वातापी का चालुक्य वंश

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 "जयसिंह ने वातापी के चालुक्य वंश की स्थापना की जिसकी राजधानी वातापी (बीजापुर के निकट) थी। इस वंश के प्रमुख शासक थे -- पुलकेशिन प्रथम, कीर्तिवर्मन, पुलकेशिन ll , विक्रमादित्य , विनयदित्य एवं विजयादित्य। इनमें सबसे प्रतापी राजा पुलकेशिन ll था।

 महाकूट स्तम्भ लेख से प्रमाणित होता है कि पुलकेशिन ll बहु सुवर्ण एवं अग्निष्टोम यग्य सम्पन्न करवाया था। जिनेन्द्र का मेगुती मन्दिर पुलकेशिन ll ने बनवाया था।

पुलकेशिन ll ने हर्षवर्धन को हराकर परमेश्वर की उपाधि धारण की थी। इसने दक्षिणापथेश्वर की उपाधि भी धारण की थी।

पल्लववंशी शासक नरसिंह वर्मन प्रथम ने पुलकेशिन -ll को लगभग 642 में परास्त किया और उसकी राजधानी बादामी पर अधिकार कर लिया। सम्भवतः इसी युद्ध में पुलकेशिन ll मारा गया। इसी विजय के बाद नरसिंहवर्मन ने वातापिकोड की उपाधि धारण की।

एहोल अभिलेख का सम्बन्ध पुलकेशिन ll से है। (लेखक - रविकीर्ति)

अजन्ता के एक गुहाचित्र में फ़ारसी दूत- मंडल को स्वागत करते हुए पुलकेशिन ll को दिखाया गया है।

वातापी का निर्माणकर्ता कीर्तिवर्मन को माना जाता है।

मालवा को जीतने के बाद विनयादित्य ने सकलोत्तरपंथ नाथ की उपाधि धारण की।

विक्रमादित्य ll के शासनकाल में ही दक्कन में अरबों ने आक्रमण किया। इस आक्रमण का मुकाबला विक्रमादित्य के भतीजा पुलकेशी ने किया। इस अभियान की सफलता पर विक्रमादित्य ll ने इसे अवनिजनाश्रय की उपाधि प्रदान की।


विक्रमादित्य ll की प्रथम पत्नी लोकमहादेवी ने पट्टदकल में विरूपाक्षमहादेव मन्दिर तथा उसकी दूसरी पत्नी त्रैलोक्य देवी ने त्रैलोकेश्वर मन्दिर का निर्माण करवाई।


इस वंश का अंतिम राजा कीर्तिवर्मन ll था। इसे इसके सामंत दन्तिदुर्ग ने परास्त कर एक नये वंश (राष्ट्रकूट वंश) की स्थापना की।


एहोल को मन्दिरों का शहर कहा जाता है"

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