Secure Page

Welcome to My Secure Website

This is a demo text that cannot be copied.

No Screenshot

Secure Content

This content is protected from screenshots.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This content cannot be copied or captured via screenshots.

Secure Page

Secure Page

Multi-finger gestures and screenshots are disabled on this page.

getWindow().setFlags(WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE, WindowManager.LayoutParams.FLAG_SECURE); Secure Page

Secure Content

This is the protected content that cannot be captured.

Screenshot Detected! Content is Blocked

MOST RESENT$type=carousel

Search This Blog

बाल साहित्य की दशा और सम्भावनाएं

SHARE:

  बच्चे हमारी धरोहर हैं,वे हमारे समाज के भविष्य की नींव के पत्थर भी हैं । बच्चे जितने विचारशील,परिपक्व और गहनसोच के होंगे उतना ही हमारा समाज...

  बच्चे हमारी धरोहर हैं,वे हमारे समाज के भविष्य की नींव के पत्थर भी हैं । बच्चे जितने विचारशील,परिपक्व और गहनसोच के होंगे उतना ही हमारा समाज भी विकसित और सुदृढ होगा । मौलिक रूप से प्रत्येक बालक में ज्ञान का अनन्त भंडार निहित होता है, जिसे थोड़ी सी दिशा देने की आवश्यकता होती है और वह अपना विस्तार पकड़ लेता है । इस दिशा को बाल मनोविज्ञान की सही समझ से परिमार्जित करके बालक का सही और सटीक दिशा निर्देशन सम्भव हो सकता है।

  बाल मनोविज्ञान के माध्यम से हम बच्चे के अन्तर का सम्पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने के उपरान्त व्यक्तिगत भेद के अनुसार उसकी बुद्धि के स्तर, उसकी आन्तरिक और वाह्य क्षमता तथा योग्यता के आधार पर उसकी शिक्षा का मार्ग और स्तर निश्चित करने में सफल हो सकते हैं ।

   संयुक्त परिवारों के बिखराव, अन्धाधुन्ध शहरीकरण,बदलता सामाजिक परिवेश और इलेक्ट्रानिक्स मीडिया के अभारतीय दौर और कम्प्यूटर तथा वीडियो गेम के युग में बच्चा बाल साहित्य की वट वृक्ष रुपी छाया से विलग और विरत होकर संस्कृति और सामान्य प्रकृति से दूर होकर कल्पनालोक की सैर का आदी होता जा रहा है । इलेक्ट्रानिक मीडिया धन कमाने की लालसा में ऊलजलूल, अवैज्ञानिक व अतार्किक सामग्री प्रस्तुत कर बच्चों को व्यवहारिक ज्ञान से अलग करता जा रहा है।

  इन परिस्थितियों में बाल साहित्य के माध्यम से ही, अच्छी,मनोरंजक और व्यवहारिक पठनीय सामग्री प्रस्तुत करके उन्हें निकृष्ट कल्पनालोक से वापस लाया जा सकता है । 

   बाल साहित्य लेखन कोई बच्चों का खेल नहीं है । व्यापक क्षेत्र के बावजूद सीमित सीमाओं ने इसे कठिन बना दिया है । इसे हम इस तरह भी कह सकते हैं कि बच्चों के लिये लिखने की कला लगभग ऐसी ही है जैसे बच्चों को पाल पोस कर बड़ा करना कितना कठिन एंव श्रम साध्य कार्य है । वस्तुतः जो कुछ भी बच्चों के बारे में लिखा जाता है वह बालवाड़्मय है यह किसी भी दशा में सही नहीं है । 

  सच्चा बाल-वाड़्मय वही कहा जा सकता है जो बच्चों के लिये लिखा जाता है । साहित्य का सृजन स्वान्तः सुखाय माना जाता है । यूं तो कला कला के लिये और कला उपयोगिता के लिये का विवाद सम्भवतः ललित कलाओं के जन्म से ही प्रारम्भ हो चुका था और स्वान्त;सुखाय तथा सत्यम् शिवम् सुन्दरम् का लक्ष्य भी निर्धारित किया जा चुका था ।

  इस विवाद के रक्तबीज होने का रहस्य यह है कि कसौटी पर देश,काल और परिस्थिति में से किसी भी एक के बदल जाने पर पुनर्मूल्यांकन की चर्चा आवश्यक हो जाती है । यही बात बाल साहित्य पर भी शब्दश; सही बैठती है और खरी भी उतरती है ।

