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रंभा और श्री शुकदेव जी का संवाद

यहाँ पर तपस्वी "शुकदेव जी" के सामने विश्व सुंदरी रंभा को दर्शाते हुए एक कलात्मक चित्रण प्रस्तुत किया गया है।  रंभा और "श्री श...

तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती॥ रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई ।।

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 हे कामदेव के शत्रु! आप भी दिन-रात आदरपूर्वक राम-राम जपा करते हैं - ये राम वही अयोध्या के राजा के पुत्र हैं? या अजन्मे, निर्गुण और अगोचर कोई...

 हे कामदेव के शत्रु! आप भी दिन-रात आदरपूर्वक राम-राम जपा करते हैं - ये राम वही अयोध्या के राजा के पुत्र हैं? या अजन्मे, निर्गुण और अगोचर कोई और राम हैं?

‘आप तो महाराज ! रात-दिन आदरपूर्वक ‘राम-राम-राम’ जप कर रहे हैं । एक-एक नाम लेते-लेते उसमें आपकी श्रद्धा, प्रेम, आदर उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है । *दिन राती*

न रात का खयाल है, न दिन का । वह नाम किसका है ? वह ‘राम’ नाम क्या है महाराज ? 

लेकिन आज हमारी क्या हाल है

माला तो कर में फिरै, जीभ फिरै मुख माहिं।

मनुवा तो चहुँदिसि फिरै, यह ते सुमिरन नाहिं।।

 मनुष्य हाथ में माला फेरते हुए जीभ से परमात्मा का नाम लेता है पर उसका मन दसों दिशाओं में भागता है। यह कोई भक्ति नहीं है।

खैर हमें इसमें नहीं पड़ना चाहिए।

हां ऐसा पार्वतीजी के पूछने पर शिवजीने श्रीरामजी की कथा सुनायी ।

पहले भगवान् श्रीशंकर ने राम-कथा को रचकर अपने मन में ही रखा । वे दूसरों को सुनाना नहीं चाहते थे, पर फिर अवसर पाकर उन्होंने यह राम-कथा पार्वतीजी को सुनायी ।

        भगवान् शंकर का ‘राम’ नाम पर इतना स्नेह था कि चिताभस्मलेपः

 वे मुर्देकी भस्म अपने शरीर पर लगाते हैं । इस विषयमें एक बात सुनी है।

 शिव जी ने अपने कंठ में राम नाम क्यों धारण किया है।

 राम जी के सबसे बड़े भक्त शिवजी है।शिवजी निरन्तर राम ,नाम का जप करते है।

 भगवान शंकर जी कहते हैं कि मैं ये दो अक्षर मैं किसी को भी नहीं दूंगा । इन्हें मैं अपने कण्ठ में रखूंगा ।'

 ये दो अक्षर 'रा' और 'म' अर्थात् 'राम-नाम' हैं । यह 'राम-नाम' रूपी अमर-मन्त्र शिवजी के कण्ठ और जिह्वा के अग्रभाग में विराजमान है ।

भगवान शिव को 'र' और 'म' अक्षर क्यों प्रिय हैं ?

 भगवान शिव को राख और मसान इसलिए प्रिय हैं क्योंकि राख में 'रा' और मसान में 'म' अक्षर है जिनको जोड़ देने से 'राम' बन जाता है और भगवान शिव का राम-नाम पर बहुत स्नेह है ।

