गर्ग (शुक्ल- वंश) गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो तेरह गांवों में विभक्त...
गर्ग (शुक्ल- वंश)
गर्ग ऋषि के तेरह लडके बताये जाते है जिन्हें गर्ग गोत्रीय, पंच प्रवरीय, शुक्ल बंशज कहा जाता है जो तेरह गांवों में विभक्त हों गये थे। गांवों के नाम कुछ इस प्रकार है —
(१) मामखोर (२) खखाइज खोर (३) भेंडी (४) बकरूआं (५) अकोलियाँ (६) भरवलियाँ (७) कनइल (८) मोढीफेकरा (९) मल्हीयन (१०) महसों (११) महुलियार (१२) बुद्धहट (१३) इसमे चार गाँव का नाम आता है लखनौरा, मुंजीयड, भांदी, और नौवागाँव। ये सारे गाँव लगभग गोरखपुर, देवरियां और बस्ती में आज भी पाए जाते हैं।
उपगर्ग (शुक्ल-वंश)
उपगर्ग के छ: गाँव जो गर्ग ऋषि के अनुकरणीय थे कुछ इस प्रकार से हैं।
बरवां (२) चांदां (३) पिछौरां (४) कड़जहीं (५) सेदापार (६) दिक्षापार
यही मूलत: गाँव है जहाँ से शुक्ल बंश का उदय माना जाता है यहीं से लोग अन्यत्र भी जाकर शुक्ल बंश का उत्थान कर रहें हैं यें सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं।
गौतम (मिश्र-वंश)
गौतम ऋषि के छ: पुत्र बताये जातें हैं जो इन छ: गांवों के वाशी थे।
(१) चंचाई (२) मधुबनी (३) चंपा (४) चंपारण (५) विडरा (६) भटीयारी
इन्ही छ: गांवों से गौतम गोत्रीय, त्रिप्रवरीय मिश्र वंश का उदय हुआ है, यहीं से अन्यत्र भी पलायन हुआ है ये सभी सरयूपारीण ब्राह्मण हैं।
उप गौतम (मिश्र-वंश)
उप गौतम यानि गौतम के अनुकारक छ: गाँव इस प्रकार से हैं|
(१) कालीडीहा (२) बहुडीह (३) वालेडीहा (४) भभयां (५) पतनाड़े (६) कपीसा
इन गांवों से उप गौतम की उत्पत्ति मानी जाति है।
वत्स गोत्र ( मिश्र- वंश)
वत्स ऋषि के नौ पुत्र माने जाते हैं जो इन नौ गांवों में निवास करते थे—
(१) गाना (२) पयासी (३) हरियैया (४) नगहरा (५) अघइला (६) सेखुई (७) पीडहरा (८) राढ़ी (९) मकहडा
बताया जाता है की इनके वहा पांति का प्रचलन था अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है।
कौशिक गोत्र (मिश्र-वंश)
तीन गांवों से इनकी उत्पत्ति बताई जाती है जो निम्नलिखित है —
(१) धर्मपुरा (२) सोगावरी (३) देशी
वशिष्ठ गोत्र (मिश्र-वंश)
इनका निवास भी इन तीन गांवों में बताई जाती है—
(१) बट्टूपुर मार्जनी (२) बढ़निया (३) खउसी
शाण्डिल्य गोत्र ( तिवारी,त्रिपाठी वंश)
शाण्डिल्य ऋषि के बारह पुत्र बताये जाते हैं जो इन बाह गांवों से प्रभुत्व रखते हैं —
(१) सांडी (२) सोहगौरा (३) संरयाँ (४) श्रीजन (५) धतूरा (६) भगराइच (७) बलूआ (८) हरदी (९) झूडीयाँ (१०) उनवलियाँ (११) लोनापार (१२) कटियारी, लोनापार में लोनाखार, कानापार, छपरा भी समाहित है
इन्ही बारह गांवों से आज चारों तरफ इनका विकास हुआ है, यें सरयूपारीण ब्राह्मण हैं| इनका गोत्र श्री मुख शांडिल्य त्रि प्रवर है, श्री मुख शांडिल्य में घरानों का प्रचलन है जिसमे राम घराना, कृष्ण घराना, नाथ घराना, मणी घराना है, इन चारों का उदय, सोहगौरा गोरखपुर से है जहाँ आज भी इन चारों का अस्तित्व कायम है|
उप शांडिल्य ( तिवारी- त्रिपाठी, वंश)
इनके छ: गाँव बताये जाते हैं जी निम्नवत हैं—
(१) शीशवाँ (२) चौरीहाँ (३) चनरवटा (४) जोजिया (५) ढकरा (६) क़जरवटा।