    यहां यह कहना भी आवश्यक हो जाता है कि साहित्य की व्याख्या में मुख्य रूप से दो दृष्टिकोणों से अनुशीलन किया गया है । प्रथम के अनुसार वह साहित्य जो साहित्येत्तर प्रभावों,वर्जनाओं और प्रतिमानों से मुक्त है वह साहित्य है । दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार 'लोकहिताय' रचित साहित्य ही साहित्य है । 

  यहां यह स्पष्ट करना भी आवश्यक है कि साहित्य में शुद्धता का प्रश्न आधुनिक विज्ञान और तकनीकी प्रगतिके कारण उभरा है । विज्ञानवेत्ताओं और नेताओं ने सामाजिक नेतृत्व अपने अधीन करके साहित्य के नेतृत्व को किनारे कर दिया है । परिणामस्वरूप वह और अन्तर्मुखी होता गया और समाज के पथप्रदर्शन्,सुधार के लिये नेतृत्व को उसने भी गौण कर दिया । 

  लगभग यही स्थिति बाल साहित्य के सन्दर्भ में भी कही जा सकती है । इसे इतना बांध दिया गया है कि स्थिति बड़ी अस्पष्ट सी हो गई है । वर्जनाओं का अम्बार लगा है , विषयों का अकाल है । पश्चिम के परिप्रेक्ष्य में रची गई धारणाएं जबरदस्ती लादी जा रही हैं किन्तु इनके बीच भी प्रचुर बाल साहित्य सृजन हो रहा है । बाल साहित्य का भण्डार बढ रहा है ।

    हर भाषा और साहित्य का चाहे वह किसी भी क्षेत्र या देश का हो अपना एक इतिहास होता है । जहां तक हिन्दी बाल साहित्य के इतिहास अथवा उद्भव या इसके काल विभाजन का प्रश्न है, कुछ प्रतिष्ठत बाल साहित्यकारों ने इस दिशा में प्रयास किये हैं किन्तु इन सब का आधार आचार्य रामचंद्र शुक्ल का हिन्दी साहित्य का इतिहास ही रहता है । अलग से कोई नई बात कोई प्रयासकर्ता नहीं कह पाया है । बाल कविता के सन्दर्भ में भी यही स्थिति दृष्टिगत होती है, सबकी धुरी निरंकार देव सेवक पर ही टिकी रहती है ।

     यहां पर यह प्रश्न भी उठता है कि जब सब कुछ सहज उपलब्ध है तो हिंदी बाल साहित्य के पृथक से लेखन और विवेचन की आवश्यकता ही क्या है । इस सम्बन्ध में सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार डा.परशुराम शुक्ल द्वारा लिखित 'हिन्दी बाल साहित्य का इतिहास'आलेख का यह उद्धरण आवश्यक है जो बहुत सटीक व्याख्या प्रस्तुत करता है —

   "हिन्दी बाल साहित्य के अलग इतिहास की आवश्यकता दो आधारों पर अनुभव की गई- व्यवहारिक और सैद्धान्तिक । यह सत्य है कि अनेक दिग्गज साहित्यकारों- मुंशी प्रेमचन्द्र, महादेवी वर्मा, सूर्यकान्त त्रिपाठी'निराला', सुमित्रानन्दन पंत, सुभद्रा कुमारी चौहान, मैथिलीशरण गुप्त आदि साहित्यकारों ने बाल साहित्य को दोयम दर्जे का साहित्य माने जाने के कारण इन्होंने बाल साहित्य लिखना छोड़ दिया । अतः बाल साहित्य को उसका वास्तविक स्थान दिलाने के लिये हिन्दी बाल साहित्य के इतिहास की आवश्यकता है ।" (भाषा-मई-जून 2007)

     मूलतः हिन्दी बाल साहित्य की नींव का पत्थर संस्कृत बाल साहित्य और लोककथायें ही है । इसको आदर्श मानकर यदि हिन्दी बालसाहित्य की विभाजन रेखा 1800 मान ली जाय तो वह सर्वोचित होगा । संस्कृत बालसाहित्य ने अपनी समृद्ध विरासत को अपनी हिन्दी बेटी को हस्तांतरित किया,हिन्दी बाल साहित्य की पृष्टभूमि तैयार की और उसे बाल साहित्य के विश्वपटल पर प्रतिष्ठत भी किया ।

