एकादशी व्रत क्यों ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

शास्त्रों में कहा गया है- आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु। बुद्धिं तु। सारथि विद्धि येन श्रेयोऽहमाप्नुयाम ॥ 

  अर्थात्, आत्मा को रथी जानो, शरीर को रथ और बुद्धि को सारथी मानो। इनके संतुलित व्यवहार (आचरण) से ही श्रेय अर्थात श्रेष्ठत्व की प्राप्ति होती है। इसमें इंद्रियों का अश्व तथा मन का लगाम होना भी अंतनिर्हित है। ऋषियों ने अन्य मंत्रों में इसका भी जिक्र किया है। इस प्रकार दस इन्द्रियों के बाद मन को भी ग्यारहवीं इन्द्रिय शास्त्र ने माना है। अतएव इंद्रियों की कुल संख्या एकादश होती है।

  एकादशी तिथि को मनःशक्ति का केन्द्र चन्द्रमा क्षितिज की एकादशवों कक्षा पर अवस्थित होता है। यदि इस अनुकूल समय में मनोनिग्रह की साधना की जाए तो वह सद्यः फलवती सिद्ध हो सकती है। इसी वैज्ञानिक आशय से ही एकादशेन्द्रियभूत मन को एकादशी तिथि के दिन धर्मानुष्ठान एवं व्रतोपवास द्वारा निग्रहीत करने का विधान किया गया है। यदि सार रूप में कहा जाए तो एकादशी व्रत करने का अर्थ है अपनी इंद्रियों पर निग्रह करना।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top