भू धातु की रूप सिद्धि

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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भवति 

  भू सत्तायाम्। भू धातु का अर्थ होता है सत्ता = स्थिति। भूवादयो धातवःसे भू की धातु संज्ञा हुई। स्थिति में कर्म नहीं होने के कारण यह अकर्मक धातु है।

  अकर्मक धातु से लः कर्मणि च भावे चाकर्मकेभ्यः सूत्र से लकार का विधान हुआ।

  वर्तमाने लट् से वर्तमान अर्थ में भू धातु के लट् लकार हुआ भू + लट् यह रूप बना।

  लट् में ट् की हलन्त्यम् सूत्र से इत् संज्ञा और उपदेशेऽजनुनासिक इत् से अकार की इत् संज्ञा हुई। तस्य लोपः से इत्संज्ञक अ एवं ट् का लोप हो गया। भू + ल् यह रूप बना।

  तिप्‍तस्‍झिसिप्‍थस्‍थमिब्‍वस्‍मस्‍ताताञ्झथासाथाम्‍ध्‍वमिड्वहिमहिङ् सूत्र से ल् के स्थान पर तिप् आदि 18 विभक्तियां प्राप्त हुई। ल् के स्थान पर परस्मैपदी धातु से तिप् होने के कारण लः परस्‍मैपदम् से तिप् की परस्‍मैपद संज्ञा हुई।

  इसके बाद तिङस्‍त्रीणि त्रीणि प्रथममध्‍यमोत्तमाः सूत्र से तिप् तस् झि आदि तीन तीन के समुदाय को प्रथम, मध्यम और उत्तम पुरुष संज्ञा हुई।

  तान्‍येकवचनद्विवचनबहुवचनान्‍येकशः सूत्र से तिप् तस् झि आदि को क्रम से एकवचन,द्विवचन तथा बहुवचन संज्ञा हुई।

  मध्यम पुरुष तथा उत्तम पुरुष की विवक्षा नहीं होने के कारण शेषे प्रथमःसे प्रथम पुरुष का विधान किया जाता है।

  इस प्रकार एक संख्या विवक्षा होने पर द्वयेकयोर्द्विवचनैकवचने सूत्र से एकवचन में तिप् आया। भू + तिप् रूप बना।

  हलन्त्यम् से प् की इत् संज्ञा तथा तस्य लोपः से इत्संज्ञक अ का लोप हो गया। भू + ति रूप बना।

  तिङ्शित्‍सार्वधातुकम् से ति की सार्वधातुक संज्ञा हुई।

  कर्तरि शप् से शप् प्रत्यय हुआ। भू + शप् + ति रूप बना।

  शप् के प् तथा अ की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ। भू + अ + ति रूप बना।

  सार्वधातुकार्धधातुकयोः सूत्र से सार्वधातुक शप् का अ बाद में रहने के कारण भू के उ को गुण ओ हो गया। भो + अ + ति रूप बना।

  भो + अ इस स्थिति में एचोऽयवायावः से भो के ओ का अव् आदेश हुआ। भ् + अव् + अ + ति रूप बना। वर्णों के आपस में मिलने पर 

 भ् + अव् = भव्

 भव् + अ = भव

 भव + ति = भवति रूप सिद्ध हुआ।

  भवतः रूप की सिद्धि भी पूर्वोक्त भवति के समान ही होती है। प्रक्रिया यहाँ प्रदर्शित है-

भू + लट् वर्तमाने लट् से वर्तमान अर्थ में लट् लकार का विधान हुआ।

भू + ल् ट् एवं अ की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ ।

भू + तस् प्रथम पुरूष द्विवचन का तस् आया। 

भू + शप् + तस् कर्तरि शप् से शप् हुआ ।  

भू + अ + तस् श् एवं प् की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ । 

भो + अ + तस् सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू के उ का गुण ओ हुआ।