    इसी प्रकार हिन्दी बाल साहित्य को दूसरे प्रमुख कारक ने समृद्ध किया, हिन्दी और उसकी अनुगामी बोलियों, भाषाओं और उपभाषाओं के लोक साहित्य और लोककथाओं ने । लोक - कथाओं के साथ-साथ लोकगाथाओं ने भी हिन्दी बाल साहित्य को सजाने में अपना मह्त्वपूर्ण योगदान दिया है । 

  साहित्य और बाल साहित्य पर, लोकगाथाओं का जो लोक साहित्य की अमूल्य धरोहर हैं का विशेष प्रभाव पड़ता है । पूर्ववर्ती मानसिकताएं, मान्यताएं और सामाजिक संरचना का स्वरूप ये गाथाएं हमारे सामने गठरी बांध कर रख देतीं हैं । इन लोक कथाओं और लोक गाथाओं के मूल व उत्पत्ति के कारण को जानने के लिये जब हम सुदूर अतीत की ओर झांकते हैं तो हमारी आंखे और बुद्धि सृष्टि के आरम्भ पर ही जाकर विराम लेती है । यही हमारी संस्कृति के मुख्य बिन्दुओं की संवाहक भी बनती है । अतः हिन्दी बाल साहित्य निश्चित रूप से इनका भी ऋणी है ।

     डा. हरिकृष्ण देवसरे ने 1800 से 1850 तक का समय पूर्व भारतेन्दु युग के रूप में प्रस्तुत किया है । इस काल में खड़ी बोली के एक भाषा के रूप में गठन और परिमार्जन की प्रक्रिया प्रारम्भ हो चुकी थी । इस युग के सृजन में तीन साहित्यकारों सदल मिश्र, लल्लू लाल तथा राजा शिव प्रसाद सितारे हिंद के नाम विशेष उल्लेखनीय हैं ।

    हिन्दी बाल साहित्य का सुनियोजित प्रकाशन इण्डियन प्रेस, रामनारायण लाल इलाहाबाद तथा हरि दास मणिक कलकत्ता की प्रकाशन संस्थाओं के माध्यम से बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक से प्रारम्भ हो चुका था । किन्तु सही ढंग और सुचारू रूप से बाल साहित्य की समीक्षा का आज भी लगभग अकाल ही है । यद्यपि बालहित तथा साहित्य संदेश में 1939 से 1960 के मध्य कुछ लेख समीक्षा के प्रकाशित भी हुये और भी कुछ छिट-पुट लेख तद्-विषयक प्रकाशित तो हुए किन्तु वे मात्र सरसरी नज़र से सर्वेक्षण समान ही थे । 1946 में भीष्म एण्ड कम्पनी द्वारा प्रकाशित एंव श्री कृष्ण विनायक द्वारा लिखित 'बाल दर्शन' सम्भवतः बाल साहित्य विमर्श की प्रथम पुस्तक के रूप में सामने आती है । तदोपरान्त 1952 में 'हिन्दी किशोर साहित्य'जो ज्योत्सना द्विवेदी द्वारा रचित थी नन्द किशोर एण्ड ब्रदर्स बनारस से प्रकाशित हुई । 1966 में बाल काव्य पर स्वनामधन्य निरंकार देव सेवक की 'बाल गीत साहित्य' (1983 में उ०प्र० हिन्दी संस्थान से पुनर्मुद्रित) किताब महल इलाहाबाद से प्रकाशित हुई जिसे बाल साहित्य संकलन का हर दृष्टि से समग्र और समर्थ ग्रंथ कहा जा सकता है । यह ग्रंथ वर्तमान बाल साहित्यकारों का प्रतिमान एंव मार्गदर्शक भी बना । इसके पश्चात् अनेक विद्वानों ने इस विषय में योगदान प्रस्तुत किये जिनमें कुछ प्रयास अच्छे और प्रमाणिक भी थे और कुछ संकलन सूचकांक सरीखे भी थे।

