जामवंत रामायण के एक ऐसे पात्र हैं जिनके विषय में बहुत विस्तार से नहीं लिखा गया है। हालाँकि रामायण में ही उनके विषय में केवल एक-दो चीजें ऐसी...
जामवंत रामायण के एक ऐसे पात्र हैं जिनके विषय में बहुत विस्तार से नहीं लिखा गया है। हालाँकि रामायण में ही उनके विषय में केवल एक-दो चीजें ऐसी बताई गयी है जिनसे आप उनके बल के बारे में अनुमान लगा सकते हैं। आइये उन्हें देखते हैं।
पहली बात तो जामवंत सतयुग के व्यक्ति थे। अब सतयुग में निःसंदेह योद्धा अन्य युगों की अपेक्षा बहुत अधिक शक्तिशाली होते थे। उनकी उत्पत्ति सीधे ब्रह्माजी से बताई गयी है। अब परमपिता ब्रह्मा से जो जन्मा हो उसकी शक्ति के बारे में तो केवल अनुमान ही लगाया जा सकता है।
रामचरितमानस में उनके पराक्रम के बारे में दो घटना विशेष रूप से उल्लेखनीय है। उन दोनों स्थानों पर जामवंत का युद्ध रावण और मेघनाद के साथ हुआ था जिसमें दोनों को जामवंत ने अपने पाद प्रहार से मूर्छित कर दिया था। मेघनाद की शक्ति तो उन्होंने अपने हाथों से ही पकड़ कर पलट दी थी। अत्यंत वृद्धावस्था में भी जो रावण और मेघनाद जैसे योद्धाओं को अपने घात से मूर्छित कर दे, जरा सोचिये युवावस्था में उसका बल क्या होगा।
जब द्वापर आया और जामवंत और अधिक बूढ़े हो गए, उस समय उनका युद्ध श्रीकृष्ण से हुआ था। जनमवंत को परास्त करने के लिए श्रीकृष्ण को उनसे एक-दो नहीं बल्कि 28 दिनों तक युद्ध करना पड़ा। स्वयं परमेश्वर कृष्ण को जिसे परास्त करने में अट्ठाइस दिन लग गए हों, वो भी वृद्धावस्था में, जवानी में उनके बल के बारे में हम केवल अनुमान ही लगा सकते हैं।
जब सीता माता को खोजने के लिए समुद्र लांघने की बात चल रही थी उस समय जामवंत कहते हैं कि "मैं तो अब बहुत बूढ़ा हो गया हूँ, फिर भी इस समुद्र में मैं 90 योजन तक जा सकता हूँ।" हनुमान जी अपनी युवावस्था में 100 योजन छलांग गए, जामवंत की आयु उस समय 6 मन्वन्तर की बताई गयी है। एक मन्वन्तर तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्षों का होता है, फिर भी वे 90 योजन तक जाने की क्षमता रखते थे, इसी से उनके बल का पता चलता है।
इस वार्तालाप के दौरान उन्होंने युवावस्था में अपने बल के बारे में दो बातें बताई जिसे ध्यान से सुनना आवश्यक है। इससे आपको जामवंत की वास्तविक शक्ति का पता चलेगा।
पहली घटना तब की है जब समुद्र मंथन चल रहा था जिसे देवता और दैत्य मिलकर बड़ी मुश्किल से कर पा रहे थे। उस समय जामवंत ने अपनी जवानी के जोश में एक बार अकेले ही सम्पूर्ण मंदराचल पर्वत को घुमा दिया था। मंदराचल को अकेले घुमाने के लिए कितनी शक्ति चाहिए होगी, क्या आपको अंदाजा है?
दूसरी घटना भगवान विष्णु के वामन अवतार की है। जब श्रीहरि ने विराट स्वरुप लिया और एक पैर से स्वर्ग को नाप लिया। फिर जब उन्होंने अपना पैर पृथ्वी को नापने के लिए उठाया, उस दौरान जामवंत ने केवल 7 पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। जरा सोचिये महावीर हनुमान एक ही रात में लंका से सैकड़ों योजन दूर से पर्वत शिखर उखाड़ कर ले आये लेकिन जामवंत ने केवल सात पल में पृथ्वी की सात परिक्रमा कर ली थी। एक पल लगभग 24 सेकंड का होता है। क्या आप उनकी गति का अनुमान लगा सकते हैं?
उस उनके बल का ऐसा वर्णन सुनकर जब अंगद उनसे पूछते हैं कि उनका बल क्षीण कैसे हुआ? तब वे बताते हैं कि जब वे पृथ्वी की परिक्रमा कर रहे थे तो अंतिम परिक्रमा के समय उनके पैर के अंगूठे का नाख़ून महामेरु पर्वत से छू गया, जिससे उसका शिखर खंडित हो गया। इसे अपना अपमान मानते हुए मेरु ने जामवंत को ये श्राप दे दिया कि वो सदा के लिए बूढ़ा हो जाएगा और उसका बल क्षीण हो जाएगा।
आशा है आपको जामवंत की शक्ति का कुछ अंदाजा हो गया होगा। किन्तु इतने शक्तिशाली होने के बाद भी उनमें लेश मात्र भी घमंड नहीं था। जय श्रीराम।
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