भार्गव गोत्र (तिवारी या त्रिपाठी वंश)
भार्गव ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिसमें चार गांवों का उल्लेख मिलता है जो इस प्रकार है।
(१) सिंघनजोड़ी (२) सोताचक (३) चेतियाँ (४) मदनपुर
भारद्वाज गोत्र (दुबे वंश)
भारद्वाज ऋषि के चार पुत्र बताये जाते हैं जिनकी उत्पत्ति इन चार गांवों से बताई जाती है —
(१) बड़गईयाँ (२) सरार (३) परहूँआ (४) गरयापार
कन्चनियाँ और लाठीयारी इन दो गांवों में दुबे घराना बताया जाता है जो वास्तव में गौतम मिश्र हैं लेकिन इनके पिता क्रमश: उठातमनी और शंखमनी गौतम मिश्र थे परन्तु वासी (बस्ती) के राजा बोधमल ने एक पोखरा खुदवाया जिसमे लट्ठा न चल पाया, राजा के कहने पर दोनों भाई मिल कर लट्ठे को चलाया जिसमे एक ने लट्ठे सोने वाला भाग पकड़ा तो दुसरें ने लाठी वाला भाग पकड़ा जिसमे कन्चनियाँ व लाठियारी का नाम पड़ा, दुबे की गददी होने से ये लोग दुबे कहलाने लगें।
सरार के दुबे के वहां पांति का प्रचलन रहा है अतएव इनको तीन के समकक्ष माना जाता है।
सावर्ण गोत्र ( पाण्डेय वंश)
सावर्ण ऋषि के तीन पुत्र बताये जाते हैं इनके वहां भी पांति का प्रचलन रहा है जिन्हें तीन के समकक्ष माना जाता है जिनके तीन गाँव निम्नलिखित हैं —
(१) इन्द्रपुर (२) दिलीपपुर (३) रकहट (चमरूपट्टी)
साकेत गोत्र (मलांव के पाण्डेय वंश)
साकेत ऋषि के तीन पुत्र इन तीन गांवों से सम्बन्धित बताये जाते हैं —
(१) मलांव (२) नचइयाँ (३) चकसनियाँ
कश्यप गोत्र (त्रिफला के पाण्डेय वंश)
इन तीन गांवों से बताये जाते हैं—
(१) त्रिफला (२) मढ़रियाँ (३) ढडमढीयाँ
ओझा वंश
इन तीन गांवों से बताये जाते हैं—
(१) करइली (२) खैरी (३) निपनियां
चौबे -चतुर्वेदी, वंश (कश्यप गोत्र)
इनके लिए तीन गांवों का उल्लेख मिलता है—
(१) वंदनडीह (२) बलूआ (३) बेलउजां
एक गाँव कुसहाँ का उल्लेख बताते है जो शायद उपाध्याय वंश का मालूम पड़ता है।
ब्राह्मणों की वंशावली
भविष्य पुराण के अनुसार ब्राह्मणों का इतिहास है की प्राचीन काल में महर्षि कश्यप के पुत्र कण्वय की आर्यावनी नाम की देव कन्या पत्नी हुई। ब्रम्हा की आज्ञा से दोनों कुरुक्षेत्र वासनी सरस्वती नदी के तट पर गये और कण्व चतुर्वेदमय सूक्तों में सरस्वती देवी की स्तुति करने लगे। एक वर्ष बीत जाने पर वह देवी प्रसन्न हो वहां आयीं और ब्राह्मण समृद्धि के लिये उन्हें वरदान दिया । वर के प्रभाव से कण्व के आर्य बुद्धिवाले दस पुत्र हुए जिनका क्रमानुसार नाम था -
उपाध्याय,
दीक्षित,
पाठक,
शुक्ला,
मिश्रा,
अग्निहोत्री,
दुबे,
तिवारी,
पाण्डेय,
और
चतुर्वेदी ।
इन लोगो का जैसा नाम था वैसा ही गुण। इन लोगो ने नत मस्तक हो सरस्वती देवी को प्रसन्न किया। बारह वर्ष की अवस्था वाले उन लोगो को भक्तवत्सला शारदा देवी ने अपनी कन्याए प्रदान की। वे क्रमशः
उपाध्यायी,
दीक्षिता,
पाठकी,
शुक्लिका,
मिश्राणी,
अग्निहोत्री,
द्विवेदिनी,
तिवेदिनी
पाण्ड्यायनी,
और
चतुर्वेदिनी कहलायीं।
फिर उन कन्याआं के भी अपने-अपने पति से सोलह-सोलह पुत्र हुए हैं, वे सब गोत्रकार हुए जिनका नाम -
कश्यप,
भरद्वाज,
विश्वामित्र,
गौतम,
जमदग्रि,
वसिष्ठ,
वत्स,
गौतम,
पराशर,
गर्ग,
अत्रि,
भृगु,
अंगिरा,
श्रृंगी,
कात्यायन,
और
याज्ञवल्क्य।
