होलिका दहन क्यों मनाया जाता है, प्रह्लाद जी, होलिका, हिरण्यकश्यपु, पौराणिक कथा और भगवान श्री नरसिंह जी का मंत्र होलिका दहन क्यों मनाया जात...
होलिका दहन क्यों मनाया जाता है, प्रह्लाद जी, होलिका, हिरण्यकश्यपु, पौराणिक कथा और भगवान श्री नरसिंह जी का मंत्र
होलिका दहन क्यों मनाया जाता है ?
होली सनातन हिंदू समुदाय के सबसे महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक है। होली का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, होलिका दहन। इसे फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इसके अगले दिन रंग-गुलाल से होली खेली जाती है। इसे धुलेंडी, धुलंडी और धूलि भी कहा जाता है। कई अन्य सनातन हिंदू त्योहारों की तरह होली भी बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होलिका दहन की तैयारी त्योहार से 40 दिन पहले शुरू हो जाती हैं। लोग सूखी टहनियां, पत्ते जुटाने लगते हैं। फिर फाल्गुन पूर्णिमा की संध्या को अग्नि जलाई जाती है, जो कि आज 24 मार्च 2024 को जलाई जाएगी। और मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। दूसरे दिन सुबह नहाने से पहले इस अग्नि की राख को अपने शरीर लगाते हैं, फिर स्नान करते हैं। होलिका दहन का महत्व है कि आपकी मजबूत इच्छाशक्ति आपको सारी बुराइयों से बचा सकती है।होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।
होलिका दहन के लिए ज्यादातर प्रदोष काल का समय चुना जाता है। माना जाता है कि होलिका दहन करने से पहले होलिका की पूजा करने से आपके मन से सभी प्रकार के भय दूर होते हैं और ग्रहों के अशुभ प्रभाव में भी राहत मिलती है। होलिका की पूजा में ही यह कथा भी पढ़े जाने का चलन काफी समय से चला आ रहा है।
होलिका दहन की पौराणिक कथा
होलिका दहन का पौराणिक महत्व भी है। इस त्योहार को लेकर सबसे प्रचलित है प्रह्लाद जी, होलिका और हिरण्यकश्यप की कहानी... राक्षस हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद जी, भगवान विष्णुजी के परम भक्त थे। वहीं, हिरण्यकश्यप भगवान नारायण जी को अपना घोर शत्रु मानता था। पिता के लाख मना करने के बावजूद प्रह्लाद जी विष्णुजी की भक्ति करते रहे। असुराधिपति हिरण्यकश्यप ने कई बार अपने पुत्र को मारने की कोशिश की, लेकिन भगवान विष्णुजी की कृपा से उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान मिला था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती। उसने अपने भाई से कहा कि वह प्रह्लाद को लेकर अग्नि की चिता पर बैठेगी और उसके हृदय के कांटे को निकाल देगी। वह प्रह्लाद जी को लेकर चिता पर बैठी भी, पर भगवान विष्णुजी की ऐसी कृपा (माया) कि होलिका जल गई, जबकि प्रह्लाद जी को हल्की सी आंच भी नहीं आई।
होलिका दहन से जुड़ी एक अन्य कथा
होलिका दहन से जुड़ी एक कथा भगवान श्रीकृष्णजी ने युधिष्ठिर जी को सुनाई थी। श्री रामजी के एक पूर्वज रघु जी के राज में एक असुर नारी थी। वह नगरवासियों पर तरह-तरह के अत्याचार करती। उसे कोई मार भी नहीं सकता था, क्योंकि उसने वरदान का कवच पहन रखा था। उसे सिर्फ बच्चों से डर लगता। एक दिन गुरु वशिष्ठ जी ने उस राक्षसी को मारने का उपाय बताया। उन्होंने कहा कि अगर बच्चे नगर के बाहर लकड़ी, उपले और घास के ढेर में आग लगाकर उसके चारों ओर नृत्य करें, तो राक्षसी की मौत उस आग में जलकर हो जाएगी। फिर ऐसा ही किया गया और राक्षसी की मौत के बाद उस दिन को उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा।
होलिका दहन पर भगवान श्री नृसिंह जी, माता लक्ष्मी जी की विशेष पूजा की जाती है। उनके मंत्र पढ़े, बोले जाते हैं और उनकी कृपा पाई जा सकती है>
1. होलिका दहन पर श्री नरसिंह जी मंत्र-1
नमस्ते नरसिंहाय प्रह्लादाह्लाद दायिने
हिरण्यकशिपोर्वक्षः शिला-टङ्क-नखालये
इतो नृसिंहः परतो नृसिंहो
यतो यतो यामि ततो नृसिंहः
बहिर्नृसिंहो हृदये नृसिंहो
नृसिंहमादिं शरणं प्रपद्ये
2. नरसिंहजी मंत्र-2
उग्रं वीरं महा विष्णुं ज्वलन्तं सर्वतो मुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्युर्मृत्युं नमाम्यहम्॥
उग्रं वीरं महाविष्णुं ज्वलन्तं सर्वतो मुखम्।
नृसिंहं भीषणं भद्रं मृत्योर्मृत्युं नमाम्यहम्॥
3. होलिका दहन पर महालक्ष्मी जी मंत्र का जाप
नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते!
