व्यापार वास्तु की सफलता के लिए हमेशा ध्यान रखें वास्तु के उपाय
भूखंड पर भवन निर्माण के लिए नींव की खुदाई और शिलान्यास शुभ मुहूर्त में किया जाना चाहिए। शिलान्यास का अर्थ है शिला का न्यास अर्थात् गृह कार्य निर्माण प्रारम्भ करने से पुर्व उचित मुहूर्त में खुदाई कार्य करवाना। यदि मुहूर्त सही हो तो भवन का निर्माण शीघ्र और बिना रुकावट के पूरा होता है।
शिलान्यास के लिए उपयुक्त स्थान पर नींव के लिए खोदी गई गृहारंभ की नींव
वैशाख, श्रावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष और फाल्गुन इन चंद्रमासों में गृहारंभ शुभ होता है। इनके अलावा अन्य चंद्रमास अशुभ होने के कारण निषिद्ध कहे गये हैं। वैशाख में गृहारंभ करने से धन धान्य, पुत्र तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है। श्रावण में धन, पशु और मित्रों की वृद्धि होती है। कार्तिक में सर्वसुख।मार्गशीर्ष में उत्तम भोज्य पदार्थों और धन की प्राप्ति। फाल्गुन में गृहारंभ करने से धन तथा सुख की प्राप्ति और वंश वृद्धि होती है। किंतु उक्त सभी मासों में मलमास का त्याग करना चाहिए।
भवन निर्माण कार्य शुरू करने के पहले अपने आदरणीय विद्वान पंडित से शुभ मुहूर्त निकलवा लेना चाहिए।
भवन निर्माण में शिलान्यास के समय ध्रुव तारे का स्मरण करके नींव रखें। संध्या काल और मध्य रात्रि में नींव न रखें। नए भवन निर्माण में ईंट, पत्थर, मिट्टी ओर लकड़ी नई ही उपयोग करना। एक मकान की निकली सामग्री नए मकान में लगाना हानिकारक होता है।
किसी भी इमारत के निर्माण में कई क्रिया-व्यापार जुडे़ रहते हैं। जैसे नींव डालने के लिए खुदाई करना, इन सबके लिए विशेष मुहूर्त होते हैं जिनका पालन करने से शुभ परिणाम प्राप्त केए जा सकते हैं, साथ ही निर्माण कार्य भी तेजी से और सुरक्षित ढंग से होता है।
वास्तु पुरुष की दिशा विचार
महर्षि वशिष्ठ अनुसार तीन-तीन चंद्रमासों में वास्तु पुरुष की दिशा निम्नवत् रहती है —
भाद्रपद, कार्तिक, आश्विन मास में ईशान की ओर। फाल्गुन, चैत्र, वैशाख में नैत्य की ओर। ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण में आग्नेय कोण की ओर। मार्गशीर्ष, पौष, माघ में वायव्य दिशा की ओर वास्तु पुरुष का मुख होता है। वास्तु पुरुष का भ्रमण ईशान से बायीं ओर अर्थात् वामावर्त्त होता है। वास्तु पुरुष के मुख पेट और पैर की दिशाओं को छोड़कर पीठ की दिशा में अर्थात् चौथी, खाली दिशा में नींव की खुदाई शुरु करना उत्तम रहता है।
महर्षि वशिष्ठ आदि ने जिस वास्तु पुरुष को ‘वास्तुनर’ कहा था, कालांतर में उसे ही शेष नाग, सर्प, कालसर्प और राहु की संज्ञा दे दी गई। अतः पाठक इससे भ्रमित न हों। मकान की नीवं खोदने के लिए सूर्य जिस राशि में हो उसके अनुसार राहु या सर्प के मुख, मध्य और पुच्छ का ज्ञान करते हैं। सूर्य की राशि जिस दिशा में हो उसी दिशा में, उस सौरमास राहु रहता है।