भ् + अव् + अ + तस् एचोऽयवायावः से भो के ओ का अव् आदेश हुआ ।

भ् + अव् + अ + तः सकार का ससजुषो रुः से रुत्व विसर्जनीयस्य सः से विसर्ग

भवतः परस्पर वर्ण संयोग हुआ।

भवन्ति   

भू + झि प्रथम पुरूष बहुवचन में झि आदेश हुआ ।

भू + अन्त् + इ झोऽन्तः से झ् को अन्त आदेश हुआ।

भू + अन्ति परस्पर वर्ण संयोग

भू + शप् + अन्ति कर्तरि शप् से शप् हुआ ।  

भू + अ + अन्ति श् एवं प् की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ । 

भो + अ + अन्ति सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू के उ का गुण ओ हुआ।

भ् + अव् + अ + अन्ति एचोऽयवायावः से भो के ओ का अव् आदेश हुआ ।

भव + अन्ति परस्पर वर्ण संयोग

भवन्ति अतो गुणे से पररूप हुआ।  

भवसि भवथः भवथ में युष्‍मद्युपपदे समानाधिकरणे स्‍थानिन्‍यपि मध्‍यमः सूत्र से मध्यम पुरुष का विधान होगा। शेष प्रक्रिया पूर्ववत् होगी।

भवामि 

भू + लट् वर्तमाने लट् से वर्तमान काल में लट् लकार का विधान हुआ।

भू + मिप् अस्मद्युत्तमः से उत्तम पुरूष में मिप् हुआ।

भू + मि प् की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ।

भू + शप् + मि कर्तरि शप् से शप् हुआ ।  

भू + अ + मि श् एवं प् की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ । 

भो + अ + मि सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू के उ का गुण ओ हुआ।

भ् + अव् + अ + मि एचोऽयवायावः से भो के ओ का अव् आदेश हुआ ।

भव + मि अतो दीर्घो यञि से यञादि सार्वधातुक मि बाद में होने के कारण अदन्त अंग भव के अ का दीर्घ हुआ।  

भवा + मि परस्पर वर्ण संयोग।

भवामि रूप सिद्ध हुआ। इसी प्रकार भवावः भवामः रूप बनेंगें।  

भविष्यति

भू + लृट् लृटः शेषे च से सामान्य भविष्यत् काल में लृट् लकार।

भू + तिप् तिप् आदेश, तिप् की सार्वधातुक संज्ञा, प् की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ ।

भू + स्य + ति कर्तरि शप् से शप् की प्राप्ति हुई, स्यतासी लृलुटोः से स्य प्रत्यय । 

भू + स्य + ति आर्धधातुकं शेषः से स्य की आर्धधातुक संज्ञा

भू +इ+ स्य + ति आर्धधातुकस्‍येड्वलादेः से इट् का आगम,ट् की इत्संज्ञा एवं लोप

भो +इ+ स्य + ति सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू के उ का गुण ओ हुआ।

भ् +अव् +इ+ स्य + ति एचोऽयवायावः से भो के ओ का अव् आदेश हुआ ।

भ् +अव् +इ+ ष्य + ति आदेशप्रत्ययोः से स्य के स् को ष् हुआ।

भविष्यति रूप सिद्ध हुआ। 

  इसी प्रकार भविष्यतः। भविष्यन्ति। भविष्यसि। भविष्यथः। भविष्यथ। भविष्यामि भविष्यावः भविष्यामः रूप सिद्ध करना चाहिए।

भवतु, भवतात्

भू + लोट् लोट् च से विधि, निमंत्रण आदि अर्थ में लोट् लकार का विधान हुआ।

भू + लो ट् की इत्संज्ञा एवं लोप हुआ ।

भू + तिप् प्रथम पुरूष एकवचन का तिप् आया। 

भू + शप् + ति प् का अनुबन्ध लोप। कर्तरि शप् से शप् हुआ ।  

भू + अ + ति श् एवं प् की इत्संज्ञा एवं लोप। अ की सार्वधातुक संज्ञा।

भो + अ + ति सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू के उ का गुण ओ हुआ।

