एकादशी व्रत का महात्म्य

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  एकादशी व्रत भगवान् को अत्यंत प्रिय है हम संसारी जीवों को संसार चक्र से छुड़ाने के लिये भगवान् ने ही इस तिथि को प्रकट किया था, इसलिये मनुष्य मात्र को इस व्रत का पालन करना चाहिये। पद्म पुराण के उत्तर खण्ड में इस व्रत के सम्बंध में विस्तृत चर्चा प्राप्त होती है। 

  श्रीमहादेव जी से श्रीपार्वती जी इस विषय में प्रश्न करतीं हैं और श्रीमहादेव जी इसका उत्तर देते हैं जिसमें बड़े ही स्पष्ट शब्दों में एकादशी की उपादेयता प्रतिपादित की गयी है। 

 किसी समय पापपुरुष भगवान् के पास जाकर रोने लगा कि हे नाथ ! संसार के किसी व्रत नियम प्रायश्चित से मुझे भय नहीं है। लेकिन प्रभु एकादशी से मुझे महान भय प्राप्त होता है प्रभु उस दिन मुझे कहीं स्थान प्राप्त नहीं होता। आप कृपा कर मुझे स्थान प्रदान करें। तब श्रीप्रभु बोले हे पाप पुरुष ! तुम एकादशी के दिन अन्न में वास करो-

अन्नमाश्रित्य तिष्ठन्तं भवन्तं पापपूरुषम्।।

(पद्म पुराण क्रि० - २२ / ४९)

  एकादशी के दिन जो अन्न खाता है वह साक्षात् पाप का ही भक्षण करता है। इस लिये ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य , शुद्र एवं स्त्री सभी को इस व्रत का पालन विशेष रूप से करना ही चाहिये। 

एकादशीं परित्यज्य योह्यन्यद्व्रतमाचरेत्।

स करस्थं महद्राज्यं त्यक्त्वा भैक्ष्यं तु याचते।।

(पद्म पुराण उ०- २३४ / ९)

 एकादशी व्रत को छोड़ कर जो मन्द बुद्धि अन्य व्रत को करता है उसका वह व्रत निष्फल ही होता है। जैसे कोई हाथ आये महान राज्य को छोड़ कर भिक्षा मांगे उसी के समान समझना चाहिये।

एकादशेन्द्रियै: पापं यत्कृतं भवति प्रिये।

एकादश्युपवासेन तत्सर्वं विलयं ब्रजेत्।।

(पद्म पुराण- २३४ / १०)

  हे प्रिये ! पार्वती ! एकादश इन्द्रियों (मन, पञ्च ज्ञानेन्द्रिय एवं पञ्च कर्मेन्द्रिय) के द्वारा जो भी पाप ये जीव करता है वे सब एकादशी व्रत से समाप्त हो जाते हैं। इस लिये एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिये। एकादशी के दिन भोजन करने वाले को ब्रह्महत्या, मद्यपान, चोरी और गुरुपत्नी गमन के जैसे महापाप लगते हैं। 

वर्णाश्रमाश्रमाणां च सर्वेषां वरवर्णिनि।

एकादश्युपवासस्तु कर्तव्यो नाsत्रसंशयः।। 

(पद्मपुराण- २३४ / १७ )

  हे वरवर्णिनि ! सभी वर्ण वालों एवं वर्णाश्रमियों को एकादशी का व्रत जरूर करना चाहिये इसमें कोई संशय नहीं है। बिना एकादशी व्रत के कोई भी प्रभु को प्राप्त नहीं कर सकता। 

 भागवत जी में तो नंद बाबा द्वारा एकादशी व्रत करने का वर्णन आया है जिसके प्रभाव से ही प्रभु उनके बालक बन कर उनके मनोरथ को पूर्ण किये। 

नोट-

 कुछ लोगों को भ्रांति है कि गुरु दीक्षा लेने के बाद ही एकादशी व्रत करना चाहिये लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है यह व्रत निश्चित ही सबको करना चाहिये।

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