श्रीहनुमानजी भीम का अहंकार को तोड़कर उनको आशीर्वाद दिया

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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    महाभारत युद्ध के समय। गदाधारी भीमसेन बेहद बलशाली और युद्ध- कौशल- निपुण तथा अत्यंत शक्तिशाली होने के कारण उनको अंहकार घेर लिया था। समय आने से इस अंहकार को दूर करने के लिए चिरंजीवी हनुमान जी एक लीला रची। इस लीला में भीम को अपनी अंदर में छिपी अहंकार के बारे में एहसास हुआ और उन्होंने उस गलती को सुधार कर हनुमान जी से क्षमा याचना की। इससे भीम पर हनुमान जी प्रसन्न हुए और उनको दुर्लभ विराट रूप में दर्शन देने के साथ- साथ आशीर्वाद के रूप से असीम शक्ति भी प्रदान की।

    बात ये है कि पांडव जब वनवास भोग रहे थे, उस दौरान पंच पांडवों को अज्ञातवास में वेश बदलकर रहना पड़ा था। द्रौपदी भी पांडवों के साथ एक आश्रम में रहकर समय व्यतीत करने लगीं थी। एक दिन जब वे आश्रम में अकेली बैठी हुईं थी, तब एक सूंदर तथा सुगन्धित पुष्प उड़कर उनके हाथ में लगी। लेकिन यह विरल पुष्प आसपास की कंही से नहीं थी। द्रौपदी को उस पुष्प से प्यार हो गयी और मन ही मन सोची की क्यों इस मोहक फूलों के एक गजरा अपने माथे पर न पहने ! अनन्तर भीमजी को बुलाकर उन्हें उस फूल को दिखाई और इस फूलों की गजरा पहनने की आग्रह जताई। द्रौपदी की इच्छा को पूरा करने के लिए भीमजी पुष्प की खोज में निकल पड़े। पुष्प की सुगंध जिस दिशा से आ रही थी, भीम उसी दिशा की ओर चलने लगे। पुष्प की खोज करते हुए भीम एक वन के द्वार पर जा पहुंचे। वन में जैसे ही भीम ने प्रवेश करने का प्रयास किया, उनकी नजर रास्ते में लेटे एक वृद्ध वानर पर अटक गया। भीम ने वानर से आग्रह किया कि वे रास्ते से हट जाएं। लेकिन वानर ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।

      वानर से भीम ने पुन: हट जाने को कहा, लेकिन इस बार वानर ने कहा कि वह बहुत कमजोर है, वह हिल नहीं सकता; इसीलिए उनको लांघ कर निकल जाना पड़ेगा। वानर के इस व्यवहार से भीम को क्रोध आ गया और अपनी शक्तियों के बारे में बताने लगे। भीम ने वानर को अपना परिचय दिया कि वे कुंती पुत्र हैं और पवन उनके पिता है। हनुमान का भाई हूं। लेकिन ये सब सुनकर भी वानर पर कोई असर नहीं पड़ा। भीम का क्रोध बढ़ने लगा और उन्होंने वानर से कहा कि अधिक क्रोध न दिलाए, नहीं तो परिणाम भुगतने होंगे।

       वानर के रूप में प्रकट हुए हनुमान ने भीम से कहा कि यदि अधिक जल्दी है, तो वह रास्ते से पूूंछ को हटाकर जा सकते हैं। भीम ने गुस्से में आकर वानर की पूंछ हटाने की कोशिश की, लेकिन वे इसे हिला भी नहीं पाए। तब भीम को अभास हुआ कि ये कोई साधारण वानर नहीं है। भीम हाथ जोड़कर खड़े हो गए और वानर से परिचय पूछा। तब भी वानर ने भीम को बताया कि वह कोई और नहीं, बल्कि हनुमान हैं।

       हनुमान जी को देखकर चकित भीम हाथ जोड़कर खड़े हो गए। तब हनुमान जी ने भीम को बताया कि आगे विशेष वन है। यह रास्ता देवताओं का है और यह मनुष्यों के लिए सुरक्षित नहीं है। इसीलिए तुम्हारी रक्षा के लिए मुझे यंहा आना पड़ा। भीम को हनुमान जी ने उस पुष्प के बारे में बताया कि द्रौपदी के लिए यंहा से वह पुष्प संग्रह कर सकते हो। भीम ने आवश्यक परिमाण पुष्प चयन करने के बाद जब हनुमान जी से विदाई लेने की वक्त आयी, तो इसीसे पहले अत्यंत विनम्र होकर विनती की-- वे एक बार बड़े भाई हनुमान जी का दुर्लभ विराट रूप को दर्शन करना चाहता है।

       छोटे भाई भीम की प्रार्थना से प्रीत हनुमान जी ने उन्हें विराट रूप में दर्शन दिया। इस रूप को दर्शन करने के बाद भीम उनसे आशीर्वाद लेने के लिए उनके तरफ बढ़ा, तो हनुमान जी अपनी साधारण रूप में आकर उन्हें 'विजय भवः' कहकर आशीर्वाद दी और गले से लगाकर अपने शरीर से असीमित शक्ति को भीम के अंदर संचालित कर वज्र कठोर बनाये। अब भीम के शरीर के अंदर हनुमान जी की शक्ति भी इक्कठी हो गयी थी और आगे यह दो शक्तियों को लेकर महाभारत के युद्ध में भीम जी का भीम- अवतार रंग लाई थी।

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