    स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त पत्रकारिता ने भी करवट ली और वह भी व्यवसाय के रूप में सामने आई । समाचार पत्रों और पत्रिकाओं का प्रकाशन तो विशुद्ध व्यवसाय ही बन गया । जिनके पास अन्य साधनों से सृजित अकूत धन-सम्पदा है वे समाचार पत्र-पत्रिकाओं के धन्धे में कूद पड़े हैं । इससे इन्हें जहां एक ओर समाज में सम्मान प्राप्त होता है वहीं वे प्रशासन और राजनीति पर अपना दवाब बनाने में भी सफल रहते हैं । इसी का अनुसरण कर बच्चों के लिये पत्रिकाओं और पुस्तकों का प्रकाशन भी व्यवसाय बन गया मिशन नहीं रहा । मिशन के रूप में कार्य कर रहे लोगों ने सिद्धान्तों से समझौते नहीं किये फलस्वरूप वे निरन्तरता नहीं बनाए रख सके और असफल होकर उन्हें प्रकाशन बन्द करने पड़े। साथ ही धन्धे के रूप में बाल पत्रिकाओं का प्रकाशन करने वालों ने भी इसे घाटे का या कम मुनाफे का धन्धा समझ कर प्रकाशन बदं कर दिया । बाल पत्रिकाओं का प्रकाशन प्रारम्भ और बन्द होता रहा । आज गिनी चुनी व्यवसायिक घरानों द्वारा, पांच सरकारों द्वारा, 6 स्वैच्छिक संस्थाओं द्वारा, 13 बाल पत्रिकाएं और व्यसायिक घरानों द्वारा दो किशोर पत्रिकाएं निकाली जा रही हैं । इसके अतिरिक्त चार बाल समाचार पत्रों का अर्थात कुल 31 बाल पत्र पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है ।इनकी प्रकाशन संख्या क्या-क्या है यह विवाद का विषय रहा है ।

   विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी पिछले कुछ दिनों में बाल-पत्रिकारिता का स्वरूप कुछ उभरा सा लगता है । आर्थिक संकटों के चलते कुछ घरानों और संस्थाओं ने निरंतरता बनाए रखी है । यहां कुछ विशिष्ट बाल क्षेत्रों का उदाहरण न लें तो प्रचलन बढा भी है । वर्तमान में बालकों की पहली पसंद आज कामिक्स हो चुका है । जिसका भरपूर प्रकाशन हो भी रहा है । 

  कारण चाहे असीमित लाभ का ही हो बाल साहित्य का प्रकाशन हो तो रहा है । बच्चों की पढने की आदत पड़ तो रही है ।

  आज हमारे सामने सब से ज्वलंत प्रश्न यह है कि बच्चों का बाल-साहित्य से जुड़ाव हो तो कैसे ?, भाषा कैसी हो ?, विषय कैसे और क्या हों, वे उपदेशात्मक हों या मनोरंजक, बेतुके और बेबुनियाद अनुवादों से कैसे बचा जाय ? आदि-आदि ।

   वर्तमान में स्थिति यह है कि प्रकाशित होने वाली अधिकांश बाल-पत्रिकाएं किशोर पत्रिकाएं हैं । दस वर्ष तक के बच्चे के लिये उनमें सामग्री का अभाव ही रहता है । पता नहीं किन कारणों से बाल लेखन को अभी तक विस्तृत कैनवास नहीं मिल सका है । कारण गिरोहबंदी भी हो सकती है और सार्थक लेखन का अभाव भी ? 

  कुल मिला कर बीस लेखक या कवि सम्पूर्ण लेखन पर जमे बैठे हैं किसी और का पदार्पण हो ही नहीं पा रहा है । वे अन्धों में काने राजा बन कर राज कर रहे हैं । अपने हुक्मनामे चला रहे हैं, बाल साहित्य के मानदण्ड निर्धारित कर रहे हैं, बाल पाठक से कोई नहीं पूछ रहा कि उसे क्या चाहिए ?

    रेडियो और दूरदर्शन में भी बाल कार्यक्रमों का अभाव सा ही है ।इक्का-दुक्का आते भी हैं तो जानकारी के अभाव में आए-गए हो जाते हैं । बाल पत्रकारिता या लेखन बच्चों के लिये हो न कि विद्वता प्रदर्शन या बड़ों के लिए ।

