***************** आखिरी प्रणाम *************
डूबते जहाज का ,
आखिरी प्रणाम हूँ ।
हारता मलाह हूँ ,
सिर्फ सर्वनाम हूँ ।।
वक्त यह गवाह है , मैं कभी रुका नहीं ।ी
लोभ लाख हों रहे , पर कभी झुका नहीं ।।
सिर्फ मानवीयता सँवारता रहा यहाँ
प्रीति से चिदंश को दुलारता रहा यहाँ ।।
किन्तु आज रोशनी ,
समुद्र में उतर .गई ,
क्षार अश्रु नेत्र में,
समेटता विराम हूँ ।।
आप मित्रता सुधा लिए पुकारते रहे ।
मैं कृतज्ञ शीश सा झुका सदैव ही रहा ।।
आप सब पुनीत प्रेम से हृदय निकुञ्ज में।
धारते रहे परन्तु मैं रहा न पुञ्ज मैं ।।
कीजिए क्षमा कि आप,
हैं उदार चित्त के,।
किन्तु भाग्यहीन मैं ,
. हुआ हूँ आज वित्त से ।।
इसलिए सुधी जनो!!
.अभी तो .राम राम हूँ ।।
जो हृदय गुना सभी लिखा सदैव आपको ।
कभी जगह न दे सका दुराव को छिपाव को ।।
सँवार ही नहीं सका स्व को तथा स्वकीय को ।
न मान दे सका कदापि मैं अमाननीय को ।।
युगीनवृत्ति के विरुद्ध ,
शब्द युद्ध रत रहा ।
गुणप्रकर्ष को कहा।
प्रदोष दोष को कहा ।।
न आकलन किया कभी ,
किये गये स्वकाम का ।।
प्रणाम आज लीजिए, विदा प्रसन्न दीजिए।।
समग्र पुण्य आप लें, समग्र पाप दीजिए ।।
स्वतंत्रता तो सोंप दी, न पुण्यशेष हैं अभी ।।
घनान्धकार में धँसा विशेष कोष है अभी ।
न ढूँढिए मुझे कभी
विशुद्ध नर चरित्र में।
मैं प्राण हारता हुआ,
समय हूँ ,। क्षुद्र शाम हूँ ।।
************प्रणव***********
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