भ् + अव् + अ + ति एचोऽयवायावः से भो के ओ का अव् आदेश हुआ ।

भ् + अव् + अ + तु एरुः से लोट् लकार के इकार का उ आदेश हुआ।

भवतु परस्पर वर्ण संयोग हुआ।

आशीर्वाद देने के अर्थ में भवतु के तु को तुह्‍योस्‍तातङ्ङाशिष्‍यन्‍यतरस्‍याम् से विकल्प से तातङ् आदेश होगा। तातङ् के अ तथा ङ् का अनुबन्ध लोप होने पर तात् शेष रहता है। इस प्रकार भू धातु लोट् लकार प्रथमा एकवचन में भवतु तथा भवतात् दो रूप बनेंगें।

भवताम् 

भू + लोट् अनुबन्ध लोप,भू + ल् हुआ     

भू + तस् प्रथमपुरुष द्विवचन का तस् आया। तस् की सार्वधातुक संज्ञा। 

भू + शप् + तस् कर्तरि शप् से शप् हुआ । श् प् का अनुबन्ध लोप। 

भू + अ + तस् अ की सार्वधातुक संज्ञा।

भो + अ + तस् सार्वधातुकार्धधातुकयोः से भू के उ का गुण ओ हुआ।

भ् + अव् + अ + तस् एचोऽयवायावः से भो के ओ का अव् आदेश हुआ ।

भ् + अव् + अ + तस् लोटो लङ्वत् लोट् लकार सम्बन्धी तस् को ङित्वद्भाव (ङित् के समान)

भ् + अव् + अ + ताम् ङित्वात् तस्‍थस्‍थमिपां तान्तन्तामः से तस् के स्थान पर  ताम् आदेश हुआ।

भवताम् परस्पर वर्ण संयोग हुआ।

भवन्ति की तरह भू + झि भव + अन्ति इ को एरुः के उ कर भवन्तु रूप सिद्ध करना चाहिए।

भवतात्,  भव

भू + सिप् लोट् लकार, मध्यमपुरुष एकवचन का सिप् आया।  सिप् की सार्वधातुक संज्ञा। 

भव + सि प् का अनुबन्ध लोप, शप् आगम । श् प् का अनुबन्ध लोप। गुण, अवादेश

भव + हि सेर्ह्यपिच्‍च से सि के स्थान पर हि आदेश।

भवतात् तुह्‍योस्‍तातङ्ङाशिष्‍यन्‍यतरस्‍याम् से हि को विकल्प से तातङ् आदेश हुआ।

भव तुह्‍यो सूत्र के वैकल्पिक पक्ष में अतो हेः से हि का लोप हुआ।

भवतम् तस्‍थस्‍थमिपां तान्तन्तामः से थस् को तम् । शेष प्रकिया भवताम् की तरह होगी।

भवत तस्‍थस्‍थमिपां तान्तन्तामः थ के स्थान पर त आदेश ।

भवानि

भू + मिप् लोट् लकार, उत्तम पुरुष एकवचन का मिप् आया। प् का अनुबन्ध लोप। मि की सार्वधातुक संज्ञा। 

भू +अ+ मि कर्तरि शप् से शप् हुआ । श् प् का अनुबन्ध लोप। 

भू + अ + नि मेर्निः से लोट् लकार के मि को नि आदेश।

भू + अ + आ + नि आडुत्तमस्य पिच्च से लोट् लकार के नि के पूर्व आट् का आगम, ट् का अनुबन्ध लोप।

भव + आ + नि भू के ऊ का गुण, अवादेश

अकः सवर्णे दीर्घः से अ + आ का दीर्घ एकादेश आ करने पर भवानि रूप सिद्ध हुआ।

भवाव 

भू + वस् लोट् लकार, उत्तम पुरुष द्विवचन का वस् आया। 

भू + आ + वस् आडुत्तमस्य पिच्च से नि के पूर्व आट् का आगम, ट् का अनुबन्ध लोप।

भव + आ + वस् सार्वधातुक संज्ञा, शप् , अनुबन्ध लोप, गुण, अवादेश 

भवा + वस् अकः सवर्णे दीर्घः से अ + आ का दीर्घ एकादेश आ ।

भवाव नित्यं ङितः से सकार का लोप हुआ

इसी प्रकार भवाम रूप बनेंगें।

            