    प्रसंग वश यहां पुनः उद्धरण देना आवश्यक है । ब्रैसी सैंड्रारस ने कहा है कि 'कोई काम इतना कठिन नही है जितना बच्चों के लिये लिखना ।' आगे कहती हैं 'बच्चों के लिये पुस्तक लिखने के बाद कोई काम इतना कठिन नहीं है जितना बच्चों की पुस्तकों के बारे में लिखना । 'प्रसंग को और विस्तार देते हुए फिर कहती हैं —'बच्चों की पुस्तकें लिखने के बाद कोई काम इतना कठिन नहीं है जितना बच्चों की पुस्तकों के बारे में लिखना किन्तु बच्चों की पुस्तकों के लिखने के बारे में लिखना इसका अपवाद है ।'

    भारतीय बाल साहित्य के परिप्रेक्ष्य में हिन्दी बाल साहित्य पर चर्चा से पूर्व उसका आकलन आवश्यक है । भारतीय समाज में बालक का प्रारम्भ से बड़ा महत्व रहा है । इसी लिए बालक को पांच वर्ष तक माता के अधीन, आठ तक पिता के और फिर पच्चीस वर्ष तक आचार्य के अधीन रखने की व्यवस्था की गई है । उपरोक्त महत्ता और जीवन पद्दति के अनुरूप हमारा प्राकृत,पाली और संस्कृत बाल साहित्य ग्रंथित है । इसी प्रकार दंत कथाओं,लोक कथाओं और रूपक कथाओं से भारतीय बाल साहित्य भरा पड़ा है । साहित्य में वात्सल्य रस को बाल साहित्य के रूप में एक विशिष्ट मान्यता प्राप्त रही है । हिन्दी बाल साहित्य से यदि पूर्व अनुवादों को हटा दिया जाय तो आधुनिक बाल साहित्य यद्यपि संख्या बल में ,बीसवी सदी के दूसरे दशक से प्रारम्भ होने के बावजूद पच्चीस हजार के लगभग पुस्तकों का प्रकाशन हो चुकने के बाद भी, इनमें से आधे से भी कम पुस्तकों को ठीकठाक और दस प्रतिशत से भी कम पुस्तकों को श्रेष्ठ बालसाहित्य का दर्जा दिया जा सकता है । 

  व्यापक अर्थ में सामान्यतः बाल साहित्य से तात्पर्य शिशु और किशोर साहित्य ही है । पांच वर्ष से कम आयु के बच्चे को मोटे तौर पर ठीक से अक्षर ज्ञान नहीं होता है । वह श्रवण मात्र से ही लोरी और अर्थहीन तुकबंद कविता का आनन्द लेता है । चार से छै वर्ष तक के बालक चित्रों या चित्रकथाओं से चेतना और आनन्द प्राप्त करते हैं । सात से दस वर्षों की वय में वह वयस्कों के सानिध्य से पढना प्रारम्भ कर देता है । इस आयु का बालक सामान्यत: तीसरी से पांचवी स्तर का छात्र होता है । इस समय अपनी मातृभाषा के 200 से अधिक शब्दों का उसे ज्ञान हो जाता है । इस आयुवर्ग का बालक लोककथा, रूपककथा, भूतप्रेत तथा राक्षसों की कथाएं पसंद करता है । इससे पूर्व वह परी कथाओं और उड़नखटोलों जैसी कथाओं का आनन्द ले चुका होता है । इस आयु वर्ग में ही उसका रुझान शिकार व युद्ध कथाएं सुनने, भ्रमण वार्ताओं,अभियान कथाओं तथा वीर कथाओं की ओर बढता है ।

   जहां तक पुस्तकों का प्रश्न है, अबतक प्रकाशित बाल पुस्तकों के सर्वेक्षण के आधार पर आलोचकों का निष्कर्ष है कि अधिकतर पुस्तकें 12 वर्ष से कम आयुवर्ग के लिये हैं । 12 से 15 की आयु के वर्ग के लिये श्रेष्ठ बाल साहित्य कम प्रकाशित हुआ है और 15 से 18 वर्ष के किशोरों के लिये तो श्रेष्ठ पुस्तकों का लगभग अभाव सा ही है । सर्वेक्षंणों से असहमति का प्रश्न ही नहीं है । एक तो बालकों के लिखने का कठिन कार्य और वह भी उस दशा में जहां आप एक निश्चित सीमा से, चाहे वह विषयगत हो, विधागत हो या भाषागत, सीमाओं का अतिक्रमण नहीं कर सकते ।

