लाइबेरिया का वह जहाज

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 मित्रो सुनसान समंदर में घटित हुई ये घटना अंत तक आपके रोंगटे खड़े कर देगी।

 खूंखार डाकुओं पर विजय की यह अद्भुत कहानी आपको अवश्य पढ़नी चाहिए।

 संकट में घिरे लाइबेरिया के जहाज की गुहार-

 हमें बचा लो..

और फिर जो हुआ, वह अब इतिहास में लिखा जाएगा।

 यह बदले हुए भारत के साहस की अद्भुत कहानी है। जरा गौर से पढ़िएगा।

 हुआ यूं कि पश्चिम अफ्रीका के देश लाइबेरिया का एक व्यापारिक जहाज करोड़ों डालर मूल्य का सामान लादे समंदर की लहरों पर तेजी से चल रहा था।

 आसमान साफ था, मौसम भी ठीक था और समंदर में भी कोई अधिक हलचल नहीं थी।

 ऐसा कोई भी कारण नहीं था कि जहाज पर कोई संकट आए। 

 जहाज का कैप्टन और बाकी क्रू मेम्बर बिना किसी चिंता के लगातार आगे बढ़ते जा रहे थे।

 जहाज के क्रू मेम्बर्स के बीच आमोद-प्रमोद, संगीत और खाना-पीना जारी था। सब बेफिक्र थे।

 किंतु तभी अचानक उन्हें किसी खतरे का आभास हुआ।

उन्हें लगा कि कोई है, जो तेजी से उनके जहाज की ओर बढ़ रहा है।

 उन्होंने जहाज के ऊपर लगे कैमरों की मदद से दूर तक देखना शुरू किया तो उन्हें कुछ मोटरबोट खतरनाक गति से जहाज की ओर आती दिखाई दीं।

 कुछ देर बाद जब वे नावें और नजदीक आईं तो कैमरों ने उन्हें पहचान लिया।

 वे समुद्री डाकुओं की नावें थीं, जिन पर भारी मात्रा में हथियार थे और उन पर खूंखार समुद्री डकैत थे।

 बता दें कि समुद्री डकैत जब किसी जहाज को निशाना बनाते हैं, तो वे यह नहीं देखते कि यह जहाज अमेरिका का है, रूस का है, चीन का है या किसी छोटे कमजोर देश का है।

 चूंकि जहाज समंदर में अकेला होता है और दूर-दूर तक केवल पानी ही पानी, इसलिए उन तक इतनी जल्दी मदद भी नहीं पहुंचती।

 इस कारण समुद्री लुटेरे किसी भी जहाज को निशाना बनाकर लूटने का दुस्साहस कर डालते हैं।

 वे न केवल लूटपाट करते हैं बल्कि क्रू मेंबर्स की हत्या भी कर देते हैं।

यह अथाह समंदर में कई बार घटित होने वाली क्रूर कहानी है।

 तो लाइबेरिया के उस करोड़ों डालर मूल्य का सामान लदे जहाज की किस्मत तय हो गई थी।

 तय था कि समुद्री डाकुओं की नावें कुछ ही समय में जहाज तक पहुंचेंगी और बंदूक के दम पर जहाज को अपने कब्जे में लेकर सभी क्रू मेंबर्स की हत्या करते हुए जहाज को लूट लेंगी।

किंतु ऐसा न हो सका।

 तो ऐसा क्या हुआ कि लाइबेरिया का वह जहाज लुटते-लुटते अचानक बच गया?

 हुआ यूं कि जहाज के कैप्टन ने समुद्री डाकुओं को देखते ही तुरंत अपनी टीम से कहा- एसओएस संदेश भेजो।

एसओएस का अर्थ होता है - सेव अवर सोल।

अर्थात् हमारी आत्मा को बचाइए।

 यह एक करुण पुकार होती है, जो विराट समंदर में संकट में फंसे जहाजों द्वारा भेजी जाती है।

 आपने टाइटैनिक फिल्म में देखा होगा कि टाइटैनिक जहाज के डूबने से पहले उसके कैप्टन द्वारा कई बार एसओएस संदेश भेजे गए थे।

 जिन्हें दो जहाजों ने इसलिए नजरअंदाज कर दिया था क्योंकि उन्हें पता था कि टाइटैनिक एक बहुत बड़ा जहाज है और यह डूब नहीं सकता, साथ ही यह आज अपनी पहली यात्रा पर निकला है, इसलिए उसके कैप्टन शायद एसओएस मैसेज की टेस्टिंग कर रहे होंगे।

 खैर, अभी हम लाइबेरियाई जहाज पर वापस आते हैं।

 जहाज से डिजिटली एसओएस संदेश भेजा गया, जिसे दुनियाभर के देशों की नौसेनाओं ने सुना।

 किंतु सबसे पहले रिस्पांस किया भारतीय नौसेना ने।

 भारतीय नौसेना ने तुरंत लाइबेरियाई जहाज को संदेश भेजा- चिंता मत कीजिए, हमारा आइएनएस चेन्नई आपको बचाने के लिए चंद सेकंड में रवाना हो रहा है। और हमेशा स्टैंडबाय पर रहने वाला हमारा जांबाज आइएनएस चेन्नई सचमुच चंद सेकंड बाद ही समंदर की लहरों को चीर रहा था।

 आइएनएस चेन्नई के कप्तान ने अपनी टीम से कहा - जहाज को पूरी गति से चलाओ, कोई संकट में है और हमें उसे बचाना है।

 यहां याद आता है कि भारत अपनी शरण में आए किसी कमजोर की रक्षा के लिए कैसे अपनी पूरी ताकत झोंक देता है।