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
नमस्तेतु गरुदारुढै कोलासुर भयंकरी!
सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी!
सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी!
मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!
4.
ॐ नमो बजर का कोठा,
जिस पर पिंड हमारा पेठा।
ईश्वर कुंजी ब्रह्म का ताला,
हमारे आठो आमो का जती हनुमंत रखवाला।
5. भगवान श्री नरसिंह जी कवच विनयोग-
ॐ अस्य श्रीलक्ष्मीनृसिंह कवच महामंत्रस्य ब्रह्माऋिषः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीनृसिंहोदेवता, ॐ क्षौ बीजम्, ॐ रौं शक्तिः, ॐ ऐं क्लीं कीलकम् मम सर्वरोग, शत्रु, चौर, पन्नग, व्याघ्र, वृश्चिक, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, यन्त्र मंत्रादि, सर्व विघ्न निवाराणार्थे श्री नृसिहं कवचमहामंत्र जपे विनयोगः।।
एक आचमन जल छोड़ दें।
अथ ऋष्यादिन्यास –
ॐ ब्रह्माऋषये नमः शिरसि।
ॐ अनुष्टुप् छन्दसे नमो मुखे।
ॐ श्रीलक्ष्मी नृसिंह देवताये नमो हृदये।
ॐ क्षौं बीजाय नमोनाभ्याम्।
ॐ शक्तये नमः कटिदेशे।
ॐ ऐं क्लीं कीलकाय नमः पादयोः।
ॐ श्रीनृसिंह कवचमहामंत्र जपे विनयोगाय नमः सर्वाङ्गे॥
अथ करन्यास –
ॐ क्षौं अगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ प्रौं तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ ह्रौं मध्यमाभयां नमः।
ॐ रौं अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ ब्रौं कनिष्ठिकाभ्यां नमः।
ॐ जौं करतलकर पृष्ठाभ्यां नमः।
अथ हृदयादिन्यास –
ॐ क्षौ हृदयाय नमः।
ॐ प्रौं शिरसे स्वाहा।
ॐ ह्रौं शिखायै वषट्।
ॐ रौं कवचाय हुम्।
ॐ ब्रौं नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ जौं अस्त्राय फट्।
भगवान श्री नृसिंह जी ध्यान –
ॐ सत्यं ज्ञान सुखस्वरूप ममलं क्षीराब्धि मध्ये स्थित्।
योगारूढमति प्रसन्नवदनं भूषा सहस्रोज्वलम्।
तीक्ष्णं चक्र पीनाक शायकवरान् विभ्राणमर्कच्छवि।
छत्रि भूतफणिन्द्रमिन्दुधवलं लक्ष्मी नृसिंह भजे॥
कवच पाठ
ॐ नमोनृसिंहाय सर्व दुष्ट विनाशनाय सर्वंजन मोहनाय सर्वराज्यवश्यं कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ नमो नृसिंहाय नृसिंहराजाय नरकेशाय नमो नमस्ते।
ॐ नमः कालाय काल द्रष्ट्राय कराल वदनाय च।
ॐ उग्राय उग्र वीराय उग्र विकटाय उग्र वज्राय वज्र देहिने रुद्राय रुद्र घोराय भद्राय भद्रकारिणे ॐ ज्रीं ह्रीं नृसिंहाय नमः स्वाहा !!
