चन्द्रहास नाम का एक राजपुत्र था। एक युद्ध में उसके पिता राजा सुधार्मिक की मृत्यु होने पर, उसकी माँ भी पिता की ही चिता पर सती हो गई थी। चन्...
चन्द्रहास नाम का एक राजपुत्र था। एक युद्ध में उसके पिता राजा सुधार्मिक की मृत्यु होने पर, उसकी माँ भी पिता की ही चिता पर सती हो गई थी। चन्द्रहास अनाथ हो गया।
चन्द्रहास के भी प्राणों पर संकट देख, एक दासी चन्द्रहास को अपने कपड़ों में छिपा कर अपने घर ले गई और उसे अपना पुत्र समझकर पाला।
इधर चन्द्रहास कुछ बड़ा हुआ तो उधर मंत्री धृष्टबुद्धि ने ब्राह्मणों से अपनी एकमात्र कन्या विषया के भावी वर के बारे में पूछा। ब्राह्मणों ने वहाँ पास ही खेलते उसी दासी पुत्र, चन्द्रहास की ओर इशारा कर दिया।
धृष्टबुद्धि ने विचार किया कि मैं अपनी कन्या का विवाह दासी पुत्र के साथ कैसे होने दे सकता हूँ? धृष्टबुद्धि ने चन्द्रहास के वध की आज्ञा दे दी।
वधिक चन्द्रहास को मारने के लिए वन ले गए। पर दैवयोग से उन्हें बालक पर दया आ गई। चन्द्रहास के एक हाथ में छः अंगुलियाँ थीं। उन्होंने उसकी वही छटी अंगुली काट कर उसे छोड़ दिया और वह अंगुली धृष्टबुद्धि को दिखा दी।
यहाँ चन्द्रहास पड़ोस के राज्य में रहने लगा। एक दिन वह वन के मार्ग में सोया हुआ था। कुछ पक्षी अपने पंखों को फैला कर उसके चेहरे पर छाया कर रहे थे। संयोग से यह दृश्य उस वहाँ के राजा कुलिन्द ने देख लिया। कुलिन्द का कोई पुत्र नहीं था। उसने चन्द्रहास को विलक्षण बालक जानकर गोद ले लिया।
किसी राज कार्यक्रम में, धृष्टबुद्धि ने चन्द्रहास को देखा तो पहचान लिया कि यह तो वही दासी पुत्र है।
कुलिन्द को बहला कर धृष्टबुद्धि ने चन्द्रहास को मित्रता करने के बहाने अपने पुत्र मदन के पास भेज दिया। साथ में एक पत्र भी भेजा जिसमें लिखा था कि प्रिय मदन! इसे देखते ही, बिना कुछ पूछे, इसे विष दे दो।
चन्द्रहास महल पहुँचा तो मदन से पहले उसे वही धृष्टबुद्धि की पुत्री विषया मिल गई। विषया ने पत्र पढ़ा तो "विष" के स्थान पर "विषया" कर दिया। मदन ने पत्र पाया तो चन्द्रहास और विषया का विवाह करा दिया।
अब जब इस पूरी घटना की जानकारी धृष्टबुद्धि को हुई तो उसने क्रोध में भर कर अपने विशिष्ट सेवक को चन्द्रहास के वध की जिम्मेदारी सौंपी। उससे कहा कि मैं चन्द्रहास को हमारी कुलदेवी के मंदिर में दर्शन के बहाने अकेला भेजूंगा, तुम वहीं इसे मार डालना। योजनानुसार चन्द्रहास को अकेले ही मंदिर भेजा गया।
पर संयोग देखिए कि मार्ग में धृष्टबुद्धि का ही पुत्र मदन भी उसके साथ हो लिया और स्वयं पहले मंदिर में प्रवेश कर गया। सेवक ने बिना समय गंवाए मदन का सिर धड़ से अलग कर दिया। धृष्टबुद्धि सिर पटक पटक कर मर गया और चन्द्रहास दोनों राज्यों का एकमात्र राजा हो गया।
आप देखें कि इस पूरी कथा में चन्द्रहास ने क्या किया? कुछ भी नहीं। परिस्थितियाँ अपने आप बनती बिगड़ती चली गईं, पर हुआ वही जो नियत था। आखिर चन्द्रहास राजा बन ही गया, उसका बाल भी बाँका नहीं हुआ।
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