कालिदास और राजा भोज

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  राजा भोज का विवाह रानी भानुमती से जब हो गया था तब राजा भोज रानी भानुमती के विना एक भी पल बाहर नहीं जाते थे क्योंकि राजा भोज रानी से बहुत ही प्रेम करते थे । क्योंकि महाकवि तुलसीदास जी ने भी कहा है -

  श्री मद वक्र न कीन्ह केहि प्रभुता बधिर न काहि।

   मृगनयनी के नयन सर केहि अस लाग न जाहि।।

  लेकिन इधर राज काज का कार्य सब बंद हो गया था। सभी मंत्रियों को बडी चिंता हो गयी थी कि राजा के विना कैसे काम हो, इस विषय में विचार करके कालिदास को राजा के पास रनिवास में भेजा क्योंकि कालिदास हर जगह आ जा सकते थे । कालिदास ने जाकर राजा से विचार विमर्श किया । राजाने पूरी बात कालिदास से बता दिया कि मैं रानी के देखे विना नही रह सकता ।तब कालिदास ने कहा कि चित्र कार से नंगा चित्र बनवा लो और अपने पास रख लो याद आने पर देख लिया करो । भोज ने वैसा ही किया। चित्रकार ने चित्रबना दिया ।राजा ने चित्र कालिदास को दिखाया । कालिदास ने चित्र देखकर कहा कि चित्रकार एक कमी कर दियाहै वह यह है कि रानी के के गुप्तांग के पास एक तिल है उसे नहीं बनाया है ।

  राजा ने जाकर रानी के गुप्तांग का चित्र देखा जो वहां था । राजाने सोंचा आज तक मै नही देख पाया, कालिदास कैसे देख लिया उन्हें शंका हो गयी कि कालिदास और रानी का कहीं अवैध संबंध क्योंकि कहा गया है - स्नेह:पाप शंकी ।

  अत: कालिदास को दण्ड स्वरूप देश निकाला दे दिया ।कालिदास नगर छोड़ कर जब बाहर जा रहे थे तब नगर के किनारे एक बूढी औरत ने रोंककर अपने यहां गुप्त वेष-भूषा में रहने के लिए कहकर रोंक लिया । कालिदास स्त्री वेश में रहते थे ।।

  संयोग वश भोज शिकार खेलने गये और बहुत दूर निकल गये शाम हो गई अंधेरा हो गया । जंगल का रास्ता भी नहीं दिखाई दे रहा था ।राजा वहीं जंगल में बरगद के पेड़ के नीचे घोड़े को बांधकर ऊपर पेड पर चढ गया वही रुककर रात काटने का विचार किया ।

 थोड़ी रात बीतने पर राजा ने देखा कि एक बाघ रीछ को दौड़ाये हुए आ रहा है ।रीछ उसी पेड़ में चढ गया ।रीछ और राजा ने एक दूसरे को देखा और आपस में मित्र बनकर एक दूसरे को सहारा देकर सोने का काम तय कर लिया ।सबसे पहले राजा सोने लगा।बाघ ने रीछ से राजा को गिराने के लिए कहा ।लेकिन रीछने कहा मैं मित्र के साथ धोखा नहीं दे सकता हूं ।

 आधी रात के बाद राजा के सहारे रीछ सोने लगा ।बाघ ने वही बात राजा से कहा ।राजाने रीछ को गिराने का काम किया लेकिन रीछ संभलगया ।राजा से बोला मनुष्य ज्ञानी होते हुये भी अज्ञानी के समान काम करता है। इधर बाघ घोड़े को ही मारकर खा गया और चला गया।

 सबेरा होने पर रीछ राजा को अपनी पीठ पर बिठाकर नगर के पास तक छोड़ दिया । राजा पैदल जा रहा था तभी उसे दो कुत्ते दिखाई दिये जिनको रीछ की ओर संकेत कर दिया कुत्ते भौंकते हुए रीछ के पास आये । तब रीछ ने सोंचा राजा को कुछ शिक्षा देना चाहिए । अतएव राजा को गिराकर कान में कहा -- श्वासेमीरा। 

