स्त्रीका मन कहता है- पुरुष सुन्दर है। पुरुषका मन मानता है - स्त्री सुन्दर है। ऐसा मोह भगवान्ने क्यों रखा है— भगवान्को ऐसा लगता होगा कि सभी भक्ति करेंगे तो मेरे वैकुण्ठमें बड़ी भीड़ हो जायगी। सभी वैकुण्ठमें आयें नहीं, संसारमें फँसे रहें— इसीलिये, कदाचित् भगवान्ने ऐसा मोह रखा है।
कितने लोग तो ऐसे हो गये हैं कि उनको नखमें भी, बालमें भी सौन्दर्य दिखता है - नख बहुत अच्छे हैं, बाल बहुत अच्छे हैं। अरे, नखमें, बालमें क्या सौन्दर्य है ? मन बहुत बिगड़ गया है। शास्त्रों में तो ऐसा लिखा है कि अन्नमें बाल आ जाय तो अन्न नहीं खाना चाहिये। भोजनके समयमें अन्नमें केश आ जाय तो केशके स्पर्शसे अन्न अशुद्ध हो जाता है — ऐसा लिखा है।
नख और केश इस शरीरका मल हैं। मन ऐसा बिगड़ गया है कि उसको नखमें, केशमें सौन्दर्य दिखायी देता है। भगवान्ने तो जीवको संसारमें फँसा दिया है। सभीका मन प्रायः संसारमें फँस जाता है। संसारमें ही सौन्दर्य दिखता है— मानव इसीलिये भक्ति नहीं करता है।
सद्गुरुदेव सच्छिष्यको समझाते हैं । संसार सुन्दर नहीं है, संसार जिसने बनाया है, वह सुन्दर है। कोई स्त्री सुन्दर नहीं है, कोई पुरुष सुन्दर नहीं है। मनमें विकार-वासना है, इसीलिये स्त्रीमें – पुरुषमें सौन्दर्य - जैसा भाव - है। परमात्माने जीवको संसारमें फँसा दिया है। - भगवान् श्रेष्ठ हैं कि सद्गुरुदेव श्रेष्ठ हैं— सद्गुरुदेव सच्छिष्यको समझाते हैं— भगवान् बहुत सुन्दर हैं। तीन देव श्रेष्ठ माने गये हैं। ब्रह्मा, विष्णु और महेश्वर - ये तीन देव एक-एक -काम करते हैं। सद्गुरुदेव तीनों काम करते हैं। • ब्रह्माजी जगत्की उत्पत्ति करते हैं, विष्णुभगवान् जगत्का रक्षण करते हैं और शिवजी महाराज जगत्का प्रलय करते हैं। उत्पत्ति, स्थिति और विनाश – तीन देव तीन काम करते हैं। सद्गुरुदेव तीनों काम करते हैं ।
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