पुराणों में एक कथा विख्यात है, जिसके अनुसार एक बार देवऋषि नारद श्री कृष्ण से मिलने धरती पर पधारे थे। उस समय उनके हाथों में परिजात के सुन्द...
पुराणों में एक कथा विख्यात है, जिसके अनुसार एक बार देवऋषि नारद श्री कृष्ण से मिलने धरती पर पधारे थे। उस समय उनके हाथों में परिजात के सुन्दर पुष्प थे और उन्होंने वे पुष्प श्री कृष्ण को भेंट में दे दिए। कृष्ण ने वे पुष्प साथ में बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को सौंप दिए लेकिन जब ये बात कृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा को पता लगी तो वो क्रोधित हो उठी और कृष्ण से अपनी वाटिका के लिए परिजात वृक्ष की मांग की।
कृष्ण के समझाने पर भी भामा का क्रोध शांत नहीं हुआ और अंत में अपनी पत्नी की जिद के सामने झुकते हुए उन्होंने अपने एक दूत को स्वर्गलोक में परिजात वृक्ष को लाने के लिए भेजा पर उनकी यह मांग पर इंद्र ने इंकार कर दिया और वृक्ष नहीं दिया। जब इस बात का संदेश कृष्ण तक पहुंचा तो वे रोष से भर गए और इंद्र पर आक्रमण कर दिया। युद्ध में कृष्ण ने विजय प्राप्त की और इंद्र से परिजात वृक्ष ले आए। पराजित इंद्र ने क्रोध में आकर परिजात वृक्ष पर कभी भी फल ना आने का श्राप दिया इसीलिए इस वृक्ष पर कभी भी फल नहीं उगते।
वादे के अनुसार कृष्ण ने उस वृक्ष को लाकर सत्यभामा की वाटिका में लगवा दिया लेकिन उन्हें सबक सिखाते हुए कुछ ऐसा किया जिस कारण रात को वृक्ष पर पुष्प तो उगते थे लेकिन वे उनकी पहली पत्नी रुक्मणी की वाटिका में ही गिरते थे। इसीलिए आज भी जब इस वृक्ष के पुष्प झड़ते भी हैं तो पेड़ से काफी दूर जाकर गिरते हैं।
वर्तमान में पारिजात का पेड़ उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले के किन्तूर गांव स्थित है। इस गांव का नाम पांडवों की माता कुंती के नाम पर किन्तूर पड़ा। इसी गांव में पारिजात का ऐतिहासिक पेड़ स्थित है। यह पेड़ कई मायनों में बेहद खास है। इस पेड़ पर सफेद रंग के फूल आते हैं जो कि सूखने पर सुनहले हो जाते हैं। यह फूल रात को खिलते हैं और सुबह मुरझा जाते हैं। रात में जब पारिजात के फूल खिलते हैं तो उनकी सुगंध दूर दूर तक फैल जाती है।
किन्तूर गांव के इस पारिजात पेड़ की जांच कई बार वनस्पति विज्ञानियों ने की है। जिन्होंने इसे असाधारण करार दिया है। वनस्पति वैज्ञानिकों के मुताबिक परिजात के इस पेड़ को ‘ऐडानसोनिया डिजिटाटा’ के नाम से जाना जाता है। इसे एक विशेष श्रेणी में रखा गया है क्योंकि यह अपने फल या उसके बीज का उत्पादन नहीं करता है। यही नहीं इसकी शाखा या कलम से एक दूसरा परिजात वृक्ष भी नहीं लगाया जा सकता। वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार यह एक यूनिसेक्स पुरुष वृक्ष है। ऐसा कोई पेड़ और कहीं नहीं मिला है। इस पेड़ के बारे में एक और खास बात कही जाती है कि इसकी शाखाएं टूटती या सूखती नहीं हैं। बल्कि पुरानी हो जाने के बाद सिकुड़ते हुए मुख्य तने में ही गायब हो जाती हैं।
पारिजात में फूल लगते तो हैं, लेकिन बहुत कम संख्या में। इस पेड़ में जून के महीने(गंगा दशहरा के समय) फूल आते हैं। लेकिन इनकी संख्या बेहद कम होती है। कुछ खास ही लोगों को इसके फूल मिल पाते हैं। इसके पुष्पों की गंध रात में दूर तक फैलती है। इस पेड़ की पत्तियां भी बेहद खास हैं। पारिजात पेड़ के निचले हिस्से में पत्तियां हाथ की उंगलियों की तरह पांच युक्तियों वाली होती है। जबकि पेड़ के उपरी हिस्सों में यही पत्तियां सात युक्तियों वाली हो जाती हैं।
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