   यहां यह भी उल्लेखनीय है कि अवशेष साहित्य में अधिकाधिक भावाभिव्यक्ति है तो बाल साहित्य के सृजन में अधिकांशतः ज्ञान कराना, शिक्षा देना ही अभीष्ट बन जाता है, जो इसे सोद्देश्य लेखन होने के कारण स्वान्तः सुखाय या लोक हिताय लेखक से अलग कर सोद्देश्यपरक मूल्यों के कारण क्रत्रिम,आरोपित और उपदेशात्मक होने के दोषों से परिपूर्ण कह कर पृथक कर देता है ।

   चर्चा का बिषय तो हिन्दी में बाल साहित्य कभी रहा ही नहीं । बच्चों के लिये पत्रिकाये भी निकलती रहीं और पुस्तकें भी,मगर इनके पीछे रचनात्मक सोच रही या रही तो उस पर कुछ अमल भी होता रहा यह नही लगा । लोग जो लिखते रहे वह छपता रहा । संक्षेप में कहें तो हिन्दी साहित्य में बाल साहित्य भरती का विषय बन गया और पृष्ठों को भरता रहा । हिन्दी में बड़ों की पत्रिकाओं में कुछ पृष्ठ बच्चों के लिये 'बच्चों का कोना या अन्य नाम से'निर्धारित कर दिये जाते हैं जिन्हें भरने के लिए लिखा या लिखवाया जाता रहा है ।

   बच्चों के लिये शुद्ध व्यवसायिक पत्रिकाएं भी निकलती रही हैं किन्तु उनका मानद्ण्ड लोकप्रियता के आसपास घूमता रहा है । उदाहरण स्वरूप 'चन्दा मामा', को लिया जा सकता है जिसे बच्चों के बजाय बडों ने अधिक पढा है । बच्चों के लिये निकलने वाली पत्रिकाओं ने अधिकतर अपनी पाठ्यसामग्री को दोहराया ही है । यह अपनी रूढियों, वर्जनाओं और सीमाओं यथा लोककथा, परी कथा और प्रतीक पशु कथाओं के इर्द-गिर्द ही घूमती रहीं हैं । इनमें से कुछ तो बन्द हो चुकी हैं और कुछ बस निकलती ही जा रही हैं । कारण दुतरफा रहा है कहा जाय तो उचित होगा । 

  बाल साहित्य के लेखकों, कवियों की ओर से कोई सार्थक प्रयत्न हुआ न प्रकाशकों और सम्पादकों की ओर से ही । इन दोनों ने बाल साहित्य के वास्तविक आलोचकों बाल पाठकों की न तो प्रतिक्रियाएं ही सुनीं और न वांछना पर ही ध्यान दिया । अगर यह सब किया गया होता तो शायद, न यह ठहराव ही होता और न यह दोहराव  सम्भवतः तब इसे समकालीन जीवन से भी जोड़ा जा सकता था । अब इक्का दुक्का स्तर पर इस विषय पर विचार और कार्य हो रहा है । इस सम्बन्ध में यह कहना समीचीन होगा कि स्वतंत्र रूप से स्वंय प्रकाशित पुस्तकों में तो यह विड्म्बना के रूप में उभरा है । जो मन आया लिख दिया गया और जुगाड़ करके प्रकाशित भी करा दिया गया । भले ही वह कैसा भी हो । ऐसा नहीं है कि यह श्रेष्ठ या श्रेष्ठतम नहीं रहा किन्तु अधिक संख्या में वही हुआ जैसा कहा गया है । फलस्वरूप इस प्रकार नयापन न आ सका एक ही बात को शब्द और भाव में परिमार्जन कर प्रकाशित करा दिया गया ।

  एक या कुछ धुरियों के गिर्द बाल साहित्य चक्कर लगाता रहा । आज स्थिति यह है कि 'बहुत सारे बाल साहित्यकारों में से कुछ स्वयंभू पुरोधा भी बन गये हैं । मगर उनमें से कितने ऐसे हैं जिन्हें बच्चे अपना 'लेखक' या 'कवि' कह पाएंगे । यह बहस या विवाद का बिषय नहीं है , यह वास्तविकता है और इसे हमें स्वीकार करना चाहिए ।

