वायु और शस्त्रधारियों में राम हूं, मछलियों में मगरमच्छ और नदियों में श्री भागीरथी गंगा हूं। अत: जैसे वायु, मगरमच्छ और महान नदियों का महत्व मानवमात्र के जीवन के लिए यथावत है, उसी तरह आज भी शस्त्रधारियों, वीरों, राजपुरुषों के सर्वोत्तम आदर्श राम ही हैं।
एक महात्मा जी सुडौल शरीर अच्छी कद काठी किसी गांव से जा रहें थे। गांव के संज्जन महात्मा जी को देखते ही सोचने लगे कि महात्मा जी की शरीर देखकर लगता है कि खूब मेवा मलाई खा रहे हैं करना धरना कुछ है नहीं, महात्मा बनने में ही फायदा है। वे संज्जन महात्मा जी के पास पहुंचे कि गुरु जी हमें भी अपना शिष्य बना लो, आप जो कहेंगे वह करुंगा, और राम राम भी जपता रहूंगा।
गुरु जी सरल सहज स्वभाव के ठीक है आ जाओ। कुछ दिन बाद गुरु जी से शिष्य ने कहा कहा कि गुरु देव हमें भी कुछ धर्म कर्म साधन का उपदेश दे देते तो बड़ी कृपा होती।
गुरु देव ने कह दिया कि रामचरितमानस का पाठ करो कल्याण हो जायेगा। नहीं गुरु जी यह तो सभी करते हैं उससे कुछ उपर।
फिर गुरु देव ने कहा कि गीता का पाठ करो, यह तुम्हारा कल्याण कर देंगी। हां गुरुजी यह अच्छा रहेगा लेकिन कुछ आज आप ही सुना दीजिए।
शास्त्रोपनिषदः गावो दोग्धा गोपाल नन्दनः।
पार्थः वत्स सुधीः भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत्।।
शिष्य वाह गुरूजी वाह क्या बात कहीं है, बेचारे महात्मा जी भी खुश कि समझ दार शिष्य मिला है। कथा समाप्त कर गुरु जी पूछते हैं कि बेटा कुछ समझ में आया कि नहीं। गुरु देव समझ तो सब गया लेकिन एक शंका है कि आप ने कहा कि — दोग्धा गोपाल नन्दनः । ये दो गधे कोन है कृपया बतानें का कष्ट करें।
बेचारे गुरु देव तो माथा ही पकड़ कर बोलें कि बेटा एक गधा तुम हों और दूसरा मैं हूं। शायद मैं ग़लत रास्ते पर चल रहा हूं, आइए मुख्य श्लोक की बात करें।
भगवान ने कहा है कि सभी उपनिषद् गाय हैं और उनको दुहने वाला गोपाल नंदन श्री कृष्ण है।पार्थ अर्थात अर्जुन उस दूध रूपी सुधीर को भोगने वाला या पीने वाला है जो कि गीता का महान अमृत है।"
चारों वेदों (मूलतः तीन ही क्योंकि अथर्वेद में अधिकांश मन्त्र और ऋचाएं कहीं न कहीं प्रमुख तीन वेद सामवेद,ऋग्वेद और यजुर्वेद से ही सम्बन्ध रखती हैं) में वर्णित सकाम विधि विधान मूलतः अपने आप को पुष्ट करने,धन धान्य ऐश्वर्य से पूरित होने और अंततोगत्वा स्वर्ग तक जाने का रास्ता ही प्रतिपादित करते हैं ! जहाँ से कि पुनः वापस आना पड़ता है।तथापि कृष्ण की भक्ति से जहाँ एक तरफ अभीष्ट की प्राप्ति तो स्वतः ही होती है वहीं दूसरी तरफ ऊपर जा कर पुनः नीचे आने की संभावना भी समाप्त हो जाती है।
राम कथा सुंदर कर तारी।
संसय बिहग उडा़वनिहारी।।
एक कहानी याद आ रही है —
एक बार एक गुरु जी एक गांव में राम कथा सुना रहे थे, उस समय आवागमन के साधन नहीं थे, बैलगाड़ी ही साधन हुआ करती थी।
सात द्विवसीय कथा के समापन पश्चात गुरु देव बैलगाड़ी से अपने जो भी पूजा पाठ में चढ़ावा मिला था लेकर निवास स्थान की तरफ प्रस्थान करते हैं। पूरा गांव बिदाई समारोह में नम्र आंखों से गुरु जी की विदाई करते हैं।
तत्पश्चात् चर्चा चलती है कि गुरु जी ने कथा बहुत अच्छी कहीं। राम जैसा राक्षस और रावण जैसा देव पुरुष वाह वाह कथा में मजा आ गया। एक संज्जन महात्मा बोले कि भाई आप ग़लत बोल रहे हो, राम जैसा देवपुरुष रावण जैसा राक्षस।
बात काफी आगे बढ़ गई, दोनों तरफ आधे आधे गांव वाले मारामारी की नौबत आ गई। तब एक बुजुर्ग संज्जन ने कहा कि गुरु जी अभी ज्यादा दूर नहीं गए होंगे उन्हीं से पूछ लिया जाए कि राक्षस एवं भगवान कौन थे।
पूरा गांव दौड़ पड़ा। अपनी तरफ़ आती भीड़ देख गुरु जी सोचें लगता है कि कुछ दान दक्षिणा छूट गया है। गाड़ी बगल में खड़ी करके बैठ गए तो गांव वालों ने अपनी समस्या गुरु जी को सुनाई। गुरु जी बेचारे क्या करें, अंत में कहना ही पड़ा, न राम राक्षस और न रावण, सबसे बड़े राक्षस हम और आप हैं।
देखिए यहां हमारा उद्देश्य कहानी सुनना नहीं है , हम केवल इतना ही कहना चाहते है कि स्वयं भगवान शिव जी कहते हैं अर्थात शिववाक्य है कि —
"संसय बिहग उडा़वनिहारी"
यदि राम कथा या कोई भी कथा सुनने के बाद संसय नहीं रहता।यदि आप के मन में संसय है तो कथा सुनने का कोई मतलब नहीं है, या आपने अपना समय बर्बाद किया, आप का ध्यान कथा पर था ही नहीं ।
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