बूढ़े गिद्ध की सलाह

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  एक बार गिद्धों (Vultures) का झुण्ड उड़ता-उड़ता एक टापू पर जा पहुँचा। टापू समुद्र के बीचों-बीच स्थित था। वहाँ ढ़ेर सारी मछलियाँ, मेंढक और समुद्री जीव थे। इस प्रकार गिद्धों को वहाँ खाने-पीने को कोई कमी नहीं थी। सबसे अच्छी बात ये थी कि वहाँ गिद्धों का शिकार करने वाला कोई जंगली जानवर नहीं था। गिद्ध वहाँ बहुत ख़ुश थे। इतना आराम का जीवन उन्होंने पहले देखा नहीं था।

  उस झुण्ड में अधिकांश गिद्ध युवा थे। वे सोचने लगे कि अब जीवन भर इसी टापू पर रहना है। यहाँ से कहीं नहीं जाना, क्योंकि इतना आरामदायक जीवन कहीं नहीं मिलेगा। लेकिन उन सबके बीच में एक बूढ़ा गिद्ध भी था। वह जब युवा गिद्धों को देखता, तो चिंता में पड़ जाता. वह सोचता कि यहाँ के आरामदायक जीवन का इन युवा गिद्धों पर क्या असर पड़ेगा? क्या ये वास्तविक जीवन का अर्थ समझ पाएंगे? यहाँ इनके सामने किसी प्रकार की चुनौती नहीं है. ऐसे में जब कभी मुसीबत इनके सामने आ गई, तो ये कैसे उसका मुकाबला करेंगे ?

  बहुत सोचने के बाद एक दिन बूढ़े गिद्ध ने सभी गिद्धों की सभा बुलाई। अपनी चिंता जताते हुए वह सबसे बोला, “इस टापू में रहते हुए हमें बहुत दिन हो गए हैं। मेरे विचार से अब हमें वापस उसी जंगल में चलना चाहिए, जहाँ से हम आये हैं। यहाँ हम बिना चुनौती का जीवन जी रहे हैं। ऐसे में हम कभी भी मुसीबत के लिए तैयार नहीं हो पाएंगे।”

 युवा गिद्धों ने उसकी बात सुनकर भी अनसुनी कर दी। उन्हें लगा कि बढ़ती उम्र के असर से बूढ़ा गिद्ध सठिया गया है। इसलिए ऐसी बेकार की बातें कर रहा है। उन्होंने टापू की आराम की ज़िन्दगी छोड़कर जाने से मना कर दिया। 

   बूढ़े गिद्ध ने उन्हें समझाने की कोशिश की, “तुम सब ध्यान नहीं दे रहे कि आराम के आदी हो जाने के कारण तुम लोग उड़ना तक भूल चुके हो। ऐसे में मुसीबत आई, तो क्या करोगे? मेरी बात मानो, मेरे साथ चलो।” लेकिन किसी ने बूढ़े गिद्ध की बात नहीं मानी। बूढ़ा गिद्ध अकेला ही वहाँ से चला गया। कुछ महीने बीते। एक दिन बूढ़े गिद्ध ने टापू पर गये गिद्धों की ख़ोज-खबर लेने की सोची और उड़ता-उड़ता उस टापू पर पहुँचा।

  टापू पर जाकर उसने देखा कि वहाँ का नज़ारा बदला हुआ था। जहाँ देखो, वहाँ गिद्धों की लाशें पड़ी थी। कई गिद्ध लहू-लुहान और घायल पड़े थे। हैरान बूढ़े गिद्ध ने एक घायल गिद्ध से पूछा, “ये क्या हो गया ? तुम लोगों की ये हालत कैसे हुई?”

  घायल गिद्ध ने बताया, “आपके जाने के बाद हम इस टापू पर बड़े मज़े की ज़िन्दगी जी रहे थे। लेकिन एक दिन एक जहाज़ यहाँ आया। उस जहाज से यहाँ चीते छोड़ दिए गए। शुरू में तो उन चीतों ने हमें कुछ नहीं किया। लेकिन कुछ दिनों बाद जब उन्हें आभास हुआ कि हम उड़ना भूल चुके हैं। हमारे पंजे और नाखून इतने कमज़ोर पड़ गए हैं कि हम तो किसी पर हमला भी नहीं कर सकते और न ही अपना बचाव कर सकते हैं, तो उन्होंने हमें एक-एक कर मारकर खाना शुरू कर दिया। उनके ही कारण हमारा ये हाल है। शायद आपकी बात न मानने का फल हमें मिला है।

शिक्षा

  अक्सर कम्फर्ट जोन (Comfort Zone) में जाने के बाद उससे बाहर आ पाना मुश्किल होता है। ऐसे में चुनौतियाँ आने पर उसका सामना कर पाना आसान नहीं होता। इसलिए कभी भी कम्फर्ट ज़ोन (Comfort Zone) में जाकर ख़ुश न हो जाएं। ख़ुद को हमेशा चुनौती (Challenge) देते रहे और मुसीबत के लिए तैयार रहें। तब आप चुनौती का सामना करते रहेंगे, आगे बढ़ते रहेंगे।

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