श्री नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश मे स्थित है कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुडी हुई ह...
श्री नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश मे स्थित है कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुडी हुई हैं।
एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठाया और तांडव नृत्य शुरू कर दिया इसने स्वर्ग में सभी देवताओं को भयभीत कर दिया कि भगवान शिव का यह रूप प्रलय ला सकता है। देवताओं ने भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दें, श्री नैना देवी मंदिर वह जगह है जहां सती की आंखें गिरीं।
मंदिर से संबंधित एक अन्य कहानी नैना नाम के गुज्जर लड़के की है। एक बार वह अपने मवेशियों को चराने गया और देखा कि एक सफेद गाय अपने थनों से एक पत्थर पर दूध बरसा रही है उसने अगले कई दिनों तक इसी बात को देखा एक रात जब वह सो रहा था, उसने देवी माँ को सपने मे यह कहते हुए देखा कि वह पत्थर उनकी पिंडी है। नैना ने पूरी स्थिति और उसके सपने के बारे में राजा बीर चंद को बताया जब राजा ने देखा कि यह वास्तव में हो रहा है, उसने उसी स्थान पर श्री नयना देवी नाम के मंदिर का निर्माण करवाया।
श्री नैना देवी मंदिर महिशपीठ नाम से भी प्रसिद्ध है क्योंकि यहाँ पर माँ श्री नयना देवी जी ने महिषासुर का वध किया था।किंवदंतियों के अनुसार, महिषासुर एक शक्तिशाली राक्षस था जिसे श्री ब्रह्मा द्वारा अमरता का वरदान प्राप्त था, लेकिन उस पर शर्त यह थी कि वह एक अविवाहित महिला द्वारा ही परास्त हो सकता था इस वरदान के कारण, महिषासुर ने पृथ्वी और देवताओं पर आतंक मचाना शुरू कर दिया। राक्षस के साथ सामना करने के लिए सभी देवताओं ने अपनी शक्तियों को संयुक्त किया और एक देवी को बनाया जो उसे हरा सके, देवी को सभी देवताओं द्वारा अलग अलग प्रकार के हथियारों की भेंट प्राप्त हुई। महिषासुर देवी की असीम सुंदरता से मंत्रमुग्ध हो गया और उसने शादी का प्रस्ताव देवी के समक्ष रखा, देवी ने उसे कहा कि अगर वह उसे हरा देगा तो वह उससे शादी कर लेगी, लड़ाई के दौरान, देवी ने दानव को परास्त किया और उसकी दोनों ऑंखें निकाल दीं।
एक और कहानी सिख गुरु गोबिंद सिंह जी के साथ जुडी हुई है, जब उन्होंने मुगलों के खिलाफ अपनी सैन्य अभियान 1756 में छेड़ दिया, वह श्री नैना देवी गये और देवी का आशीर्वाद लेने के लिए एक महायज्ञ किया। आशीर्वाद मिलने के बाद, उन्होंने सफलतापूर्वक मुगलों को हरा दिया।
माता श्री नैना देवी की पूजा विधि
मंगल आरती
माता की पहली आरती मंगल आरती कहलाती है. प्रात: ब्रह्ममुहूर्त में लगभग 4:00 बजे पुजारी मंदिर खोलता है और घंटा बजा कर माता को जगाया जाता है। तदनंतर माता की शेय्या समेट कर रात को गडवी में रखे जल से माता के चक्षु और मुख धोये जाते है। उसी समय माता को काजू, बादाम, खुमानी, गरी, छुआरा, मिश्री, किशमिश, आदि में से पांच मेवों का भोग लगाया जाता है जिसे 'मोहन भोग ' कहते है।
मंगल आरती में दुर्गा सप्तशती में वर्णित महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती, के ध्यान के मंत्र बोले जाते है, माता के मूल बीज मंत्र और माता श्रीनयनादेवी के ध्यान के विशिष्ट मंत्रो से भी माता का स्तवन होता है। ये विशिष्ट मन्त्र गोपनीय है इन्हें केवल दीक्षित पुजारी को ही बतलाया जा सकता है।
श्रृंगार आरती
श्रृंगार आरती के लिए मंदिर के पृष्ठ भाग की ढलान की और निचे लगभग 2 किलोमीटर की दुरी पर स्थित 'झीडा' नामक बाऊडी से एक व्यक्ति जिसे 'गागरिया' कहते है , नंगे पांव माता के स्नान एवं पूजा के लिए पानी की गागर लाता है। श्रृंगार आरती प्रातः लगभग 6:00 बजे शुरू होती है जिसमे षोडशोपचार विधि से माता का स्नान तथा हार श्रृंगार किया जाता है। इस समय सप्तशलोकी दुर्गा और रात्रिसूक्त के श्लोको से माता की स्तुति की जाती है। माता को हलवा और बर्फी का भोग लगता है जिसे 'बाल भोग' कहते है। श्रृंगार आरती उपरांत दशमेश गुरु गोविन्द सिंह जी द्वारा स्थापित यज्ञशाला स्थल पर हवन यज्ञ किया जाता है जिसमे स्वस्ति वाचन, गणपति पुजन, संकल्प, स्त्रोत, ध्यान, मन्त्र जाप, आहुति आदि सभी प्रक्रियाये पूर्ण की जाती है।
मध्याह्न आरती
इस अवसर पर माता को राज भोग लगता है राज भोग में चावल, माश की दाल, मुंगी साबुत या चने की दाल, खट्टा, मधरा और खीर आदि भोज्य व्यंजन तथा ताम्बूल अर्पित किया जाता है मध्यान्ह आरती का समय दोपहर 12:00 बजे है, इस आरती के समय सप्तशलोकी दुर्गा के श्लोको का वाचन होता है।
सायं आरती
सायं आरती के लिए भी झीडा बाऊडी से माता के स्नान के लिए गागरिया पानी लाता है लगभग 06:30 बजे माता का सायंकालीन स्नान एवं श्रृंगार होता है इस समय माता को चने और पूरी का भोग लगता है. ताम्बूल भी अर्पित किया जाता है। इस समय के भोग को 'श्याम भोग' कहते है सायं आरती में सौंदर्य लहरी के श्लोको का गायन होता है।
शयन आरती
रात्रि 09:30 बजे माता को शयन करवाया जात है इस समय माता की शेय्या सजती है दुध् और बर्फ़ी का भोग लगता है, जिसे 'दुग्ध् भोग' के नाम से जाना जाता है, शयन आरती के समय भी श्रीमद शंकराचार्य विरचित सौन्दर्य लहरी के श्लोको के सस्वर गायन के साथ् माता का स्तवन होता है।