अनंत चतुर्दशी पूर्ण रूप से काम्य व्रत है। इसे प्रमुखतया अर्थ-पुरुषार्थ प्राप्ति के लिए रखा जाता है। अर्थ पुरुषार्थ में जमीन-जायदाद, स्थावर मकान, वाहन, नौकरी में प्रमोशन तथा सोना, चांदी एवं जेवरात आदि वस्तुओं की प्राप्ति अभिप्रेत होती है। काम्य व्रत रखने की बात कुछ मर्यादित समय के लिए शास्त्रों में बताई गई है। इसमें से अनंत व्रत की कालावधि 14 वर्ष की है। 14 वर्षों बाद उसका पूर्णता प्रीत्यर्थ उद्यापन किया जाता है।
यदि व्यक्ति अपरिहार्य कारणवश बाहर गया हो या बीमार हो तो उसका पुत्र अनंत पूजन करे। अशौच रहने पर ब्रह्मचारी पुत्र, रिश्तेदार या पुरोहित द्वारा यह व्रत करवा लें। पिता के 14 वर्ष पूरे होने पर इच्छुक पुत्र यह व्रत रख सकता है। कुछ घरों में वंश परंपरागत, यह व्रत शुरू रहता है। यदि इस व्रत के विषय में व्यक्ति के मन में अनिच्छा, भय, तिरस्कार या अनादर हो तो व्रत रखने की अपेक्षा उद्यापन करके समाप्त कर देने में शास्त्र की मनाही नहीं है।
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