भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य (अवतार)

SHARE:

  अवतार का अर्थ है – उतरना। सच्चिदानन्द स्थिति से जब परमात्मा भक्तों के प्रेम के कारण माया के क्षेत्र में उतर आते हैं तब इसे ‘अवतार’ कहते है...

  अवतार का अर्थ है – उतरना। सच्चिदानन्द स्थिति से जब परमात्मा भक्तों के प्रेम के कारण माया के क्षेत्र में उतर आते हैं तब इसे ‘अवतार’ कहते हैं। दूसरे शब्दों में भगवान जब मानवता के अंदर प्रत्यक्ष रूप में उतर आते हैं और मनुष्य के ढाँचे को पहन लेते हैं तब वह अवतार कहलाता है।

 अजन्मा भगवान श्रीकृष्ण क्या हैं, कैसे हैं, क्यों प्रकट होते हैं–इसका रहस्य उनके सिवा और कोई नहीं जानता। वे स्वयं कहते हैं–

‘मेरे प्राकट्य के रहस्य को देवता और महर्षिगण कोई नहीं जानते।’

भगवान का अवतार कब और क्यों होता है?

  प्रकृति में जब अधोगुण बढ़ जाते हैं, मानव आसुरी और राक्षसी भावों से आक्रान्त हो जाता है, उसमें अहंता-ममता, कामना-वासना, स्पृहा-आसक्ति बुरी तरह बढ़ने लगती है, चोरी, डकैती, लूट, हिंसा छल, ठगी–किसी भी उपाय से वह भोग (अर्थ, अधिकार, पद, मान, शरीर का आराम) प्राप्त करने में तत्पर हो जाता है, राजाओं और शासकों के रूप में घोर अनीतिपरायण, स्वेच्छाचारी, नीच-स्वार्थरस से पूर्ण असुरों का आधिपत्य हो जाता है।

 पवित्र प्रेम की जगह काम-लोलुपता बढ़ने लगती है, ईश्वर को मानने वाले साधु चरित्र पुरुषों पर अत्याचार होने लगते हैं, सच्चे साधकों को पग-पग पर अपमानित व लज्जित होकर पद-पद पर विघ्न-बाधाओं का सामना करना पड़ता है, मनुष्य विनाश में विकास देखने लगता है, इस प्रकार साधु हृदय मानवों की करुण पुकार जब चरम सीमा पर पहुँच जाती है तब भगवान का अवतार होता है।

 दानव, दैत्य, आसुरी स्वभाव के मनुष्य और अत्याचारी राजाओं के भारी भार (पापों) से त्रस्त पृथ्वीदेवी गौ का रूप धारण कर अनाथ की भांति रोती-बिलखती हुई अपनी व्यथा सुनाने के लिए ब्रह्माजी के पास गई।

पृथ्वी के लिए भाररूप कौन है ?

 पृथ्वी ने ब्रह्माजी से कहा– ‘जो लोग भगवान की भक्ति नहीं करते हैं, गुरु, देव व भक्तों के निंदक हैं, माता-पिता, गुरू, स्त्री, पुत्र व असहाय पालनीय-योग्य का पालन नहीं करते हैं, मित्रदोही, झूठी गवाही देने वाले, विश्वासघातक, हरिनाम को बेचने वाले, लोभी, जीवहिंसक हैं और पूजा, यज्ञ, व्रत, उपवास कुछ नहीं करते, ऐसे दैत्यों के भीषण भार से मैं पीड़ित हूँ।’

 ब्रह्माजी ने पृथ्वी को धीरज बँधाया और सभी देवताओं व शिवजी को साथ लेकर क्षीरसागर के तट पर श्रीविष्णु के पास गए। वहां उन्होंने पुरुषसूक्त से भगवान का स्तवन किया।फिर ब्रह्माजी समाधिस्थ हो गए।समाधि में ही उन्हें क्षीरशायी भगवान की दैववाणी सुनाई दी। भगवान श्रीकृष्ण ‘ईश्वरों के भी ईश्वर’ हैं।

कृष्णं स्वयं विगणिताण्डपतिं परेशं

साक्षादखण्डमतिदेवमतीवलीलम्।

कार्यं कदापि न भविष्यति यं विना हि।

गच्छाशु तस्य विशदं पदमव्ययं त्वम्।। (श्रीगर्गसंहिता)