ॐ नमो नृसिंहाय कपिलाय कपिल जटाय अमोघवाचाय सत्यं सत्यं व्रतं महोग्र प्रचण्ड रुपाय।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं ॐ ह्रुं ह्रुं ह्रुं ॐ क्ष्रां क्ष्रीं क्ष्रौं फट् स्वाहा।
ॐ नमो नृसिंहाय कपिल जटाय ममः सर्व रोगान् बन्ध बन्ध, सर्व ग्रहान बन्ध बन्ध, सर्व दोषादीनां बन्ध बन्ध, सर्व वृश्चिकादिनां विषं बन्ध बन्ध, सर्व भूत प्रेत, पिशाच, डाकिनी शाकिनी, यंत्र मंत्रादीन् बन्ध बन्ध, कीलय कीलय चूर्णय चूर्णय, मर्दय मर्दय, ऐं ऐं एहि एहि, मम येये विरोधिन्स्तान् सर्वान् सर्वतो हन हन, दह दह, मथ मथ, पच पच, चक्रेण, गदा, वज्रेण भष्मी कुरु कुरु स्वाहा।
ॐ क्लीं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्ष्रीं क्ष्रीं क्ष्रौं नृसिंहाय नमः स्वाहा।
ॐ आं ह्रीं क्ष्रौं क्रौं ह्रुं फट्।
ॐ नमो भगवते सुदर्शन नृसिंहाय मम विजय रुपे कार्ये ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल असाध्यमेनकार्य शीघ्रं साधय साधय एनं सर्व प्रतिबन्धकेभ्यः सर्वतो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा।
ॐ क्षौं नमो भगवते नृसिंहाय एतद्दोषं प्रचण्ड चक्रेण जहि जहि स्वाहा।
ॐ नमो भगवते महानृसिंहाय कराल वदन दंष्ट्राय मम विघ्नान् पच पच स्वाहा।
ॐ नमो नृसिंहाय हिरण्यकश्यप वक्षस्थल विदारणाय त्रिभुवन व्यापकाय भूत-प्रेत पिशाच डाकिनी-शाकिनी कालनोन्मूलनाय मम शरीरं स्तम्भोद्भव समस्त दोषान् हन हन, शर शर, चल चल, कम्पय कम्पय, मथ मथ, हुं फट् ठः ठः।
नमो भगवते भो भो सुदर्शन नृसिंह ॐ आं ह्रीं क्रौं क्ष्रौं हुं फट्।
ॐ सहस्त्रार मम अंग वर्तमान ममुक रोगं दारय दारय दुरितं हन हन पापं मथ मथ आरोग्यं कुरु कुरु ह्रां ह्रीं ह्रुं ह्रैं ह्रौं ह्रुं ह्रुं फट् मम शत्रु हन हन द्विष द्विष तद पचयं कुरु कुरु मम सर्वार्थं साधय साधय।
ॐ नमो भगवते नृसिंहाय ॐ क्ष्रौं क्रौं आं ह्रीं क्लीं श्रीं रां स्फ्रें ब्लुं यं रं लं वं षं स्त्रां हुं फट् स्वाहा।
ॐ नमः भगवते नृसिंहाय नमस्तेजस्तेजसे अविराभिर्भव वज्रनख वज्रदंष्ट्र कर्माशयान् रंधय रंधय तमो ग्रस ग्रस ॐ स्वाहा। अभयमभयात्मनि भूयिष्ठाः ॐ क्षौम्।
ॐ नमो भगवते तुभ्य पुरुषाय महात्मने हरिंऽद्भुत सिंहाय ब्रह्मणे परमात्मने।
ॐ उग्रं उग्रं महाविष्णुं सकलाधारं सर्वतोमुखम्।
नृसिंह भीषणं भद्रं मृत्युं मृत्युं नमाम्यहम्।
श्री लक्ष्मी नृसिंह जी करावलंब स्तोत्रम्
श्रीमत्पयोनिधिनिकेतन चक्रपाणे भोगींद्रभोगमणिराजित पुण्यमूर्ते ।
योगीश शाश्वत शरण्य भवाब्धिपोत लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 1 ॥
ब्रह्मेंद्ररुद्रमरुदर्ककिरीटकोटि संघट्टितांघ्रिकमलामलकांतिकांत ।
