बहुतांश व्रतों का संबंध तिथि से होता है इस कारण उस तिथि की संख्या के अनुसार भोज्य पदार्थों की संख्या रखने का रिवाज है। जहां संख्या के विषय में शास्त्र संकेत रहते हैं, वहां उनका पालन होना तर्कसम्मत है। परंतु जहां निश्चित शास्त्र संकेत नहीं रहते, वहां भोज्य पदार्थों की संख्या के बारे में आग्रह रखना उचित नहीं होता। साल भर में ऐसे कितने ही त्योहार आते हैं जिनकी शास्त्रीय एवं वैज्ञानिक मीमांसा न देखते हुए उन्हें अंधपरंपरा से मनाया जाता है। अर्थात ऐसा करते समय संख्या का भूत सिर पर सवार रहता है। इस कारण यदि संख्या में कमी हुई तो मन में कई प्रश्न उठते हैं और कार्य में रुचि कम हो जाती है। परिणाम स्वरूप फल प्राप्ति में भी कमी आती है। इसलिए कुलधर्म, कुलाचार और व्रत रखते समय उसकी शास्त्रीय भूमिका को समझ लेना आवश्यक है।
'व्रतराज' तथा अन्य धर्म शास्त्रों में इस प्रकरण के संख्या विषयक अभिनिवेश का उल्लेख नहीं मिलता। किसी भी धार्मिक आचार या व्रत में पूजा, होम, दान एवं तर्पण आदि का बहुत महत्व है। इसीलिए हर कार्य का संकल्प करते समय यथालाभ द्रव्यैः यथाशक्यं की योजना की जाती है। इसके अलावा मन में श्रद्धा रखकर अपनी आर्थिक परिस्थिति के अनुसार धार्मिक विधि संपन्न करनी चाहिए।
16 सोमवार के उद्यापन के लिए एक मेहूण, अनंत व्रत के लिए एक अच्छो तरकारी, शाकंभरी व्रत के लिए पत्तों की तरकारी तथा गणपति व्रत के लिए अलग-अलग प्रकार के मोदक आवश्यक होते हैं। इसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि कल्पोक्त देवता की पूजा करने के पश्चात यथासंभव अन्नदान करते रहें।
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