  अर्थात् हे ब्रह्माजी ! साक्षात् भगवान श्रीकृष्ण ही अगणित ब्रह्माण्डों के स्वामी, परमेश्वर, अखण्डस्वरूप तथा देवातीत हैं। उनकी लीलाएँ अनन्त एवं अनिर्वचनीय हैं। उनकी कृपा के बिना यह कार्य कदापि सिद्ध नहीं होगा। अत: आप उन्हीं के अविनाशी एवं परम उज्जवल धाम में शीघ्र जाएं।

  ब्रह्माजी सभी देवताओं के साथ भगवान श्रीकृष्ण के गोलोकधाम में आए।इस बीच वहां एक दिव्य मणियों व पारिजात-पुष्पों से सुसज्जित रथ आया जिस पर शंख, चक्र, गदा, पद्म धारण किए पीताम्बरधारी महाविष्णु महादेवी सरस्वती और महालक्ष्मी संग विराजमान थे। वे नारायण रथ से उतरकर श्रीकृष्ण के शरीर में लीन हो गए। भगवान नृसिंह भी पधारे और वे भी भगवान श्रीकृष्ण के तेज में समा गए। फिर एक-एक कर श्वेतद्वीप के स्वामी, भगवान श्रीराम, यज्ञनारायण हरि, भगवान नर-नारायण पधारे और वे भी श्रीराधिकेश्वर के विग्रह में विलीन हो गए। यह देखकर ब्रह्माजी के साथ सभी देवतागण आश्चर्यचकित हो गए। तब सभी देवताओं ने भगवान की स्तुति की–

कृष्णाय पूर्णपुरुषाय परात्पराय

यज्ञेश्वराय परकारणकारणाय।

राधावराय परिपूर्णतमाय साक्षाद्

गोलोकधामधिषणाय नम: परस्मै।।

योगेश्वरा: किल वदन्ति मह: परं त्वं

तत्रैव सात्वतजना: कृतविग्रहं च।

अस्माभिरद्य विदितं यददोऽद्वयं ते

तस्मै नमोऽस्तु महतां पतये परस्मै।। (श्रीगर्गसंहिता)

  अर्थात् जो भगवान श्रीकृष्ण पूर्ण पुरुष, पर से भी पर, यज्ञों के स्वामी, कारणों के भी परम कारण, परिपूर्णतम परमात्मा और साक्षात् गोलोकधाम के अधिवासी हैं, उन परम पुरुष राधावर को हम सादर नमस्कार करते हैं। योगेश्वर लोग कहते हैं कि आप परम तेज:पुँज हैं, शुद्ध अन्त:करण वाले भक्तजन आपको लीलावतार मानते हैं, परन्तु हम लोगों ने आज आपके जिस स्वरूप को जाना है, वह अद्वैत एवं अद्वितीय है। अत: आप महत्तम तत्त्वों एवं महात्माओं के भी अधिपति हैं, आप परब्रह्म परमेश्वर को नमस्कार है।

  देवताओं द्वारा की गयी स्तुति से संतुष्ट होकर भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार धारण करने का वचन दिया। भगवान ने कहा–

  पृथ्वी का भार उतारने के लिए जब वह पृथ्वी पर लीला करेंगे तब तुम देवगण भी यदुकुल में जन्म लेकर लीला में सहयोग करो। वे परम पुरुष साक्षात् भगवान स्वयं वसुदेव के घर में प्रकट होंगे। उनकी व उनकी प्रियतमा श्रीराधा की सेवा के लिए देवांगनाएं भी वहां जन्म धारण करें–

वसुदेवगृहे साक्षाद् भगवान् पुरुष: पर:।

जनिष्यते तत्प्रियार्थं सम्भवन्तु सुरस्त्रिय:।। (श्रीमद्भागवत)

  इसके बाद भगवान ने दिव्य गोप-गोपियों को बुलाकर कहा–‘गोप-गोपीगण ! तुम सब नन्द के ब्रजधाम में अवतीर्ण होओ। श्रीराधिके ! तुम बृषभानु के घर जाओ, मैं तुमको बालक रूप में कमलकानन नें ग्रहण करूँगा।’