लक्ष्मीलसत्कुचसरोरुहराजहंस लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 2 ॥
संसारदावदहनाकरभीकरोरु-ज्वालावलीभिरतिदग्धतनूरुहस्य ।
त्वत्पादपद्मसरसीरुहमागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 3 ॥
संसारजालपतिततस्य जगन्निवास सर्वेंद्रियार्थ बडिशाग्र झषोपमस्य ।
प्रोत्कंपित प्रचुरतालुक मस्तकस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 4 ॥
संसारकूमपतिघोरमगाधमूलं संप्राप्य दुःखशतसर्पसमाकुलस्य ।
दीनस्य देव कृपया पदमागतस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 5 ॥
संसारभीकरकरींद्रकराभिघात निष्पीड्यमानवपुषः सकलार्तिनाश ।
प्राणप्रयाणभवभीतिसमाकुलस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 6 ॥
संसारसर्पविषदिग्धमहोग्रतीव्र दंष्ट्राग्रकोटिपरिदष्टविनष्टमूर्तेः ।
नागारिवाहन सुधाब्धिनिवास शौरे लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 7 ॥
संसारवृक्षबीजमनंतकर्म-शाखायुतं करणपत्रमनंगपुष्पम् ।
आरुह्य दुःखफलितः चकितः दयालो लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 8 ॥
संसारसागरविशालकरालकाल नक्रग्रहग्रसितनिग्रहविग्रहस्य ।
व्यग्रस्य रागनिचयोर्मिनिपीडितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 9 ॥
संसारसागरनिमज्जनमुह्यमानं दीनं विलोकय विभो करुणानिधे माम् ।
प्रह्लादखेदपरिहारपरावतार लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 10 ॥
संसारघोरगहने चरतो मुरारे मारोग्रभीकरमृगप्रचुरार्दितस्य ।
आर्तस्य मत्सरनिदाघसुदुःखितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 11 ॥
बद्ध्वा गले यमभटा बहु तर्जयंत कर्षंति यत्र भवपाशशतैर्युतं माम् ।
एकाकिनं परवशं चकितं दयालो लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 12 ॥
लक्ष्मीपते कमलनाभ सुरेश विष्णो यज्ञेश यज्ञ मधुसूदन विश्वरूप ।
ब्रह्मण्य केशव जनार्दन वासुदेव लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 13 ॥
एकेन चक्रमपरेण करेण शंख-मन्येन सिंधुतनयामवलंब्य तिष्ठन् ।
वामेतरेण वरदाभयपद्मचिह्नं लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 14 ॥
अंधस्य मे हृतविवेकमहाधनस्य चोरैर्महाबलिभिरिंद्रियनामधेयैः ।
मोहांधकारकुहरे विनिपातितस्य लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 15 ॥
प्रह्लादनारदपराशरपुंडरीक-व्यासादिभागवतपुंगवहृन्निवास ।
भक्तानुरक्तपरिपालनपारिजात लक्ष्मीनृसिंह मम देहि करावलंबम् ॥ 16 ॥
लक्ष्मीनृसिंहचरणाब्जमधुव्रतेन स्तोत्रं कृतं शुभकरं भुवि शंकरेण ।
ये तत्पठंति मनुजा हरिभक्तियुक्ता-स्ते यांति तत्पदसरोजमखंडरूपम् ॥ 17 ॥
इति श्री लक्ष्मी नृसिंह करावलंब स्तोत्रम् सम्पूर्णम् ॥
COMMENTS