श्री कृष्ण के बाल सखा और सखियां

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

  भगवान श्रीकृष्ण के बचपन के कई मित्र थे जैसे मनसुखा, मधुमंगल, श्रीदामा, सुदामा, उद्धव, सुबाहु, सुबल, भद्र, सुभद्र, मणिभद्र, भोज, तोककृष्ण, वरूथप, मधुकंड, विशाल, रसाल, मकरन्‍द, सदानन्द, चन्द्रहास, बकुल, शारद, बुद्धिप्रकाश आदि। बचपन में यह सभी गोकुल और वृंदावन की गलियों में माखन चोरते और उधम मचाते थे। बाल सखियों में चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा आदि के नाम लिए जाते हैं।

  ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार सखियों के नाम इस तरह हैं- चन्द्रावली, श्यामा, शैव्या, पद्या, राधा, ललिता, विशाखा तथा भद्रा। कुछ जगह ये नाम इस प्रकार हैं- चित्रा, सुदेवी, ललिता, विशाखा, चम्पकलता, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और सुदेवी। कुछ जगह पर ललिता, विशाखा, चम्पकलता, चित्रादेवी, तुंगविद्या, इन्दुलेखा, रंगदेवी और कृत्रिमा (मनेली)। इनमें से कुछ नामों में अंतर है। प्रस्तुत है श्रीकृष्‍ण की सखी ललिता के बारे में कुछ तथ्य-

  पौराणिक ग्रंथों के अनुसार श्रीजी राधारानी की ८ सखियां थीं। अष्टसखियों के नाम हैं-

१. ललिता,

२. विशाखा,

३. चित्रा,

४. इंदुलेखा,

५. चंपकलता,

६. रंगदेवी,

७. तुंगविद्या और

८. सुदेवी।

  राधारानी की इन आठ सखियों को ही "अष्टसखी" कहा जाता है। श्रीधाम वृंदावन में इन अष्टसखियों का मंदिर भी स्थित है। इस सखियों में सबसे करीबी ललिता थीं।

  कहते हैं कि ललिता भी श्रीकृष्ण से उतना ही प्रेम करती थी जितना की राधा, परंतु ललिता ने अपने प्रेम को कभी भी अभिव्यक्त नहीं किया था। 

  राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम और निकुंज लीलाओं की साक्षी थीं ललिता। ललिता ने राधा का हर मौके पर साथ दिया था। ललिताजी का राधारानी की सहचरी के अतिरिक्त खंडिका नायिका के रूप में भी चित्रंण होता है, मतलब सेविका के रूप में राधा माधव के साथ आती हैं, और कभी-कभी नायिका बनकर कृष्णजी के साथ विहार करती हैं।

  कहते हैं कि स्वयं भगवान शिव ने भी ललिता से 'सखीभाव' की दीक्षा प्राप्त की थी। ललिताजी ने शिवजी से कहा था कि रासलीला में श्रीकृष्‍ण के अतिरिक्त किसी पुरुष को प्रवेश नहीं है तब शिवजी को भी सखी बनना पड़ा था।  

  कई लोग यह भी मानते हैं कि मीरा के रूप में ललिता ने ही जन्म लेकर श्रीकृष्‍ण भक्ति का प्रचार प्रसार किया था। भक्त सूरदासजी ने ललिता के बारे में अपनी रचनाओं में बहुत कुछ लिखा है। यह भी कहा जाता है कि भक्त सूरदासजी श्रीकृष्‍ण के काल में किसी और नाम से जन्में थे और तब भी वे अंधे ही थे। उस काल में वे यादवकुल के गुरु से मिले थे।

  माना जाता है कि अकबर के समय में राधा रानी की सखी ललिता ने स्वामी हरिदास के रूप में अवतार लिया था। स्वामी हरिदास वृन्दावन के निधिवन के एकांत में अपने दिव्य संगीत से प्रिया-प्रियतम (राधा-कृष्ण) को रिझाते थे। बांके बिहारी नाम से वृन्दावन में मंदिर स्थित है जिसकी स्थापना स्वामी हरिदास ने की थी। तानसेन भी उनके संगीत और गायन के बहुत ही ज्यादा प्रभावित थे। 

  मथुरा जिले में बरसाना के ऊंचागाव में ललिता अटोर नामक पहाड़ी पर ललिता का भव्य मंदिर है। इस मंदिर की जन्मोत्सव परंपरा के अनुसार २०२१ में ललिताजी को हुए ५२४९ वर्ष हो चुके हैं।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top