*************** नहीं दिखता ***************
घरों से अब पराँठों का धुँआं आना नहीं दिखता ।
कुऐं पर चूडियों का खनखनाना अब नहीं दिखता।।
कढी का हर पकौडा बन रहा है सख्त व्यापारी ।
बडी मासूमियत से मुँह में घुल जाना नहीं दिखता।।
न मक्के , बाजरी की रोटियों की थाप आती है ।
कि उन पर ताजे माखन का पिघलजाना नहींदिखता
हजारों मीठे पल दम तोडते हैं अब रसोई में ।
वहाँ अम्मा का मीठा गुनगुनाना अब नहीं दिखता ।।
वो देसी घी में बेसन भूनना चीनी मिलाना फिर
हथेली में दबा लड्डू बनाना अब नहीँ दिखता ।।
यहाँ कारें हैं डिस्को हैं बियर है बारबालायें ।
यहाँ दादीकेकिस्सों का खजाना अबनहीदिखता ।।
यहाँ चाकू से कटती ब्रेड मैं मक्खन तो लगता है ।
मगर मेहनत से बनी रोटी पचाना अब नहीं दिखता ।।
शहर खूँख्वार आदमखोर होते जा रहे हर दिन ।
कहीं भी प्यार से मिलना मिलाना अब नहीं दिखता ।।
"प्रणव"
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