सुबेल पर्वत पर भगवान् पर्णशय्या पर लेटे हुए थे। सुग्रीव की गोद में उनका सिर था, अंगद-हनुमान चरण दबा रहे थे, धनुष और तुणीर अगल-बगल रखे हुए थे, लक्ष्मण पीछे की ओर वीरासन से बैठकर भगवान् को देख रहे थे, भगवान् अपने हाथ में बाण लेकर सहला रहे थे।
भगवान् ने चन्द्रमा की ओर देखकर पूछा- ‘भाई ! अपनी-अपनी बुद्धि के अनुसार तुम लोग बताओ कि यह चन्द्रमा में श्यामता कैसी है ?’
सुग्रीव, विभीषण, अंगद आदि ने अपने-अपने भाव के अनुसार उसके कारण बतलाये। सबके पीछे हनुमान ने कहा- ‘प्रभो ! चन्द्रमा आपका सेवक है। आपका भी उस पर अनन्त प्रेम है। वह आपको अपने हृदय में रखता है और आप उसके हृदय में रहते हैं। बस, आप ही चन्द्रमा के हृदय में श्यामसुन्दर रूप से दीख रहे हैं।’
भगवान् हँसने लगे, सबको बड़ी प्रसन्नता हुई।
कह हनुमंत सुनहु प्रभु ससि तुम्हार प्रिय दास।
तव मूरति बिधु उर बसति सोई स्यामता अभास।।
हनुमानजी को तो सर्वत्र भगवान् के ही दर्शन होते थे। चन्द्रमा में उन्होंने भगवान् के दर्शन किये तो इसमें आश्चर्य की क्या बात है ?
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