     ऐसा नहीं है कि बहुत अच्छा लिखा ही नहीं गया है किन्तु प्रकाशकों, क्रीत लेखकों और पुरोधाओं की जुगलबन्दी ने उसे प्रकाशित ही नहीं होने दिया । इधर-उधर से व्यवस्था कर वह अच्छा साहित्य प्रकाशित भी हुआ तो न तो वह पाठकों तक ही पहुंच पाया और न ही इन गुटबन्दियों ने उन्हें मंच प्रदान किया और ना ही उचित समीक्षा कर प्रोत्साहित किया । फल आपके सामने है । हिन्दी का बाल साहित्यकार नम्बर तीन से भी नीचे का या यूं कहें सबसे निकृष्ट श्रेणी का साहित्यकार होकर रह गया । साहित्य के क्षेत्र में न तो वह कहीं पूछा ही जाता है और ना ही कहीं ठहरता भी है । कुछ लोग इस स्थिति में सुधार के प्रयास करते भी हैं तो या तो उनकी टांग खींची जाती है या यह गिरोहबन्द बाल साहित्य पुरोधा उनका बहिष्कार करने के फतवे जारी कर देते हैं ताकि उनकी बंधुआ बाल साहित्यजीवी प्रजा में जागरूकता न आ जाय । यह भूल कर कि वे जिस पेड़ की डाल पर बैठे हैं उस पेड़ की जड़ों में ही मट्ठा डाल रहे हैं । खैर वे जानें । बाल साहित्य उनसे नहीं वे बाल-साहित्य से जाने जाते हैं ।बालसाहित्य की उन्नति से ही उनकी उन्नति सम्भव है । हमें प्रयास पूर्वक और यदि आवश्यकता हो तो 'शठे शाठ्यम् समाचरेत्' उक्ति का अनुपालन करके भी इस दशा और स्थिति को आवश्यक रूप से बदलना होगा ।

    इन कुछ कारणों से बाल साहित्य में नयापन बहुत कम रहा । इस का क्रमिक और सतत विकास सम्भव नहीं हो सका । फलतः हिन्दी बाल साहित्य बराबर उपेक्षित, अनियोजित, बिखरा, छिटपुट, भरती का और कामचलाऊ जैसा ही बन कर रह गया । ऐसे में कोई नया लेखक आया भी तो वह इस बिखराव में इधर-उधर बिखर गया या निराश हो कर अवशेष साहित्य विधा की ओर मुड़ गया । उसे न प्रोत्साहन मिला न प्रदर्शन ही मिला तो वह यहां रुके भी क्यों ?

    जहां तक बाल साहित्य के निम्नतम दर्जे का समझे जाने का प्रश्न है, स्वंय बाल साहित्य के लेखकों, कवियों और अन्य प्रकार से बाल साहित्य से जुड़े लोगों ने कभी इस ओर गंभीर प्रयास किये ही नहीं । बाल साहित्य को श्रम और समयदान की बात निरंकार देव सेवक जैसे बिरले साहित्यकारों ने ही की है । बाल पाठकों के लिए अच्छे साहित्य की खोज के गंभीर प्रयास भी न तो हुए और न ही अब हो पा रहे हैं । फलतः परिणाम वही शून्य सरीखा है । अधिक अच्छा बाल साहित्य अधिक मात्रा में सम्भवतः तभी सम्भव हो सकेगा जब बाल साहित्य और बाल साहित्यकारों की अलग से कोई अच्छी पहचान बने और श्रेष्ठ साहित्यिक तथा व्यवसायिक दोनों स्तरों पर यह माना जाना प्रारम्भ हो जाय कि इन दोनों में उनका योगदान कम महत्वपूर्ण

नहीं है ।

   जहां तक सम्भावनाओं का प्रश्न है, यदि बदलती रूचियों और परिवर्तित संदर्भों की स्थिति ध्यान में नहीं रखी गई तो कुछ भी नहीं बदलेगा स्थिति और भी शोचनीय हो जाएगी । वर्तमान काल की सबसे बड़ी आवश्यकता है बाल साहित्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सृजन । समाज परिवर्तनशील तो होता ही है, उसके उद्देश्य, मूल्य और आवश्यकताएं बदलती रहती हैं । आज का बच्चा चूहा-बिल्ली, शेर, हिरण, तोता-मैना के कल्पनालोक से बाहर की सोच चाहता है और हम उसे उसमें ही अटकाए रखना चाहते हैं । वह नए-नए शब्द सीखना चाहता है, मगर हम उसे कम अक्ल समझ कर उसे कुछ शब्दों में ही समेटे रखना चाहते हैं । जब बच्चा अपने अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में मोटे-मोटे अंग्रेजी शब्द याद कर सकता है तो उसे हिन्दी के कठिन शब्दों से दूर क्यों रखा जाय । उसके शब्द ज्ञान को हिन्दी में ही सीमित क्यों रखा जाय । आज हमें इस पर भी विचार करना होगा । आज का बालक शौक से डिस्कवरी देखता है । तरह-तरह की वैज्ञानिक जानकारियां प्राप्त करना चाहता है तो बाल साहित्य के माध्यम से उसे वह क्यों प्रदान न की जाएं । यह जानकारियां उसके बौद्धिक विकास के साथ उसका बौद्धिक मनोरंजन भी करती हैं ।   