एक बार कुछ लोग एक मुरदे को श्मशान ले जा रहे थे और 'राम-नाम सत्य है' ऐसा बोल रहे थे । शिवजी ने राम-नाम सुना तो वे भी उनके साथ चल दिए । जैसे पैसों की बात सुनकर लोभी आदमी उधर खिंच जाता है, ऐसे ही राम-नाम सुनकर भगवान शिव का मन भी उन लोगों की ओर खिंच गया । अब लोगों ने मुरदे को श्मशान में ले जाकर जला दिया और वहां से लौटने लगे । शिवजी ने विचार किया कि बात क्या है ? अब कोई आदमी राम-नाम ले ही नहीं रहा है । उनके मन में आया कि उस मुरदे में ही कोई करामात थी, जिसके कारण ये सब लोग राम-नाम ले रहे थे, अत: मुझे उसी के पास जाना चाहिए । शिवजी ने श्मशान में जाकर देखा कि वह मुरदा तो जलकर राख हो गया है । अत: शिवजी ने उस मुरदे की राख अपने शरीर में लगा ली और वहीं मसान में रहने लगे । किसी कवि ने कहा है।

बार-बार करत रकार व मकार ध्वनि ।

पूरण है प्यार राम-नाम पे महेश को।।

कण्ठ में 'राम-नाम' की शक्ति से भगवान शिव द्वारा हलाहल का पान

नाम प्रभाव जान सिव नीको ।

कालकूट फलु दीन्ह अमी को।।

 जब देवताओं और असुरों के द्वारा समुद्र-मंथन किया गया तो सर्वप्रथम उसमें से हलाहल विष प्रकट हुआ, जिससे सारा संसार जलने लगा । देवता और असुर भी उस कालकूट विष की ज्वाला से दग्ध होने लगे । इस पर भगवान विष्णु ने भगवान शिव से कहा कि 'आप देवाधिदेव और हम सभी के अग्रणी महादेव हैं । इसलिए समुद्र-मंथन से उत्पन्न पहली वस्तु आपकी ही होती है, हम लोग सादर उसे आपको भेंट कर रहे हैं ।'

 भगवान शिव सोचने लगे-'यदि सृष्टि में मानव-समुदाय में कहीं भी यह विष रहे तो प्राणी अशान्त होकर जलने लगेगा । इसे सुरक्षित रखने की ऐसी जगह होनी चाहिए कि यह किसी को नुकसान न पहुंचा सके । लेकिन, यदि हलाहल विष पेट में चला गया तो मृत्यु निश्चित है और बाहर रह गया तो सारी सृष्टि भस्म हो जाएगी, इसलिए सबसे सुरक्षित स्थान तो स्वयं मेरा ही कण्ठप्रदेश है ।'

 भगवान विष्णु की प्रार्थना पर जब शिवजी उस महाविष का पान करने लगे तो शिवगणों ने हाहाकार करना प्रारम्भ कर दिया । तब भगवान भूतभावन शिव ने उन्हें आश्वासन देते हुए कहा।

 'भगवान श्रीराम का नाम सम्पूर्ण मन्त्रों का बीज-मूल है, वह मेरा जीवन है, मेरे सर्वांग में पूर्णत: प्रविष्ट हो चुका है, अत: अब हलाहल विष हो, प्रलय की अग्नि की ज्वाला हो या मृत्यु का मुख ही क्यों न हो, मुझे इनका किंचित भय नहीं है ।'

 इस प्रकार राम-नाम का आश्रय लेकर महाकाल ने महाविष को अपनी हथेली पर रखकर आचमन कर लिया किन्तु उसे मुंह में लेते ही भगवान शिव को अपने उदर में स्थित चराचर विश्व का ध्यान आया और वे सोचने लगे कि जिस विष की भयंकर ज्वालाओं को देवता लोग भी सहन नहीं कर सके, उसे मेरे उदरस्थ जीव कैसे सहन करेंगे? यह ध्यान आते ही भगवान शिव ने उस विष को अपने गले में ही रोक लिया, नीचे नहीं उतरने दिया जिससे उनका कण्ठ नीला हो गया, जो दूषण (दोष) न होकर उनके लिए भूषण हो गया ।

 कुछ लोगों का कहना है कि भगवान शिव द्वारा हलाहल विष का पान करना पार्वतीजी के स्थिर सौभाग्य के कारण हुआ और कुछ अन्य लोगों के अनुसार यह भगवान शिव के कण्ठ में राम-नाम है, उसी के प्रभाव के कारण संभव हुआ था ।

