हमारे सनातन धर्म व संस्कृति में जल को देवता मानकर उसके सम्मान व संरक्षण की बात कही गई है। माता लक्ष्मी का एक नाम नीरजा भी है जिनका अस्तित्व जल से ही है। और वैसे भी जल के बिना जीवन तत्व का रक्षण संभव नहीं है। हमें जल के एक-एक कण को विवेक व आदर पूर्वक उपयोग करना चाहिए, साथ ही साथ जल स्रोतों की सुचिता और संवर्धन पर भी विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि आज सरित- सरोवर और जलाशयों का अभिरक्षण आने वाली पीढियां के लिए अमृत्तत्व सहजने जैसा है।
यदि हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों से जरा सा भी प्रेम व उनके भविष्य की चिंता है तो हमें अपनी जीवन शैली में आमूलचूल परिवर्तन करने होंगे और यह शपथ लेनी होगी कि हमारे द्वारा 'जल' का एक कण भी व्यर्थ नहीं जाएगा और साथ ही साथ हम ओरों को भी इस अमृत रूपी जल के कण- कण को सहजने के लिए जागरूक करना होगा।
आप सभी को 'विश्व जल दिवस' की हार्दिक शुभकामनाएं।
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