वाराणसी की मसान होली कब और कैसे शुरू हुई, भगवान शिव से है क्या संबंध ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

  जिस तरह ब्रज की होली पूरे देश में प्रसिद्ध है, उसी तरह काशी में मसान की होली का भी बहुत महत्व है। काशी में फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी के अगले दिन हर वर्ष मसान होली मनाई जाती है। मसान होली को दो दिनों का उत्सव माना जाता है। मसान होली चिता की राख और गुलाल से खेली जाती है। काशी के मणिकर्णिका घाट पर साधु-संत जमाकर होकर शिव भजन गाते हैं और नाचते-गाते एक-दूसरे को मसान की राख लगाकर इसे हवा में उड़ाकर जीवन और मृत्यु का उत्सव मनाते हैं। इस दौरान पूरी काशी शिवमय हो जाती है और चारों तरफ हर-हर महादेव का नाम ही सुनाई देता है। पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने अपने विवाह के बाद सबसे पहले मसान होली खेली थी। यहीं से इसकी शुरुआत हुई थी। आइए, जानते हैं मसान होली से जुड़ी पौराणिक कहानी।

भगवान शिव और पार्वती के विवाह में शामिल हुए थे विशेष अतिथि

  भगवान शिव को वैरागी माना जाता है लेकिन देवी पार्वती की घोर तपस्या, आस्था और समर्पण भाव को देखकर भगवान शिव ने देवी पार्वती का विवाह निमंत्रण स्वीकार कर लिया। भगवान शिव ने अपने विवाह में भूत-प्रेत, यक्ष, गंधर्व और प्रेतों को भी आमंत्रित किया था। भगवान शिव के बारे में कहा जाता है कि शिव अपने भक्तों में कभी भी भेदभाव नहीं करते। अगर कोई उन्हें पूरी श्रद्धा और प्रेम के साथ याद करता है, तो भगवान शिव उसे आश्रय जरूर देते हैं। इस कारण से स्नेहवश भगवान शिव ने अपने विवाह में सभी देव, असुर, भूत-प्रेतों आदि जीवों को शामिल किया था। इन सभी लोगों को शिव-पार्वती विवाह में विशेष अतिथि गण माना जाता है। वहीं, शिव के विकराल रूप को देखकर सभी लोग बहुत डर गए थे, लेकिन जब पार्वती जी ने शिव से प्रार्थना की, कि वो अपने सुकुमार के रूप में आकर इस विवाह को सम्पन्न होने दें, तो शिव ने एक सुंदर राजकुमार का रूप ले लिया। इसके बाद भगवान शिव और पार्वती का विवाह हुआ था।

विवाह के बाद भगवान शिव और पार्वती काशी घूमने आए थे

  विवाह के बाद भगवान शिव और पार्वती पहली बार काशी घूमने के लिए आए थे। ऐसी मान्यता है कि इस दिन रंगभरी एकादशी थी। रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव ने देवी पार्वती को गुलाल लगाकर होली मनाई थी। शिव और पार्वती की इस होली को देखकर शिवगण दूर से देखकर आनंदित हो रहे थे। रंगभरी एकादशी पर भगवान शिव और देवी पार्वती ने होली खेली थी। इसके अगले दिन बाद भोलेनाथ के भक्तों जिनमें भूत-प्रेत, यक्ष, पिशाच और अघोरी साधु शामिल थे, उन्होंने आग्रह किया कि भगवान शिव उनके साथ भी होली खेलें। भगवान शिव जानते थे कि शिव के ये विशेष भक्त जीवन के रंगों से दूर रहते हैं, इसलिए उनका ध्यान रखते हुए भगवान शिव ने मसान में पड़ी राख को हवा में उड़ा दिया। इसके बाद सभी विशेष शिवगण मिलकर भगवान शिव को मसान की राख लगाकर होली खेलने लगे। पार्वती माता दूर खड़ी होकर शिव और उनके भक्तों को देखकर मुस्कुरा रहीं थीं। तब से माना जाता है काशी में मसान की राख से होली खेलने के परम्परा शुरू हुई थी।

मसान होली का महत्व क्या है ?

  माना जाता है कि मसान की होली मृत्यु का उत्सव मनाने जैसा है। मसान होली इस बात का प्रतीक है कि जब व्यक्ति अपने भय को काबू में करके मृत्यु के भय को पीछे छोड़ देता है तो वो जीवन का ऐसे ही आनंद मनाता है। वहीं, चिता की राख को अंतिम सत्य माना जाता है। इससे सीख मिलती है कि व्यक्ति चाहे कितना भी अंहकार, लोभ जैसे विकारों से घिरा रहे, लेकिन अंत में उसकी जीवन यात्रा मसान में ही खत्म होनी होती है।

 वहीं, एक और पौराणिक कहानी के अनुसार भगवान शिव ने यमराज को भी पराजित किया था, इसलिए मृत्यु पर विजय पाने के लिए मसान की होली का महत्व कहीं ज्यादा है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top