'एक आंख वाले कौवे' और भारतीय शकुन-शास्त्र

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
0

   एक बार देवराज इंद्र के पुत्र जयंत ने कौवे का रूप धारण कर, लक्ष्मी माता के (दूसरे मत में सीता माता के !) स्तनों में चोट मार दी थी। भगवान विष्णु जी योगनिद्रा से जागने पर जब उसने गिर रही लहू- बून्द को देखा, तो उनको बहुत क्रोध आया और जयंत की उद्दंडता के लिए उन्होंने "इषीकास्त्र" छोड़ा। ज्ञातव्य हे कि-- इषीकास्त्र का प्रयोग केवल नारायण ही जानते हैं और यह परम दिव्य अस्त्र अत्यंत शक्तिशाली और अमोघ है। सींक जैसा होने के कारण इसको "इषीकास्त्र" कहा जाता हे और ये दिव्यास्त्र आधुनिक मिसाइल की तरह लक्ष्य के पीछे पड़ जाता है।

   अत्यंत भयभीत जयंत त्राण पाने के लिए इधर- उधर देवताओं के पास दौड़ता रहा। किन्तु शिव, ब्रह्मा, इंद्र आदि देवताओं से कोई भी जब उसकी सहायता नहीं की, तो अंत में जयंत को नारायण के शरण में आना ही पड़ा। जयंत के मुंह से "त्राहिमां.. त्राहिमां" की बारबार पुकार पर नारायण ने अस्त्र- सम्बरण कर उनका प्राण तो रक्षा किया, मगर उनका अंगभंग करने की अनिवार्यता तथा शस्त्र की मर्यादा- पालन करने की शर्त भी रख दी।।

    अगत्या जयंत के राजिनुमा पर उसकी आंख पर वह अस्त्र चला दिया और उस अस्त्र की दिव्यता एवं विलक्षण शक्ति का ही प्रभाव रहा की-- सिर्फ जयंत कि ही नहीं, समग्र "कौवे जाति'' की एक आंख जाती रही और भविष्य में देखने के लिए सिर्फ एक ही आंख होती रही।

    यह तो सिर्फ एक पौराणिक कथा, परन्तु कौवे के "चेष्टा- लक्षण" आधारित पारम्परिक शकुन शास्त्र आजतक ज्ञानियों के द्वारा लोक कल्याण के लिए महजूद है। राजस्थान में 'ऋषि पंचमी' के दिन वंहा के स्त्री लोगो ने थाल में चावल भरकर, कौवे को भोजन देते हैं। और चावल में जबतक वह चोंच नहीं मारता, तबतक वह लोगों भोजन नहीं करती। कौवे के सम्बन्धित एक और आख्यान, द्वापर में महाभारतीय काकभूषण्ड- परंपरा में भी जुड़े हुए है।।

   शकुन शास्त्रों में कहा गया है की, कौवे जात को वन- औषधियों का भी अद्भुत ज्ञान है। इसके अलावा विश्वास प्रचलित है कि, "चितावर की लकड़ी"-- जिसके स्पर्श कराने मात्र से ही बड़े से बड़े ताला खुल जाता है (!), उसे सिर्फ कौवे पहचानते हैं। इस प्रकार की विचित्र परंपरा की कड़ी में कौवे आदि पक्षी, कुत्ते आदि पशु और चींटी, दीमक, छिपकली, मेढ़क आदि छोटी- छोटी जीवों के बुद्धि, व्यवहार, रूप, चेष्टा और ज्ञान को हमारे पूर्वजों ने गभीर अध्ययन कर जनहित में शकुन शास्त्र बनाये थे।

   प्राचीन तंत्र- शास्त्र में "उल्लू" के सभी अंगो के विविध उपयोग बताए गये हैं और कौवे के कई अंगों से कई प्रकार की उपयोगी एवं विलक्षण सफलता- दायक कार्यकारी वस्तुएं भी बनाने के प्रयोग बताए गए हैं।

   कौवे को शकुन की दृष्टि से बहुत महत्त्वपुर्ण माना गया है। भगवान राम के आगमन की सूचना देने के लिए गोस्वामी तुलसी दास जी ने 'रामचरित मानस' में कौवे के उड़ान को लेकर दोहे रचे है। अतः शकुन शास्त्रीओं ने कौवे को "शकुन सम्राट" के रूप में गणना की है। और इस शकुन शास्त्र का जनक अर्थात अधिष्ठाता विष्णु- वाहन पक्षीराज गरुड़ जी को कहा गया है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ

thanks for a lovly feedback

एक टिप्पणी भेजें (0)

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top