महाभारत में एक कथा आप सबने पढ़ी होगी कि युद्ध में लड़ते लड़ते कर्ण के रथ का जो पहिया था,वह जमीन में धॅस गया तब कर्ण धनुष बाण रथ पर रखकर रथ से नीचे उतर पड़ा और उतर कर उस पहिये को निकालने लगा।उस समय भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा,"बस इसको इसी समय मार डालो"।
अर्जुन संकोच में पड़ गये ,कहा,"महाराज इस समय वह निसश्त्र है,इस समय इसे नहीं मारना चाहिये"। भगवान ने कहा, कि यह मरेगा तो इसी समय मरेगा, नहीं तो कभी नहीं मरेगा। कई लोग इस अन्याय मानते हैं, कई लोग खुश होते हैं कि, चलो जब भगवान ही छल कपट कर रहे हैं, तो हम लोग भी कहाॅ गलत हैं। पर जरा, इस के रहस्य पर विचार करें। रथ क्या है ? रथ के धॅंस जाने का अर्थ क्या है? इस संबंध में भगवान कृष्ण की जो धर्म की सूक्ष्म ब्याख्या है, आइए बिचार करें!
कर्ण स्वयं कौन है ? युधिष्ठिर का बड़ा भाई। कुन्ती का बेटा। पौराणिक दृष्टि से साक्षात सूर्य का पूत्र, प्रकाश का पुंज है। पर कर्ण का वध भी कराया भगवान ने। विभीषण के प्रसंग में भगवान को सफलता मिल गई, हनुमान जी बिभीषण और रावण को अलग करने में सफल हो गये।,,किन्तु कर्ण के मामले में असफल रहे।
भगवान कृष्ण जब संधि का प्रस्ताव लेकर आये थे तब कर्ण को रथ पर बैठाकर लेगये ,अकेले में पूछा,तुम कौन हो?कर्ण ने कहा,मैं सारथी पुत्र हूॅ।कृष्ण ने कहा, यह तुम्हारा भ्रम है।तुम सूर्य के पुत्र हो।तुम युधिष्ठिर के बड़े भाई हो।तुम दुर्योधन का परित्याग कर दो।ईश्वर का प्रस्ताव पवित्र था,किन्तु कर्ण ने उसे अस्वीकार कर दिया।कर्ण ने कहा,नहीं महाराज! दुर्योधन ने मेरा इतने दिनों तक साथ दिया है,अब अगर उसका साथ छोड़ दूंगा तो लोग मुझे कृतघ्न कहेंगे। कृष्ण ने कहा, तब तो तुम्हारी मृत्यु अवश्यम्भावी है।
भगवान के ऐसा कहने का तात्पर्य क्या है? वह यह है कि,तुम सूर्य के बेटे हो, दुर्योधन धृतराष्ट्र का पुत्र है। सूर्य का बेटा अन्धे के बेटे की सेवा करे ,इससे बढ़कर के तो कोई प्रकाश की बिडम्बना हो ही नहीं सकती। कर्ण सूर्य के पुत्र के रूप में 'ज्ञान 'का प्रतीक है,और वह दुर्योधन के रूप में'मोह'का साथ दे रहा है। स्पष्ट है कि जब प्रकाश अन्धकार की सृष्टि करेगा तो उसका परिणाम क्या होगा?अन्धकार के स्वामित्वाधीन प्रकाश हमें अन्धा बनायेगा।अतः ऐसे प्रकाश को बुझाना ही पड़ेगा।
बहुत अच्छे कार्य किये जाने के बाद भी कर्ण को धर्म की प्रतीक गायों ने श्राप दिया था कि,युद्ध में उसके रथ का पहिया धँस जाय और पैदल चलकर युद्ध करे, तो बाण चलाने का मंत्र भूल जाय।
ब्रह्मांश परशुराम जी से झूठ बोल कर शिक्षा ग्रहण किया था कर्ण ने।परशुराम ने यह ज्ञात होने पर श्राप दिया था कि,उनसे जो भी शस्त्र बिद्या सीखा है ,युद्ध में जब उनका प्रयोग करना चाहेगा तो भूल जायेगा।
तो बिडम्बना क्या है?वह शस्त्र का प्रयोग तो मोह को जिताने के लिये करना चाहता है।मंत्र तो धर्म संबर्धन का अस्त्र या बाण है।,तो मोह को महिमामंडित करने के लिये ,उसका भूल जाना स्वाभाविक है।
रथ भी धर्म का प्रतीक है"सात्त्विक श्रद्धा धेनु सुहाई" यानी सात्त्विकी श्रद्धा कहती है कि अगर धर्म का प्रयोग तुम अधर्म के लिए करोगे तो अन्त में जो तुम्हारा पहिया है वह धॅस जायेगा।
भगवान ने इन उदाहरणों के साथ अर्जुन से कहा,कि इस समय जब वह धर्म से अलग है और अधर्म का साथ दे रहा है,अधर्म को जिताने वाला है,इसलिये इसे मार दो।
इस प्रकार तात्विक अपेक्षा यही है कि हमारा सत्कर्म कहीं पापों को बढ़ावा तो नहीं दे रहा है।हमारी क्षमता जितनी है वह कहीं अन्याय और पाप को बढ़ावा तो नहीं दे रही है।
यही धर्म की सूक्ष्म गति है जो धर्म के अन्तर्निहित तत्वों की प्रकाशक हैं
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