इन नामों से सोलह-सोलह पुत्र जाने जाते हैं।
मुख्य 10 प्रकार के ब्राह्मण ये हैं-
(1) तैलंगा,
(2) महाराष्ट्र,
(3) गुर्जर,
(4) द्रविड,
(5) कर्णटिका,
यह पांच "द्रविण" कहे जाते हैं, ये विन्ध्यांचल के दक्षिण में पाये जाते हैं, तथा विंध्यांचल के उत्तर में पाये जाने वाले या वास करने वाले ब्राम्हण —
(1) सारस्वत,
(2) कान्यकुब्ज,
(3) गौड़,
(4) मैथिल,
(5) उत्कलये,
उत्तर के पंच गौड़ कहे जाते हैं। वैसे ब्राह्मण अनेक हैं जिनका वर्णन आगे लिखा है। ऐसी संख्या मुख्य 115 की है। शाखा भेद अनेक हैं । इनके अलावा संकर जाति ब्राम्हण अनेक है । यहां मिली जुली उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हणों की नामावली 115 की दे रहा हूं, जो एक से दो और 2 से 5 और 5 से 10 और 10 से 84 भेद हुए हैं, फिर उत्तर व दक्षिण के ब्राम्हण की संख्या शाखा भेद से 230 के लगभग है, तथा और भी शाखा भेद हुए हैं, जो लगभग 300 के करीब ब्राम्हण भेदों की संख्या का लेखा पाया गया है।
उत्तर व दक्षिणी ब्राम्हणां के भेद इस प्रकार है —
81 ब्राह्मणों की 31 शाखा कुल 115 ब्राह्मण संख्या, मुख्य है -
(1) गौड़ ब्राह्मण,
(2)गुजरगौड़ ब्राह्मण (मारवाड,मालवा)
(3) श्री गौड़ ब्राह्मण,
(4) गंगापुत्र गौडत्र ब्राह्मण,
(5) हरियाणा गौड़ ब्राह्मण,
(6) वशिष्ठ गौड़ ब्राह्मण,
(7) शोरथ गौड ब्राह्मण,
(8) दालभ्य गौड़ ब्राह्मण,
(9) सुखसेन गौड़ ब्राह्मण,
(10) भटनागर गौड़ ब्राह्मण,
(11) सूरजध्वज गौड ब्राह्मण (षोभर),
(12) मथुरा के चौबे ब्राह्मण,
(13) वाल्मीकि ब्राह्मण,
(14) रायकवाल ब्राह्मण,
(15) गोमित्र ब्राह्मण,
(16) दायमा ब्राह्मण,
(17) सारस्वत ब्राह्मण,
(18) मैथल ब्राह्मण,
(19) कान्यकुब्ज ब्राह्मण,
(20) उत्कल ब्राह्मण,
(21) सरवरिया ब्राह्मण,
(22) पराशर ब्राह्मण,
(23) सनोडिया या सनाड्य,
(24)मित्र गौड़ ब्राह्मण,
(25) कपिल ब्राह्मण,
(26) तलाजिये ब्राह्मण,
(27) खेटुवे ब्राह्मण,
(28) नारदी ब्राह्मण,
(29) चन्द्रसर ब्राह्मण,
(30)वलादरे ब्राह्मण,
(31) गयावाल ब्राह्मण,
(32) ओडये ब्राह्मण,
(33) आभीर ब्राह्मण,
(34) पल्लीवास ब्राह्मण,
(35) लेटवास ब्राह्मण,
(36) सोमपुरा ब्राह्मण,
(37) काबोद सिद्धि ब्राह्मण,
(38) नदोर्या ब्राह्मण,
(39) भारती ब्राह्मण,
(40) पुश्करर्णी ब्राह्मण,
(41) गरुड़ गलिया ब्राह्मण,
(42) भार्गव ब्राह्मण,
(43) नार्मदीय ब्राह्मण,
(44) नन्दवाण ब्राह्मण,
(45) मैत्रयणी ब्राह्मण,
(46) अभिल्ल ब्राह्मण,
(47) मध्यान्दिनीय ब्राह्मण,
(48) टोलक ब्राह्मण,
(49) श्रीमाली ब्राह्मण,
(50) पोरवाल बनिये ब्राह्मण,
(51) श्रीमाली वैष्य ब्राह्मण
(52) तांगड़ ब्राह्मण,
(53) सिंध ब्राह्मण,
(54) त्रिवेदी म्होड ब्राह्मण,
(55) इग्यर्शण ब्राह्मण,
(56) धनोजा म्होड ब्राह्मण,
(57) गौभुज ब्राह्मण,
(58) अट्टालजर ब्राह्मण,
(59) मधुकर ब्राह्मण,
(60) मंडलपुरवासी ब्राह्मण,
(61) खड़ायते ब्राह्मण,
(62) बाजरखेड़ा वाल ब्राह्मण,
(63) भीतरखेड़ा वाल ब्राह्मण,
(64) लाढवनिये ब्राह्मण,
(65) झारोला ब्राह्मण,
(66) अंतरदेवी ब्राह्मण,
(67) गालव ब्राह्मण,
(68) गिरनारे ब्राह्मण
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