जैसा कि कहा गया है- ”यद्राशिगोऽर्कः खलु तद्दिशायां, राहुः सदा तिष्ठति मासि मासि।”
यदि सिंह, कन्या, तुला राशि में सूर्य हो तो राहु का मुख ईशान कोण में और पुच्छ नैत्य कोण में होगी और आग्नेय कोण खाली रहेगा। अतः उक्त राशियों के सूर्य में इस खाली दिशा (राहु पृष्ठीय कोण) से खातारंभ या नींव खनन प्रारंभ करना चाहिए। वृश्चिक, धनु, मकर राशि के सूर्य में राहु मुख वायव्य कोण में होने से ईशान कोण खाली रहता है। कुंभ, मीन, मेष राशि के सूर्य में राहु मुख नैत्य कोण में होने से वायव्य कोण खाली रहेगा। वृष, मिथुन, कर्क राशि के सूर्य में राहु का मुख आग्नेय कोण में होने से नैत्य दिशा खाली रहेगी। उक्त सौर मासों में इस खाली दिशा (कोण) से ही नींव खोदना शुरु करना चाहिए। अब एक प्रश्न उठता है कि हम किसी खाली कोण में गड्ढ़ा या नींव खनन प्रारंभ करने के बाद किस दिशा में खोदते हुए आगे बढ़ें? वास्तु पुरुष या सर्प का भ्रमण वामावर्त्त होता है। इसके विपरीत क्रम से- बाएं से दाएं/दक्षिणावर्त्त/क्लोक वाइज नीवं की खुदाई करनी चाहिए। यथा आग्नेय कोण से खुदाई प्रारंभ करें तो दक्षिण दिशा से जाते हुए नैत्य कोण की ओर आगे बढ़ें। विश्वकर्मा प्रकाश में बताया गया है-
‘ईशानतः सर्पति कालसर्पो विहाय सृष्टिं गणयेद् विदिक्षु। शेषस्य वास्तोर्मुखमध्य -पुछंत्रयं परित्यज्यखनेच्चतुर्थम्॥’
वास्तु रूपी सर्प का मुख, मध्य और पुच्छ जिस दिशा में स्थित हो उन तीनों दिशाओं को छोड़कर चौथी में नींव खनन आरंभ करना चाहिए। इसे हम निम्न तालिका के मध्य से आसानी से समझ सकते हैं।
वास्तु शास्त्र से संबंधित प्रमुख बिंदु
(1) शास्त्र के अनुसार शिलान्यास के लिए खात (गड्ढा) सूर्य की राशि को ध्यान में रखकर किया जाता है ।
सूर्य खात निर्णय
राशि 5,6,7, (सिंह, कन्या, तुला) — आग्नेय कोण
राशि 2,3,4, (वृष, मिथुन, कर्क) — नैऋत्य कोण
राशि 11,12,1 (कुंभ, मीन, मेष) — वायव्य कोण
राशि 8,9,10 (वृश्चिक, धनु, मकर) — ईशान कोण
आधुनिक वास्तुशस्त्रियों का मानना है कि किसी भी समय में खुदाई केवल उत्तर-पूर्व दिशा से ही शुरू करनी चाहिए।
(2) जब भूमि सुप्तावस्था में हो तो खुदाई शुरू नहीं करनी चाहिए। सूर्य संक्रांति से 5,6,7,9,11,15,20,22,23 एंव 28 वें दिन भूमि शयन होता है। मतान्तर से सूर्य के नक्षत्र 5,7,9,12,19 तथा 26 वे नक्षत्र में भूमि शयन होता है।
(3) मार्गशीर्ष, फाल्गुन, वैशाख, माघ, श्रावण और कार्तिक में गृह आदि का निर्माण करने से गृहपति को पुत्र तथा स्वास्थ्य लाभ होता है।
