भट्टिकाव्य के 18 वें सर्ग के, छठवें और आठवें ,श्लोक में, रावण के मृत शरीर के समीप जाकर, दुखी मन से, विभीषण ने रावण की मूढ़ता को ही लंका के विनाश का कारण बताते हुए कहा कि -
प्राज्ञास्तेजस्विन:सम्यक् पश्यन्ति च वदन्ति च।
तेऽवज्ञाता महाराज!क्लाम्यन्ति विरमन्ति च।।6।।
विभीषण ने कहा कि - हे दशानन! जिस बल के अहंकार के कारण,आपने मेरी प्रार्थना को अस्वीकार करके, सभासदों के समक्ष ही,पादप्रहार करके, अपमानित किया था,तथा राम लक्ष्मण को अतितुच्छ समझकर, असावधान हो गए थे,तथा मूढ़ राक्षसों के मुख से अपनी प्रसंशा श्रवण करके, अपने मातामह (नाना) माल्यवान का अपमान कर रहे थे,तभी मेरी बुद्धि,इस निश्चय पर स्थित हो गई थी,कि - अब आपके सहित,इन सभी अहंकारियों का भी विनाश निश्चित हो गया है।
क्यों कि -
प्राज्ञास्तेजस्विन: सम्यक् पश्यन्ति च वदन्ति।
जो प्राज्ञजन होते हैं, अर्थात जो स्त्री पुरुष,किसी कार्य के होने के पूर्व ही,उसके सुपरिणाम और दुष्परिणाम का विचार करके, परिस्थिति देखकर,अपने निर्णय में परिवर्तन कर लेते हैं,वे ही प्राज्ञ अर्थात बुद्धिमान शब्द से कहे जाते हैं।
जो स्त्री पुरुष,प्राज्ञ होते हुए, तेजस्वी होते हैं, अर्थात जो स्त्री पुरुष, स्वयं के स्वभाव को परिवर्तित करने में समर्थ होते हैं, मूर्खों के द्वारा की जानेवाली निन्दा स्तुति पर विचार नहीं करते हैं,वे तेजस्वी शब्द से कहे जाते हैं।
ऐसे विवेकी पुरुष तथा विवेकिनी स्त्रियां,विनाशकाल को देखते हुए,किसी के भी हितैषी बनकर, भविष्य के दुष्परिणाम से सचेत करते हैं।
सम्यक् पश्यन्ति च वदन्ति च।
बुद्धिमान विवेकी पुरुष,जब परिणाम का विचार करके,विनाश को निश्चित रूप से देखते हैं,तभी वे *वदन्ति, अर्थात बोलते हैं।* अपने व्यक्ति को,विनाशक कार्य करते हुए देखकर,रोकने के लिए कहते हैं।
किन्तु -
तेऽवज्ञाता महाराज!
जब,हितेच्छु, बुद्धिमान स्त्री पुरुषों की अवज्ञा अर्थात अपमान होता है तो, वे दुखी हो जाते हैं।
आपने अपने हितैषी विवेकी व्यक्तियों की अवहेलना कर दी थी।
क्लाम्यन्ति विरमन्ति च।
विवेकी जनों का अपमान होते ही वे दुखी होकर,अन्त में, *विरमन्ति अर्थात चुप हो जाते हैं।
हे महाराज! इस जगत में, एकमात्र सज्जन स्त्री पुरुषों के ही मन बुद्धि, शान्त होते हैं।
जिनके मन और बुद्धि, शांत और संयमित होते हैं, इन्द्रियों में नियन्त्रण होता है,वे ही भविष्य के सुपरिणाम और दुष्परिणाम पर विचार कर पाते हैं।
यदि कोई स्त्री पुरुष,ऐसे भविष्यवक्ता, भविष्यदृष्टा का परामर्श न मानकर,अपने बल, वैभव,प्रभाव के अहंकार में आकर, अपने ही हितैषियों को अपमानित करते हैं, तो उनके स्वयं के प्राणघातक, प्राणहारक निर्णय से, स्वयं के विनाश के साथ साथ,अपने अनुयायियों का भी विनाश कर लेते हैं।
बुद्धिमान विवेकी जनों को,अपने ही परिवार का विनाश देखना पड़ता है। देख भी नहीं पाते हैं, और कहने पर, उनका अपमान भी होता है। इसीलिए तो वे,हारकर थककर,अंत में चुप हो जाते हैं।
