चार युगों का महत्व

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 हिंदू धर्म में, समय को चार युगों में विभाजित किया गया है:-  सतयुग, त्रेतायुग, द्वापरयुग, और कलियुग। इन युगों को उनके गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है, जो कि सत्व, रज, और तम हैं। सत्व गुण का अर्थ है शुद्धता, ज्ञान, और सत्यता। रज गुण का अर्थ है गतिशीलता, कर्म, और इच्छा। तम गुण का अर्थ है अज्ञान, मूर्खता, और अंधकार।

सतयुग

 सतयुग को सबसे अच्छा युग माना जाता है। इस युग में, लोग सतोगुणी होते हैं। वे ज्ञानी, धर्मी, और ईश्वर भक्त होते हैं। इस युग में, धर्म का प्रसार होता है, और लोग शांति और समृद्धि में रहते हैं। सतयुग की अवधि 17,28,000 वर्ष है। इस युग में, मनुष्य की आयु 100,000 वर्ष होती है। मनुष्य का शरीर मजबूत और स्वस्थ होता है। वे 32 हाथ लंबे होते हैं। सतयुग के अवतार:-  मत्स्य, कूर्म, वाराह, नृसिंह ।

त्रेतायुग

  त्रेतायुग सतयुग के बाद आता है। इस युग में, सतोगुण रजगुण में बदल जाता है। लोग रजगुणी होते हैं। वे कर्मशील और इच्छाशील होते हैं। इस युग में, धर्म का प्रसार कम होता जाता है, और अधर्म का प्रसार होता है। त्रेतायुग की अवधि 12,96,000 वर्ष है। इस युग में, मनुष्य की आयु 10,000 वर्ष होती है। मनुष्य का शरीर थोड़ा कम मजबूत और स्वस्थ होता है। वे 21 हाथ लंबे होते हैं।  त्रेतायुग के अवतार: वामन, परशुराम, राम ।

द्वापरयुग

 द्वापरयुग त्रेतायुग के बाद आता है। इस युग में, रजगुण तमगुण में बदल जाता है। लोग तमगुणी होते हैं। वे अज्ञानी, मूर्ख, और स्वार्थी होते हैं। इस युग में, धर्म का प्रसार और भी कम होता जाता है, और अधर्म का प्रसार होता रहता है। द्वापरयुग की अवधि 8,64,000 वर्ष है। इस युग में, मनुष्य की आयु 1,000 वर्ष होती है। मनुष्य का शरीर और भी कम मजबूत और स्वस्थ होता है। वे 11 हाथ लंबे होते हैं। द्वापरयुग के अवतार: कृष्ण ।

कलियुग

  कलियुग द्वापरयुग के बाद आता है। इस युग में, तमगुण पूर्ण रूप से प्रबल हो जाता है। लोग पूर्ण रूप से अज्ञानी, मूर्ख, और स्वार्थी होते हैं। इस युग में, धर्म का प्रसार बहुत कम होता है, और अधर्म का प्रसार चरम पर होता है।कलियुग की अवधि 4,32,000 वर्ष है। इस युग में, मनुष्य की आयु 100 वर्ष होती है। मनुष्य का शरीर और भी कम मजबूत और स्वस्थ होता है। वे 7 हाथ लंबे होते हैं। कलियुग के अवतार: कल्कि ।

चारों युगों के लक्षण

चारों युगों को उनके गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। इन युगों के लक्षण इस प्रकार हैं:-

सतयुग

  • सतोगुण का प्रबल होना
  • धर्म का प्रसार
  • शांति और समृद्धि
  • लोगों का ज्ञानी, धर्मी, और ईश्वर भक्त होना
  • लोगों का लंबा जीवन
  • लोगों का मजबूत और स्वस्थ शरीर

त्रेतायुग

  • रजोगुण का प्रबल होना
  • धर्म का कुछ कम प्रसार
  • अधर्म का प्रसार
  • लोगों का कर्मशील और इच्छाशील होना
  • लोगों का थोड़ा कम लंबा जीवन
  • लोगों का थोड़ा कम मजबूत और स्वस्थ शरीर

द्वापरयुग

  • तमोगुण का प्रबल होना
  • धर्म का और भी कम प्रसार
  • अधर्म का और भी अधिक प्रसार
  • लोगों का अज्ञानी, मूर्ख और स्वार्थी होना
  • लोगों का और भी कम लंबा जीवन
  • लोगों का और भी कम मजबूत और स्वस्थ शरीर

कलियुग

  • तमोगुण का पूर्ण रूप से प्रबल होना
  • धर्म का बहुत कम प्रसार
  • अधर्म का चरम पर प्रसार
  • लोगों का पूर्ण रूप से अज्ञानी, मूर्ख, और स्वार्थी होना
  • लोगों का बहुत कम लंबा जीवन
  • लोगों का बहुत कम मजबूत और स्वस्थ शरीर
  • चारों युगों का क्रम

  चारों युगों का क्रम इस प्रकार है:- सतयुग, त्रेतायुग , द्वापरयुग ,कलियुग। चारों युगों को मिलाकर एक महायुग कहा जाता है। एक महायुग की अवधि 43,20,000 वर्ष है। कलियुग के अंत में महायुग का अंत हो जाता है, और नए सिरे से सतयुग की शुरुआत होती है।

 हिंदू धर्म में, यह माना जाता है कि हम वर्तमान में कलियुग में हैं। कलियुग की शुरुआत लगभग 5,122 वर्ष पहले हुई थी। यह माना जाता है कि कलियुग लगभग 4,27,000 वर्ष और चलेगा। कलियुग के अंत में, कल्कि अवतार लेंगे। कल्कि अवतार भगवान विष्णु का अंतिम अवतार होगा। वह अधर्म का नाश करेंगे और धर्म की स्थापना करेंगे। कल्कि अवतार के बाद नए सिरे से सतयुग की शुरुआत होगी।

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