  इसके बाद भगवान ने देवी कमला लक्ष्मी से कहा–‘देवि ! तुम कुण्डिन नगर में राजा भीष्मक के घर अवतरित हो, मैं वहां जाकर तुम्हारा पाणिग्रहण करूँगा।’ फिर वहां पधारी देवी पार्वती से कहा–‘तुम सृष्टि-संहारकारिणी महामाया हो, तुम अंश से यशोदा के गर्भ से अवतीर्ण होओ। मानवगण भक्तिपूर्वक तुम्हारी पूजा करेंगे। तुम्हारे प्रकट होते ही वसुदेव मुझे यशोदा के सूतिकागृह में रखकर तुम्हें वहां से ले आयेंगे। फिर कंस को देखते ही तुम पुन: भगवान शिव के पास चली जाना। मैं पृथ्वी का भार उतारकर अपने धाम में लौट आऊँगा।’

  इस प्रकार इस सारस्वत कल्प में स्वयं भगवान ही अपने सम्पूर्ण अंश-कला-वैभवों के साथ पूर्ण रूप से प्रकट हुए हैं। श्रीगर्गाचार्यजी ने श्रीगर्गसंहिता में कहा है–

  हे गोविन्द ! आप अंशांश, अंश, कला, आवेश तथा पूर्ण–समस्त अवतारसमूहों से संयुक्त हैं। आप परिपूर्णतम परमेश्वर सम्पूर्ण विश्व की रक्षा करते हैं तथा वृन्दावन में सरस रासमण्डल को भी अलंकृत करते हैं।’

प्रगटे अभिराम स्याम रसिक ब्रज-बिहारी।

बृंदावन नंद-भवन जन-मन-सुखकारी।।

हरन विषम भूमि-भार, करन दुष्ट-दल-उधार।

सरन संत-जन उबार, अखिल अघ बिदारी।।

मुदित भए प्रेमी जन, संत भए निर्भय मन।

डरे सकल खल दुर्जन , अघी-अनाचारी।। (पद रत्नाकर)

  कुन्तीजी भगवान के अवतार के प्रयोजनों का उल्लेख करती हुई कहती हैं–

  हे भगवन् ! आपने अजन्मा होकर जन्म क्यों लिया, इसका कारण बतलाते हुए कोई लोग कहते हैं कि आपने पुण्यश्लोक राजा युद्धिष्ठिर का यश बढ़ाने के लिए यदुवंश में जन्म लिया, अथवा मलयाचल की कीर्ति बढ़ाने के लिए जैसे चन्दन प्रकट होता है वैसे ही यदुवंश की कीर्ति बढ़ाने के लिए आपने उनके वंश में अवतार लिया। दूसरे कोई लोग कहते हैं कि वसुदेव तथा देवकी ने पूर्वजन्म में आपसे पुत्र रूप में प्रकट होने की प्रार्थना की थी, इसीकारण आप अजन्मा होते हुए भी उनके पुत्र बनकर आए। कुछ लोगों का कहना है कि पृथ्वी का भार उतारने के लिए ही आपने भूतल पर अवतरण किया है।

  अंत में गीता के चौथे अध्याय के सातवें व आठवे श्लोक में श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है–

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।

अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।

परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।

धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे।।

अर्थात् हे भारत ! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात् साकाररूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ। साधु पुरुषों का उद्धार, दुष्टों का विनाश तथा अच्छी तरह से धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ।

 अखिल रसामृतसिंधु षडैश्वर्यपूर्ण भगवान चाहे जिस किसी भी कारण से अवतरित होते हों, पर जिन्होंने उनकी सौंदर्यसुधा राशि का तनिक सा भी पान कर लिया है, वे तो यही समझते हैं कि हमारे लिए ही भगवान का दिव्य प्राकट्य है।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

अध्यात्म,200,अनुसन्धान,19,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,2,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,13,आधुनिक विज्ञान,19,आधुनिक समाज,146,आयुर्वेद,45,आरती,8,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,5,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,119,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,1,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,49,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,48,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,99,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,38,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत कथा,118,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,3,भागवत के पांच प्रमुख गीत,2,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,90,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत नवम स्कन्ध,25,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,21,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,12,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,33,भारतीय अर्थव्यवस्था,4,भारतीय इतिहास,20,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,6,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,40,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,35,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,1,मन्त्र-पाठ,7,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,33,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,124,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,168,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,10,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,1,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,9,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,59,स्वास्थ्य और देखभाल,1,हँसना मना है,6,हमारी संस्कृति,93,हिन्दी रचना,32,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,17,Download,3,General Knowledge,29,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
ltr
item
भागवत दर्शन: भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य (अवतार)
भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य (अवतार)
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/02/blog-post_64.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/02/blog-post_64.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content