अर्थात्, पुरुषार्थ से मिलने वाली यश बहुत बड़ी संपति है लेकिन कभी कभी पुरुषार्थी व्यक्ति को भी भाग्य के समक्ष नतमस्तक होना पड़ता है। भाग्य ...
अर्थात्, पुरुषार्थ से मिलने वाली यश बहुत बड़ी संपति है लेकिन कभी कभी पुरुषार्थी व्यक्ति को भी भाग्य के समक्ष नतमस्तक होना पड़ता है। भाग्य के चलते ही भीम जैसे पुरुषार्थी को रहा विराट के यहां रसोइया बनना पड़ा था।
भावार्थ:-
कुछ लोग सोचते है कि उनको कितनी मेहनत करें पर कोई लाभ नहीं होगा उनका यह सोचना गलत है अगर हम अपने कार्य में नियमित रूप से लगे रहें अपने मन को इधर_उधर न भागने दे तो हमें सफलता अवश्य मिलेगी।
एक दुकानदार बड़ा दुखी रहता था। क्यूंकी उसका बेटा बहुत आलसी था। वह अपने पुत्र को एक मेहनती इंसान बनाना चाहता था। एक दिन उसने अपने पुत्र से कहा कि आज तुम घर से बाहर जाओ और शाम तक कुछ अपनी
मेहनत से कमा के लाओ नहीं तो आज शाम को खाना नहीं मिलेगा - लड़का पहुत परेशान हो गया वह रोते हुए अपनी माँ के पास गया और उन्हें रोते हुए सारी बात बताई माँ का दिल पासीज गया और उसने उसे एक सोने का सिक्का दिया कि जाओ और शाम को
पिताजी को दिखा देना। शाम को जब पिता ने पूछा की क्या कमा कर लाए हो तो उसने वो सोने का सिक्का दिखा दिया यह देखकर उसने पुत्र से वो सिक्का कुएँ मे डालने को कहा, लड़के ने खुशी खुशी सिक्का कुएँ में फेंक दिया अगले दिन पिता ने माँ को अपने मायके भेज दिया और लड़के को फिर से कमा के लाने को कहा। अबकी बार लड़का रोते हुए बड़ी बहन के पास गया तो बहन ने दस रुपये दे दिए।
लड़के ने फिर शाम को पैसे लाकर पिता को दिखा दिए पिता ने कहा कि जाकर कुएँ में डाल दो लड़के ने फिर डाल दिए।
अब पिता ने बहन को भी उसके ससुराल भेज दिया। अब फिर लड़के से कमा के लाने को कहा अब तो लड़के के पास कोई चारा नहीं था वह रोता हुआ बाजार गया और वहाँ उसे एक सेठ ने कुछ लकड़ियाँ अपने घर ढोने के लिए कहा और कहा कि बदले में दो रुपये देगा।
लड़के ने लकड़ियाँ उठाईं और चल पड़ा चलते चलते उसके पैरों में छाले पड़ गये और हाथ पैर भी दर्द करने लगे शाम को जब पिताजी ने फिर कहा की बेटा कुएँ मे डाल दो तो लड़का गुस्सा होते हुए बोला कि मैने इतनी मेहनत से पैसे कमाए हैं और आप कुएँ में डालने को बोल रहे हैं। पिता ने मुस्कुराते हुए कहा कि यही तो मैं तुम्हें सीखाना चाहता था तुमने सोने का सिक्का तो कुएँ में फेंक दिया लेकिन दो रुपये फेंकने में डर रहे हो क्यूं की ये तुमने मेहनत से कमाएँ हैं।
अबकी बार पिता ने दुकान की चाबी निकल कर बेटे के हाथ में दे दी और बोले की आज वास्तव में तुम इसके लायक हुए हो क्यूं की आज तुम्हें मेहनत का अहसास हो गया है।
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