 ऐसा माना जाता है कि सती के नाम में 'र'कार अथवा 'म'कार नहीं है, इसलिए भगवान शिव ने सती का त्याग कर दिया । जब सती ने पर्वतराज हिमाचल के यहां जन्म लिया, तब उनका नाम 'गिरिजा' (पार्वती) हो गया । इतने पर भी 'शिवजी मुझे स्वीकार करेंगे या नहीं'-ऐसा सोचकर पार्वतीजी तपस्या करने लगीं । जब उन्होंने सूखे पत्ते भी खाने छोड़ दिए, तब उनका नाम 'अपर्णा' हो गया । 'गिरिजा' और 'अपर्णा'-दोनों नामों में 'र'कार आ गया तो भगवान शिव इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने पार्वतीजी को अपनी अर्धांगिनी बना लिया । इसी तरह शिवजी ने गंगा को स्वीकार नहीं किया परन्तु जब गंगा का नाम 'भागीरथी' पड़ गया, (इसमें भी 'र'कार है) तब शिवजी ने उनको अपनी जटा में धारण कर लिया । इस प्रकार राम-नाम में विशेष प्रेम के कारण भगवान शिव दिन-रात राम-नाम का जप करते रहते हैं।

 जैसे—पैसों की बात सुनकर पैसों के लोभी उधर खींच जाते हैं, सोने की बात सुनते ही सोने के लोभी के मन में आती है कि हमें भी सोना मिले और गहना बनवायें, इसी प्रकार भगवान् शंकर का मन भी ‘राम’ नाम सुनकर उन लोगों की तरफ खींच गया ।

 ये तो बात हो गई भगवान श्री शंकर जी की। लेकिन अब हम भी थोड़ा कोशिश कर लेते हैं।

रामो राजमणि: सदा विजयते रामं रमेशं भजे 

रामेणाभिहता निशाचरचमू रामाय तस्मै नम: ।

रामान्नास्ति परायणं परतरं रामस्य दासोSस्म्यहम्‌ 

रामे चित्तलय: सदा भवतु मे भो राम मामुद्धर ॥

 राजाओं में श्रेष्ठ श्रीराम सदा विजय को प्राप्त करते हैं । मैं लक्ष्मीपति भगवान् श्रीराम का भजन करता हूँ । सम्पूर्ण राक्षस सेना का नाश करने वाले श्रीराम को मैं नमस्कार करता हूँ । श्रीराम के समान अन्य कोई आश्रयदाता नहीं । मैं उन शरणागत वत्सल का दास हूँ । मैं हमेशा श्रीराम मैं ही लीन रहूँ । हे श्रीराम! आप मेरा (इस संसार सागर से) उद्धार करें ।

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अध्यात्म,200,अनुसन्धान,19,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,2,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,13,आधुनिक विज्ञान,19,आधुनिक समाज,146,आयुर्वेद,45,आरती,8,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,5,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,119,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,1,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,49,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,48,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,99,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,38,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत कथा,120,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,3,भागवत के पांच प्रमुख गीत,2,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,90,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत नवम स्कन्ध,26,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,21,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,12,भागवत माहात्म्य(हिन्दी),4,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,33,भारतीय अर्थव्यवस्था,4,भारतीय इतिहास,20,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,6,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,40,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,35,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,1,मन्त्र-पाठ,7,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,33,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,124,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,168,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,10,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,1,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,9,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,60,स्वास्थ्य और देखभाल,1,हँसना मना है,6,हमारी संस्कृति,93,हिन्दी रचना,32,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,17,Download,3,General Knowledge,29,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
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भागवत दर्शन: तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती॥ रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई ।।
तुम्ह पुनि राम राम दिन राती। सादर जपहु अनँग आराती॥ रामु सो अवध नृपति सुत सोई। की अज अगुन अलखगति कोई ।।
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