(4) महर्षि वशिष्ठ के मत में शुक्लपक्ष में गृहारम्भ करने से सर्वविध सुख और कृष्णपक्ष में चारों का भय होता है।
(5) गृहारम्भ में 2,3,5,6,7,10,11,12,13, एवम 15 तिथियां शुभ होती हैं। प्रतिपदा को गृह निर्माण करने से दरिद्रता, चतुर्थी को धनहानि, अष्टमी को उच्चाटन, नवमी को शस्त्र भय, अमावस्या को राजभय और चतुर्दशी को स्त्रीहानि होती है। महर्षि मृगु के मत में चतुर्थी, अष्टमी, अमावस्या तिथियां, सूर्य, चन्द्र और मंगलवारों को त्याग देना चाहिए।
(6) चित्रा, अनुराधा, मृगशिरा, रेवती, पुष्य, उत्तराषाढा, उत्तराफाल्गुणनी, उत्तराभद्रपदा, रोहिणी, धनिष्ठा और शतभिषा नक्षत्रों में गृहारम्भ शुभ होता है।
(7) शुभ्रग्रह से युक्त और वृष्ट, स्थिर तथा द्विस्वभाव लग्न में वास्तुकर्म शुभ होता है। शुभग्रह बलवान होकर दशमस्थान हो अथवा शुभग्रह पंचम, पवम हो और चंद्रमा, 1,4,7,10 स्थान में हो तथा पापग्रह तहसरे, छठे ग्यारहवें स्थान में हो तो ग्रह शुभ होता है।
( रविवार या मंगलवार को गृह आरम्भ करना कष्टदायक होता है। सोमवार कल्याणकारी, बुधवार धनदायक, गुरूवार बल-बुद्धिदायक, शुक्रवार सुख-सम्पदाकारक तथा शनिवार कष्टविनाशक होता है।)
(9) वास्तुप्रदीप कं अनुसार, शनिवार स्वाति नक्षत्र, सिंह लग्न, शुक्लपक्ष, सप्तमी तिथि, शुभ योग तथा श्रावण मास, इन सात सकारों के योग में किया गया वास्तुकर्म पुत्र, धन-धान्य और ऐश्वर्य दायक होता है।
(10) पुष्प, उत्तरफाल्गुनी, उत्तराषढ़ा, उत्तराभद्रपद, रोहिणी, मृगश्रि, श्रवण, अश्लेष एवम् पूर्वाषढ़ा नक्षत्र यदि बृहस्पति से युक्त हो और गुरुवार हो तो उसमें बनाया गया गृह पुत्र और रात्यदायक होता है।
(11) विशाखा, अश्विनी, चित्रा, घनिष्ठा, शतभिषा और आर्द्रा ये नक्षत्र शुक्र से युक्त हो और शुक्रवार का ही दिन हो तो ऐसा गृह धन तथा धान्य देता है।
(12) रोहिणी, अश्विनी, उत्तराफाल्गुनी, चित्रा हस्त ये नक्षत्र बुध से युक्त हो और उस दिन बुधवार भी हो तो वह गृह सुख और पुत्रदायक होता है।
(13) कर्क लग्न में चंद्रमा, केंद्र में बृहस्पति, शेष ग्रह मित्र तथा उच्च अंश में हों तो ऐसे समय में बनाया हुआ गृह लक्ष्मी से युक्त होता है।
(14) मीन राशि में स्थित शुक्र यदि लग्न में हो या कर्क का बृहस्पति चौथे स्थान में स्थित हो अथ्वा तुला का शनि ग्यारहवें स्थान में हो तो वह घर सदा धन युक्त रहता है।
(15) चंद्रमा, गुरू या शुक्र यदि निर्बल, नीचराशि में या अस्त हो तो गृहारम्भकार्य नहीं करना चाहिए।
(16) अगर घर की कोई महिला सदस्य गर्भावस्था कें आखिरी कुछ माह में हो या घर का कोई सदस्य गंभीर रूप से बीमार हो तो खुदाई का कार्य प्रारम्भ नहीं करना चाहिए।
