संस्कार

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  डैडी....आज आपके रखें नये ड्राइवर ने मेरे साथ बदतमीजी की ....देर शाम लौटी जाह्नवी ने अपने पापा को बाहर हाल में बैठे हुए देखकर शिकायती लिहाजे में कहा...

क्या ....उसकी ये हिम्मत .... कहां है वो बदतमीज.... महेंद्र बाबू गुस्से में बोले!

  तभी उनकी पत्नी ने कहा ....वो नौकरी छोड़कर चला गया ...... कह रहा था... मुझे मेरा आत्मसम्मान प्यारा है । मुझे आपके यहां नौकरी नहीं करनी.....। तो मैंने कहा.... ठीक है.... अगले महीने की दस तारीख को आकर जो भी हिसाब बने..... ले जाना ...।

  हिसाब तो मैं पूरा करता हूं........ मेरी बिटिया के साथ बदतमीजी की...... और मैं उसे ऐसे ही छोड़ दूं...? तुम चलो अभी मेरे साथ.... जाह्नवी! अभी उसके घर चलते हैं.... वहां उसके परिवार के सामने उसकी वो हालत करुंगा.... कि तमीज सीख जाएगा ।

 गुस्से में भरे महेंद्र बाबू अपनी बेटी और पत्नी के साथ ड्राइवर बिरजू के घर पहुंचे और दरवाजा खटखटाया। दरवाजा एक पंद्रह सोलह साल की लड़की ने खोला .।..जी ....कहिए ...?

 कहां है वो बिरजू का बच्चा...? बुलाओ उसे ... गुस्से से महेंद्र बाबू गरजे ।

 ओह ! तो आप पापा की पहचान वाले हैं। नमस्ते अंकलजी ! नमस्ते आंटीजी! आइए ....आइए... बैठिए। मैं आपके लिए पानी लेकर आती हूं ।

 सुनो लड़की ...! महेंद्र बाबू ..... बस इतना ही कह पाएं थे मगर वो लड़की अपनी मां को आवाज़ लगाते हुए अंदर से पानी लेने चली गई....। तब तक उसकी मां बाहर निकल आई ... नमस्ते ....जी! माफ़ कीजियेगा.... मैंने आपको पहचाना नहीं..... मैं सुधा हूं ... आराध्या की मम्मी ...।

बिरजू कहां है ?

 जी ...वो तो सामान लाने गये हैं... बस आते ही होंगे। लीजिए वो आ गये ...। बिरजू को दरवाजे पर आते हुए देखकर सुधा बोली ।

 अरे साहब ! मैडम ......आप यहां ....। सुधा...! ये हमारे साहब ,मैडम हैं। जिनके यहां मैं काम कर रहा था परन्तु अब छोड़ चुका हूं।

 छोड़ दिया......? तुम्हें धक्के देकर बाहर निकालना चाहिए..... तुमने मेरी बेटी के साथ क्या बदतमीजी की है ....?

  बदतमीजी....? माफ कीजिए साहब..... मैं तो अंजान लोगों से भी तमीज से पेश आता हूं तो आपकी बेटी के साथ ...? जबकि ये मेरी आराध्या की हम उम्र है ।

  जाह्नवी! तुम बताओ... क्या बदतमीजी की इसने तुम्हारे साथ....?

 पापा... सुबह स्कूल जाते हुए इसने अचानक बड़ी तेजी से ब्रेक मारी.... तो मैंने इससे कहा... देखकर नहीं चला सकते? कितनी जोर से ब्रेक मारी है... ये तो शुक्र है मैंने सीट पकड़ ली... वरना मैं मुंह के बल गिर पड़ती।

 तो जबाव में ये बोला ... बेटी वो अचानक एक छोटी सी बच्ची रोड क्रॉस करने लगी मैं ब्रेक नहीं मारता तो...

 बहाने मत बनाओ.... और ध्यान से गाड़ी चलाओ.... फिर से अगर ब्रेक मारी तो मुझसे बुरा नहीं होगा? पापा भी ना जाने कैसे-कैसे बदतमीज लोगों को ड्राइवर रख लेते है...!

 बेटी ... अगर मैं ब्रेक नहीं मारता तो वो बच्ची गाड़ी के नीचे आ जाती ये गाड़ी थाने में और मैं जेल में होता।

 तो .... लगता है तुमने आज से पहले कभी बढ़िया आलीशान गाड़ी नहीं चलाई ? हमारी लग्जरी गाड़ियों को देखकर इन छोटे लोगों को खुद ही दूर हो जाना चाहिए.... ना की तुम्हारी तरह डरकर गाड़ियों में ब्रेक मारनी चाहिए.... और ये क्या बेटी बेटी लगा रखा है? क्या मैं तुम्हारी बेटी हूं?

 तो फिर क्या कहूं आपको .... मैडम को दीदी कहते हैं तो में आपको दीदी कहूं?

 पागल वागल हो गया मैं तुमसे बड़ी लगती हूं ! अपनी उम्र देखी है बूढ़े .... मुझे बेटी दीदी नहीं नहीं सीधे सीधे जाह्नवी कहो... समझे....बस यही हुआ था डैड !

 साहब मैं भी एक बेटी का पिता हूं। आजतक जहां भी नौकरी की वहां मैंने सभी छोटे बड़ों का आदर किया। बदलें में मुझे भी खूब आदर मिला। और अधिकतर जगहों पर खुशी जाहिर करते हुए रुपए मिठाई और प्यार मिला । मगर आपके यहां बदतमीजी का पुरस्कार ... जो मेरे आत्मसम्मान को ठेस पहुंचा रहा था। इसलिए मैंने मैडम जी को बता दिया था कि मैं कल से आपके यहां काम करने नहीं आऊंगा.... बस यही बात हुई थी। महेंद्र बाबू कुछ कहते तबतक आराध्या सबके लिए ठंडा ठंडा शर्बत बनाकर ले आई ...।

 लीजिए अंकलजी.... लीजिए आंटीजी.... लो बहन .... पापा मम्मी ... अंकलजी गर्मी बहुत है ये शर्बत पीजिए! हमारे यहां का खास है । सभी मेहमान कहते हैं मन को ठंडक मिलती है। पीजिए ना..... प्यार से आराध्या ने कहा ...तो महेंद्र बाबू ने शर्बत होंठों से लगा लिया.... और घुट घुट कर पीने लगे।

 शर्बत पीने के बाद महेंद्र बाबू बिरजू की और देखकर बोले .... बिरजू आया तो था तुम्हें सबक सिखाने.... पर आज खुद यहां से एक सबक सीखकर जा रहा हूं... कि अपने बच्चों को पैसा गाड़ी मोबाइल लेपटॉप मंहगी आयटम दो ना दो..... मगर तमीज और संस्कार जरूर दो ... वरना बच्चे तमीज भूलकर बदतमीज बन जाते हैं ।

 तुम एक छोटे से घर में रहते हो... शायद वो तमाम जरुरतों को तुम पूरा नहीं कर सकते जो मैं मिनटों में चुटकी बजाकर पूरी कर सकता हूं, मगर मेरे भाई जो अनमोल धरोहर अच्छी परवरिश अच्छे संस्कार तुमने अपनी बेटी को दिए हैं वो में अमीर होते हुए भी नहीं दे पाया ....।

 तुम सचमुच खुशनसीब हो सौभाग्यशाली है जो ऐसी अनमोल धरोहर तुम्हारे पास है । कहते हुए महेंद्र बाबू ने अपनी बेटी जाह्नवी की और देखा तो वो भी शर्मिंदगी से सिर झुका कर बाहर निकल गई।

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