जब कोई स्त्री पुरुष,किसी हितकारी परामर्श को मानते ही नहीं हैं तो, श्रेष्ठ पुरुषों के पास,मौन साधन के अतिरिक्त कोई उपाय भी शेष नहीं होता है।
अब 8 वें श्लोक में, विभीषण ने, मनुष्य की मूढ़ता को आत्मविनाशक बताते हुए कहा कि -
सर्वस्य जायते मान:स्वहिताच्च प्रमाद्यति।
वृद्धौ भजति चापथ्यं नरो येन विनश्यति।।8।।
मनुष्य के नाश के, विशेषरूप से तीन ही कारण होते हैं।
(1) सर्वस्य जायते मान:।।
धन,पद, प्रतिष्ठा और सामाजिक सम्मान के प्राप्त होने पर,सभी स्त्री पुरुषों को,मान अर्थात अहंकार होता है।
युवावस्था में प्रवेश करते ही,यौवन के कारण, शारीरिक बल का अहंकार होता है। शारीरिक बल का अहंकार तो सभी को होता है।
जिन युवक युवतियों ने,अपने से श्रेष्ठ,ज्येष्ठ,हितैषी स्त्री पुरुषों के परामर्श को नहीं माना,मर्यादा का उल्लंघन करके, हितैषियों का अपमान किया, और अपनी इच्छा से,स्वच्छन्दाचरण किया तो, ऐसे युवक युवतियों का जीवन ही नारकीय दुखों से भर जाता है,अथवा विनष्ट हो जाता है।
(2) स्वहिताच्च प्रमाद्यति।
पद, प्रतिष्ठा और धन तथा बल प्रभाव के अहंकार के कारण,जिस कार्य को करने से हित होना है,उसी कार्य को करने में प्रमाद करते हैं।
अहंकार का फल प्रमाद है, और प्रमाद का फल ही विनाश है।
अहंकार के कारण, प्रायः सभी स्त्री पुरुषों में,ऐसा भ्रम हो जाता है कि - कोई भी,मेरा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है।
जब ऐसा अहंकार होता है तो, विभीषण ने,उसका परिणाम बताते हुए कहा कि -
(3) वृद्धौ भजति चापथ्यम्।
धन की वृद्धि होने पर,पदप्रभाव की वृद्धि होने पर,तथा सामाजिक शारीरिक बल की वृद्धि होने पर, वे अपथ्य अर्थात कुमार्ग के सेवन करने में लग जाते हैं।
मद्यपान, द्यूत क्रीड़ा, स्त्री अपहरण, परधनापहरण, निर्बलों असहायों को दुखी करना,तथा विपरीत भोग, और विपरीत भोजन,के साथ साथ, दुष्टों का संग इत्यादि सभी अपथ्य शब्द से कहे जाते हैं।
ऐसे आचरण,एक सज्जन विवेकी स्त्री पुरुषों के नहीं हैं।
विभीषण ने कहा कि - हे दशमुख! इस अहंकार का, और अपथ्य सेवन का, और विवेकी हितैषियों की अवहेलना का, दुष्परिणाम सुनिए!
नरो येन विनश्यति।
विभीषण ने मृत पड़े हुए,रावण को सम्बोधित करते हुए,दुखी होते हुए कहा कि -
बस, एक इन्हीं तीन कारणों से,बड़े बड़े धनवानों का धन नष्ट हो जाता है। बलवानों का बल,नष्ट हो जाता है,तथा अहंकारियों का अहंकार नष्ट हो जाता है।
यदि समय रहते, कुमार्ग का त्याग नहीं किया तो,वह अहंकारी, बलवान, धनवान ही नष्ट हो जाता है।
जिन दुर्गुणों के कारण,आज से हजारों लाखों वर्षों पूर्व,रावण का, और रावण के परिवार का नाश हो गया था, उन्हीं दुर्गुणों के कारण,आज भी, स्त्री पुरुषों का विनाश हो रहा है, और भविष्य में भी, इन्हीं दुर्गुणों के कारण, ऐसे ही विनाश होता रहेगा।
thanks for a lovly feedback