विशेष- 

1. पाणिनि की प्रतिज्ञा के अनुसार भू का उ अनुनासिक नहीं माना जाता, अतः उपदेशेऽजनुनासिक इत् से उ की इत्संज्ञा एवं तस्य लोपः से लोप नहीं होता। 

2. तिप् सिप् मिप् के प् की, इट् में ट् की तथा महिङ् में ङ् की इत्संज्ञा तथा लोप हो जाता है। आताम् आथाम् एवं ध्वम् के म् की इत्संज्ञा प्राप्त होती है, परन्तु न विभक्तौ तुस्माः से निषेध हो जाता है।

3. पित् को मानकर होने वाले स्वरविधान एवं गुण के लिए इत्संज्ञक प् का विधान किया गया। इट् में ट् का विधान स्पष्टता के लिए महिङ् के ङ् की इत्संज्ञा तिङ् एवं तङ् प्रत्याहार बनाने के लिए किया गया। 

4. भू झि एस दशा में चूटू सूत्र से झ् की इत्संज्ञा प्राप्त थी, परन्तु झोऽन्तःसे झ् को अन्त आदेश हुआ।

5. यहां आत्मनेपद का विधान नहीं है, अतः कर्तरि परस्मैपदम् से भू धातु से परस्मैपद पद अर्थात तिप् आदि प्राप्त हुए। लः परस्‍मैपदम् से तिङ् को परस्‍मैपदम् प्राप्त होता है, जबकि तङानावात्‍मनेपदम् से तङ् को आत्मनेपद संज्ञा होती है। शेषात्‍कर्तरि परस्‍मैपदम् तङ् को छोड़कर शेष को परस्‍मैपद संज्ञा हुई।

6. तिङस्‍त्रीणि त्रीणि प्रथममध्‍यमोत्तमाःतथा तान्‍येकवचनद्विवचनबहुवचनान्‍येकशः ।

सूत्र का सारांश-

                   एकवचन              द्विवचन              बहुवचन

परस्‍मैपद प्रत्यय

प्रथम पुरुष   तिप्(स भवति)   तस्(तौ भवतः)    झि(ते भवन्‍ति)

मध्यम पुरुष  सिप्(त्‍वं भवसि)  थस्(युवां भवथः)  थ(यूयं भवथ)

उत्तम पुरुष   मिप्(अहं भवामि) वस्(आवां भवावः) मस्(वयं भवामः) 

आत्मनेपद प्रत्यय

प्रथम पुरुष त आताम् झ

मध्यम पुरुष थास् आथाम् ध्वम्

उत्तम पुरुष इट् वहि महिङ्

नोट- 

1. धातुरूप की सिद्धि के लिए सन्धि का ज्ञान होना आवश्यक होता है। धातुरूप सिद्धि के पहले आप एक बार पुनः सन्धि का अभ्यास अवश्य कर लें, जिससे इसमें आपको सुगमता आएगी।

2. धातुओं को 10 गणों में विभाजित किया गया। गण के आदि में जो धातु सर्वप्रथम आया उस गण का नाम उसी धातु के नाम से रखा गया है। जैसे- भू धातु आरंभ में होने के कारण भ्वादि नाम पड़ा। इसी प्रकार अद् आदि धातुओं के नाम से अदादि, जुहोत्यादि गणों के नाम हुए।

अभ्यास- 

 1. भवति रूप की सिद्धि में कितनी बार तस्य लोपः सूत्र लगा।

 2. भवति रूप की सिद्धि में किन किन वर्णों की इत्संज्ञा हुई?

 3. भवति रूप की सिद्धि में कौन सन्धि हुई?

 4. भवति रूप सिद्धि में आये प्रत्याहारों को विस्तार पूर्वक लिखिये।


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