(17) शनिवार रेवती नक्षत्र, मंगल की हस्त, पुष्प नक्षत्र में स्थिति, गुरू शुक्र अस्त, कृषणपक्ष, निषिद्ध मास, रिक्तादि तिथियां, तारा-अशुद्धि, भू-शयन, मंगलवार, अग्निवान, अग्निपंचक, भद्रा, पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र तथा वृश्चिक, कुंभ लग्नादि गृहारम्भ में वर्जित ईन को छोड़ देना चाहिए है।
वास्तु टिप्स: व्यापार की सफलता के लिए हमेशा ध्यान रखें वास्तु के उपाय
वास्तु के नियमानुसार बना प्रतिष्ठान व्यापार में सफलता को प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है। अत: किसी भी औद्योगिक परिसर या कल कारखाने की उन्नत्ति एवं विस्तार के लिए वास्तु के नियमों के अनुसार निर्माण करना चाहिए।
व्यापार करने के लिये ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) से देव कृपा, अग्रि कोण (दक्षिण-पश्चिम) से समृद्धि, उत्तर दिशा से व्यापारिक सम्बन्धों में बढ़ोत्तरी, नैऋत्य कोण (दक्षिण-पश्चिम) से स्थिरता, पूर्व दिशा से सम्मान और सरकारी कार्य, वायव्य कोण (उत्तर-पश्चिम) से कार्यों में गति, दक्षिण से वर्चस्व व पश्चिम से कर्मचारियों की निष्ठा प्रभावित होती है। अत: कोई भी दिशा अगर वास्तु अनुरूप नहीं है तो व्यवसाय की गाड़ी का वह पहिया रुक जायेगा काम में बार बार रूकावट आना सुरू हो जाऐगी ।
वास्तुशास्त्र के अनुसार फैक्ट्री या उद्योग के लिए सदैव ऐसी भूमि का चयन करना चाहिए जिस पर तुलसी का पौधा पनपता हो अर्थात भूमि का उपजाऊ और सकारात्मक ऊर्जा से परिपूर्ण हो। व्यापारिक परिसर का भूखण्ड वर्गाकार या आयताकार होना चाहिए। याद रखें आयताकार में भूखण्ड़ की लम्बाई चौड़ाई के दुगने से ज्यादा नहीं होनी चाहिये। यदि औद्योगिक भूखण्ड का ईशान कोण बढ़ा हुआ हो तो ऐसी भूमि स्वीकार की जा सकती है परन्तु इसके अलावा किसी भी दिशा का बडऩा व घटना शुभ नहीं होता।
व्यवसायिक भूखण्ड में उत्तर एवं पूर्व क्षेत्र को हल्का एवं खुला हुआ रखना चाहिए। क्योंकि ईशान क्षेत्र को अवरूद्ध या बंद रखने से ईश्वरीय शुभ ऊर्जा में रुकावट आती है जिससे धन का आगमन और व्यवसाय की प्रगति रूक जाती हैं। भूखण्ड के मध्य स्थान अर्थात् ब्रह्म स्थान को खुला रखना चाहिए। इस स्थान पर किसी भी तरह का निर्माण कार्य करना व्यवसाय में निरंन्तर परेशानियों को जन्म देता है।
व्यवसायिक भूमि का ढ़ाल हमेशा उत्तर या पूर्व की ओर रखें। इस तरह औद्योगिक इकाईयों की मुख्य फैक्ट्री के भवन जहाँ उत्पादन होता है, के छत का झुकाव भी उत्तर और पूर्व में रखना श्रेष्ठ होता है। व्यवसायिक परिसर के उत्तर, पूर्व या उत्तर-पूर्व में कुँआ, हैण्डपम्प, भूमिगत जल व्यवस्था, फव्वारा आदि रखना वास्तु में जल तत्व को संरक्षित करता है और सकारात्मक वातावरण को उत्पन्न करता है। छत पर पानी का टैंक या संचयन पश्चिम दिशा, या दक्षिण-पश्चिम दिशा में रखना चाहिए। फैक्ट्री या उद्योग में काम करने वाले कर्मचारी एवं मजदूरों के लिए कमरा हमेशा पश्चिम क्षेत्र में बनाना चाहिए।