 आइएनएस विराट समंदर का सीना चीरते हुए न केवल लाइबेरियाई जहाज की ओर बढ़ रहा था बल्कि उसने समंदर में तैर रहे अन्य सैकड़ों जहाजों तक भी संदेश पहुंचा दिया कि वह जिस रास्ते से गुजर रहा है, उस रास्ते में यदि कोई अन्य जहाज हो तो रास्ता खाली कर दे।

 यह संदेश मिलते ही सभी जहाजों ने आइएनएस चेन्नई का रास्ता खाली कर दिया।

 आइएनएस चेन्नई का यह संदेश उन समुद्री डाकुओं तक भी पहुंच रहा था क्योंकि आजकल के डाकू भी तकनीकी संसाधनों से लैस होते हैं।

 उन्होंने जब सुना कि भारत का जांबाज आइएनएस आ रहा है, तो उनकी पैंट गीली होने लगी।

 दरअसल, समुद्री डाकू भी अब बदले हुए भारत यानी नरेन्द्र मोदी के भारत की ताकत को अच्छे से पहचान गए हैं।

 इसलिए वे कुछ देर के लिए ठिठक गए।

 हालांकि इसके बावजूद वे यह सोचकर लाइबेरियाई जहाज की ओर बढ़ते रहे कि आइएनएस को आने में जितना समय लगेगा, उतने समय में तो वे जहाज को लूटकर विराट समंदर में कहीं चंपत हो जाएंगे। किंतु वे गलत थे।

आइएनएस की गति और क्षमता को पहचानने में उनसे चूक हो गई।

 उनकी सारी गणना और गणित को धता बताते हुए आइएनएस तय समय से काफी पहले लाइबेरियाई जहाज के आसपास पहुंच गया।

 बता दें कि जब आइएनएस जैसा विराट जहाज समंदर के सीने पर तैरता है, तो जो भीषण गर्जना होती है, वह मीलों तक सुनाई देती है।

 आइएनएस की इस भीषण गर्जना को डाकुओं ने भी सुना और लाइबेरियाई जहाज के कप्तान ने भी।

 अब खेल बदल चुका था क्योंकि भारतीय नौसेना की मौजूदगी ने डाकुओं को भयभीत कर दिया था और लाइबेरियाई जहाज को अभयदान दे दिया था।

 डाकू उल्टे पांव भागने लगे और अपनी नौकाओं को पूरी रफ्तार से भगा ले गए।

 आइएनएस किसी बड़े भाई की तरह लाइबेरियाई जहाज के समीप पहुंचा और उन्हें संदेश दिया कि अब आप चिंता न करें, भारत की नौसेना यहां है।

 इस पर लाइबेरियाई जहाज ने आसमान में रंगीन धुआं छोड़कर भारतीय नौसेना और आइएनएस विराट का अभिनंदन करते हुए धन्यवाद अदा किया।

 यहां फिल्म की हैप्पी एंडिंग हो गई थी, किंतु तनिक ठहिरए।

 जैसा कि भारतीय फिल्मों में होता है कि हीरो के जाते ही रणजीत, प्रेम चोपड़ा, सदाशिव अमरापुरकर या अमरीश पुरी फिर आकर हीरो की मां या बहन को बंधक बना लेते हैं, ऐसी आशंका यहां भी थी।

 आइएनएस के लौटते ही समुद्री डाकू फिर लौट सकते थे और लाइबेरियाई जहाज को घेरकर लूट सकते थे।

 लेकिन भारतीय नौसेना के जांबाज नौसैनिकों ने बचपन में हिंदी पिक्चरें बहुत देखी होंगी, इसलिए उन्हें लगा कि डाकू फिर लौटकर आ सकते हैं।

 अत: उन्होंने लाइबेरियाई जहाज को संदेश भेजा - हम आगे-आगे चल रहे हैं, आप हमारे पीछे-पीछे आइए।

 हम तब तक आपके साथ रहेंगे, जब तक कि आप सुनसान समंदर से निकलकर अपने गंतव्य की ओर सुरक्षित क्षेत्र में नहीं पहुंच जाते।

  इतनी सुरक्षा के बारे में तो लाइबेरियाई जहाज के कप्तान ने भी नहीं सोचा था।

 वह कृतकृत्य हो गया और आइएनएस चेन्नई के पीछे-पीछे किसी छोटे भाई, किसी अनुचर की तरह चल दिया।

 ठीक वैसे, जैसे दंडकारण्य में प्रभु श्रीराम के पीछे-पीछे भैया लक्ष्मण चले थे।

 दोस्तों भारत अब ऐसी-ऐसी साहसिक गाथाएं लिख रहा है।

 रोज हमारी सेना कहीं न कहीं, किसी न किसी शरणागत की रक्षा करके से अभयदान दे रही हैं।

अब बुरी ताकतें भारत का नाम सुनकर कांपती हैं। और यह सब बीते 10 वर्षों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा हमारी सेनाओं को दिए गए अपूर्व साहस के कारण संभव हुआ है।

 इस दिलचस्प और खौफ से भरी अंतरराष्ट्रीय घटना ने बता दिया कि भारत अब दब्बू, खामोश और डरा-सहमा नहीं रहा, बल्कि अब पूरे साहस के साथ आगे बढ़ता है और तमाम चुनौतियों को हराकर दूसरे देशों की मदद निस्वार्थ मदद करता है। यह भी कि अब हम विराट समंदर की भी ।

 आप इसे बेधड़क फारवर्ड करें, भारत के साहस की कहानी सबको पढ़वाएं।

भारत माता की जय। वंदे मातरम - जय हिंद ।

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