लंका की अशोकवाटिका विध्वंस प्रकरण में मेघनाद द्वारा भक्तराज हनुमान को बंदी बनाकर रावण की सभा में ले आने पर रावण द्वारा कारण पूछे जाने पर श्रीहनुमान जी कहते हैं- ज्यादती तो तुम्हारे पुत्रों की ही है, जिन्होंने मुझे बंदी बनाने की चेष्टा की है, परंतु मैं उन्हें क्षमा करता हूँ।
तुम मेरी एक बात सुनो, बस एक बात मान लो। मैं विनय से कहता हूँ, प्रेम से कहता हूँ और सच्चे हृदय से तुम्हारे हित के लिये कहता हूँ। भाई रावण! जो काल सारी दुनिया को निगल जाता है, वह उनसे भयभीत रहता है, वह उनके अधीन रहता है। उनसे वैर करके तुम बच नहीं सकते।
तुम जानकी को ले चलो, परम कृपालु भगवान् तुम्हें क्षमा कर देंगे; वे शरणागत के सब अपराध भूल जाते हैं। तुम उनके चरणों का ध्यान करो और लंका का निष्कण्टक राज्य भोगो।
तुम बड़े कुलीन हो, तुम्हारे पास अतुल सम्पत्ति है, तुम बड़े ही विद्वान् हो और बल भी तुम्हारे पास पर्याप्त है, उन्हें पाकर अभिमान मत करो, ये चार दिन की चाँदनी है। चलो, भगवान् की शरण होओ। मैं तुमसे सत्य कहता हूँ, शपथपूर्वक कहता हूँ कि राम से विमुख होने पर तुम्हारी कोई रक्षा नहीं कर सकता-
मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान।।
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