ऐसा करने से कर्मचारी निष्ठा से कार्यों को सम्पादित करते हैं। व्यवसायिक परिसर में स्नानगर के लिए सबसे उपयुक्त स्थान पूर्व दिशा है। किसी भी व्यवसायिक प्रतिष्ठान के मुख्य द्वार के बाहर कचरा, गंदे पानी का नाला, खड्डा नहीं होना चाहिए। यह उद्योग की संपन्नता को रोककर उद्योगपति को कर्जदार बना देता है। उद्योगपति को खुद नैऋत्य (दक्षिण-पश्चिम) क्षेत्र में बैठना चाहिए ताकि फैक्ट्री पर उनका स्वामित्व एवं नियंत्रण बना रहें। मशीनें जो ज्यादा स्थान घेरे या वजन में भारी हो, उन्हें ठीक नैऋत्य दिशा के मध्य से दक्षिण या पश्चिम में स्थापित करना चाहिए।
वास्तुशास्त्र के अनुसार व्यावसायिक प्रतिष्ठानों में शुभ ऊर्जा बढ़ाने हेतु कुछ मुख्य निम्र बिन्दुओं को सदैव ध्यान में रखना चाहिए :-
- पीली मिट्टी वाला भूखण्ड हो तो दुकान एंव ऑफिस आदि के लिए शुभ होता है।
- काली मिट्टी वाला भूखण्ड औद्योगिक कार्यो के लिए शुभ है।
- प्रतिष्ठान इस प्रकार बनाया जाए कि भूखण्ड के पूर्व और उत्तर अधिक से अधिक खुला हों।
- प्रतिष्ठान परिसर में मंदिर उत्तर पूर्व दिशा में बनाना चाहिए।
- सेल्समैन या रिसेप्शन का कर्मचारी के बैठने की व्यवस्था में वह पूर्व या
- उत्तर दिशा की तरफ देखता हुआ होना चाहिए।
- स्वामी कक्ष को प्रशासनिक भवन के नैऋव्य में बनाना चाहिए।
- मालिक और कर्मचारी के बैठने के स्थान के ऊपर लोहे का सीमट का बीम नहीं होना चाहिए।
- भूखण्ड को दक्षिण-पश्चिम की ओर से ऊँचा तथा ईशान कोण की ओर से नीचा रखना चाहिए।
- एकाउन्ट्स, खजांन्ची, लेखा विभाग या धन के लेन देन सम्बन्धि कक्ष उत्तर दिशा में रखें।
- कॉनफ्रेन्स रूम पूर्व दिशा में अत्यधिक शुभ रहता है।
आज कल घर, दुकान, फैक्टरी में दान पात्र के रूप में गाय माता की मूर्ति दान पात्र के लिए रखते हैं जो गाय माता की दान पात्र वाली मूर्ति की कमर से पैसे डालने के लिए कमर कटटी हुई ओर निकालने के लिए पेट वाली जगह कटटी होती हैं और हमारे सनातन धर्म में गाय माता के शरीर में सभी देवी देवता का वास होता है सनातन धर्म के अनुसार हम खंडित मूर्ति की ना पुजा करते ना घर में रखते हैं यदि आप के घर, दुकान, फैकटरी में गाय माता के चित्र वाला दान पात्र जो ओर कमर से कटटा हुआ पैसा डालने वाला पेट से कटटा पैसा निकालने वाला ऊसे तुरंत हटा कर ओर डिब्बा या अन्य पात्र दान पात्र के लिए लगाऐ नहीं तो आप के घर, दुकान, फैकटरी प्रेत दोष, पित्र दोष, वास्तु दोष ओर घर में लडाई झगड़े, अन्य नुकसान सभी जगह अशांति और बहारी नुकसान की आशंका बनी रहेगी।
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