 राजा पागल हो गया । किसी प्रकार पहचान जाने पर राजधानी पहुंचाया । रानी ने बहुत दवा एवं उपाय किया लेकिन ठीक नहीं हुआ । राजा अन्न पानी छोड़ दिया था । आवाज तक बंद हो रही थी । रानी ने घोषणा करवाया कि जो राजा को ठीक कर देगा आधा राज-पाट उसका हो जायेगा ।

 इस बात को बुढ़िया ने सुनी और कालिदास से बताया । कालिदास ने कहा कि यह देश हित की बात है अतएव रानी से जाकर कह दो कि मेरी पतोहू ठीक कर देगी लेकिन एकान्त में ही मिलेगी । बुढ़िया के कहने पर राजा को एकांत कमरे में बैठा दिया गया स्त्री के भेष में कालिदास राजा के पास गये और बोले क्या बात है राजन् !राजा ने धीमे से कहा - श्वासेमीरा

कालिदास ने कहा -सुनो --

 श्वास सार शरीरश्च वाचा सार महीपति:!

  वाचा विचलितो येन सुकृतं तेन हारितम्।।१।।

  अर्थात् --शरीर की सार वस्तु है श्वास और राजा या मनुष्य की सार वस्तु है वाणी । वाणी से जो विचलित हो गया तो मानो उसके सभी पुण्य समाप्त हो गये।।

  इसके बाद स्त्री वेषधारी कालिदास ने पूंछा -अब क्या है ? तब राजा ने कहा - सेमीरा

 कालिदास ने उत्तर दिया -

सेतुबंध समुद्रश्च गंगासागर संगम : ।

भ्रूणहामुच्यते पापै मित्र द्रोही मुच्यते ।।२।

 अर्थात भ्रूण हत्या करने वाले रामेश्वर गंगासागर आदि तीर्थ जाने पर पापरहित हो जाते हैं लेकिन मित्र द्रोही नही मुक्त होता है ।

तब कालिदास ने फिर पूंछा-अब क्या है ?

  राजा ने धीमे से कहा - मीरा ।।

 कालिदास ने कहा - सुनो ।

 मित्र द्रोही कृतघ्नश्च ये नरा:विश्वासघातिन:!

 ते नरा: नरकं यान्ति यावच्चन्द्र दिवाकरौ।।३।।

   अर्थात् मित्र द्रोही कृतघ्न और विश्वास घाती जब तक नरक में रहते हैं जब तक संसार में सूर्य और चन्द्रमा रहते हैं ।

 कालिदास ने फिर पूंछा -अब क्या है ?

राजा ने धीमे से कहा - रा 

कालिदास ने कहा - सुनो 

 राज्ञश्च राजपुत्रश्च यदि कल्याणमिच्छति ।

  दानं देहि द्विजातिभ्यो दानं दुर्गति नाशनम् ।।४।।

 अर्थात् राजा हो या राजपुत्र या कोई भी हो यदि कल्याण चाहता हो तो द्विजवरों को दान दे। क्योंकि दान से सारी दुर्गतियों का नाश हो जाता है ।

 कालिदास ने फिर पूछा - अब क्या है ?

  अब राजा स्वस्थ हो गया था । उसने कहा -

गृहे वससि कल्याणी वने नैवंतु गच्छसि ।

ऋक्ष बयाघ्रमनुष्याणां कथं जानासि सुन्दरी ।।

 अरे कल्याणी घर में रहते हो जंगल कभी गई नही हो ऋक्ष बयाघ्र मनुष्य के बीच की बात कैसे ज्ञात हो गई ।

 कालिदास ने कहा -

देवता गुरु प्रसादेन जिह्वा वसति सरस्वती ।

तन्मया विदितं सर्वे भानुमती तिलकं यथा ।।

 हे राजन ! देवता गुरु के प्रसाद से जिह्वा पर सरस्वती का निवास है अतएव मै उसी प्रकार जान गया जैसे रानी भानुमती के तिल को जान गया था ।

 तब कालिदास को पहंचान कर उनके चरणों में गिरकर राजा ने क्षमा मांगी ।

  सभी लोग प्रसन्न हो गये । रानी ने जो कहा था उसको देने को कहा ।लेकिन कालिदास ने नही लिया । सब लोग उसी प्रकार से रहने लगे ।

 अतएव मानव से अधिक जानकारी पशुओं के पास होती है और वे धोखा नहीं देते हैं । इसका सार है कि किसी को धोखा नहीं देना चाहिए ।

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