  समय की आवश्यकता को जान कर इस विषय पर सुप्रसिद्ध बाल साहित्यकार त्रयी डा.परशुराम शुक्ल, राजीव सक्सेना और घमण्डी लाल अग्रवाल अपना कर्तव्य पूरा कर रही है । बाल साहित्य का अब तक जो रूप रहा है उसे बदलने के लिए एक सामूहिक और सुनियोजित सोच लेकर उसका कार्यान्वयन सामुहिक रूप से दृढ इच्छाशक्ति और सम्पूर्ण क्षमताओं के साथ करना होगा । हिन्दी बाल साहित्यकारों को स्वाभिमान के साथ अपना 'स्वतंत्र व्यक्तित्व' बनाना होगा । लेखन और सोच में बड़प्पन लाना होगा । नयापन लाना होगा । वरना कुछ नहीं बदलेगा सब कुछ ऐसा ही रहेगा । ठहरे हुए जल की तरह । सड़ने की स्थिति के सन्निकट । और इस सब के जिम्मेवार हम सब होंगे । सिर्फ हम सब ।

POPULAR POSTS$type=three$author=hide$comment=hide$rm=hide

TOP POSTS (30 DAYS)$type=three$author=hide$comment=hide$rm=hide

Name

about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,CPD,1,darshan,16,Download,4,General Knowledge,31,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,39,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,अध्यात्म,200,अनुसन्धान,22,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,4,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,26,आधुनिक विज्ञान,22,आधुनिक समाज,151,आयुर्वेद,45,आरती,8,ईशावास्योपनिषद्,21,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,34,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,122,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,केनोपनिषद्,10,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,खगोल विज्ञान,1,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,2,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,51,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,50,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पूजा विधि,1,पौराणिक कथाएँ,64,प्रत्यभिज्ञा दर्शन,1,प्रश्नोत्तरी,29,प्राचीन भारतीय विद्वान्,100,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,39,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,28,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत अष्टम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत एकादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत कथा,134,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,4,भागवत के पांच प्रमुख गीत,3,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत चतुर्थ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत तृतीय स्कंध(हिन्दी),9,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,91,भागवत दशम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वादश स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत द्वितीय स्कन्ध(हिन्दी),10,भागवत नवम स्कन्ध,38,भागवत नवम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पञ्चम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,22,भागवत प्रथम स्कन्ध(हिन्दी),19,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,18,भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण(संस्कृत),2,भागवत माहात्म्य स्कन्द पुराण(हिन्दी),2,भागवत माहात्म्य(संस्कृत),2,भागवत माहात्म्य(हिन्दी),9,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत षष्ठ स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत सप्तम स्कन्ध(हिन्दी),1,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,34,भारतीय अर्थव्यवस्था,8,भारतीय इतिहास,21,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,8,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,49,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,37,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय सम्राट,1,भारतीय संविधान,1,भारतीय संस्कृति,4,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,4,मन्त्र-पाठ,8,मन्दिरों का परिचय,1,महाकुम्भ 2025,3,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,34,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,127,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीय दिवस,4,राष्ट्रीयगीत,1,रील्स,7,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,151,लघुकथा,38,लेख,182,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,9,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,2,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,10,व्रत एवं उपवास,36,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,453,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,60,स्वास्थ्य और देखभाल,4,हमारी प्राचीन धरोहर,1,हमारी विरासत,3,हमारी संस्कृति,98,हँसना मना है,6,हिन्दी रचना,33,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,
ltr
item
भागवत दर्शन: बाल साहित्य की दशा और सम्भावनाएं
बाल साहित्य की दशा और सम्भावनाएं
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/02/blog-post_919.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/02/blog-post_919.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content