**************** नया दौर ******************
(1)
जो है बेहयाई की इन्तिहा, ।
जो ज़ुबाँ से कहना हराम था,
नये दौर का वो शऊर है,
जिसे सुननाभी इक कुफ्र था,
(2)
या तो लोग पागल हो गए, ।
ये सियासतें हैं ज़हर बुझीं,
या मेरी नज़र का कुसूर है।।
ये गलीज़ कोई हुजूर है ।।
(3)
न तो मेहनतों की कमाइयाँ ,
न तो इल्मे ख़ासे खुलूस है ,
न जलाले पाक है पास में,
ये तो शोहदाई गुरूर है ।।
(4)
जमीँदोज कर केअदब को ये।
वहाँ दूर रोते हैं गाँव में।
नया इन्कलाब उठा रहे ।
बड़ी बेबसी से पिदर तेरे।
(5)
कहीं पास दोज़ख हँस रहा ।
वो शरीकेज़ीस्त तड़प रही,
वो बहिश्ते दर कहीं दूर है।।
तू शहर में खोजता हूर है।।
(6)
अरे ! मगरिबी शौकीन सुन ।
हैं कुल्हाड़ियाँ ते पाँव पर ।
तेरा दौरे हाजिर सड़ गया ।
तेरा वक्ते कल बेनूर है ।
(7)
है सियासतों में वफा नहीं ।
सुन! छोड़ दे ये गलाज़तें ।
तेरे दिल में पाक जफा कहाँ?
तो खुदा करेगा हिफाजतें ।
(8)
तेरी जिन्दगी एक दाँव है।।
तेरी हों कुबूल इबादतें ।
तू तो बे वजह मगरूर है ।।
तो असर दुआ में ज़ुरूर है।
(9)
मैं फकीरे वक्त हूं , सुन मेरी ।
तू खुदा के दर पे ये सर झुका ।
वो जो मालिके दो जहान है ।
वो नवाजिशे भरपूर है ।।
******************* प्रणव *******************
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