सिंह को एक गधे की चुनौती

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 एक सिंह को एक गधे ने चुनौती दे दी कि मुझसे निपट ले। 

सिंह चुपचाप सरक गया। एक लोमड़ी छुपी देखती थी, उसने कहा कि बात क्या है? 

एक गधे ने चुनौती दी और आप जा रहे हैं? 

सिंह ने कहा, मामला ऐसा है, गधे की चुनौती स्वीकार करने का मतलब मैं भी गधा। 

वह तो गधा है ही। 

उसकी चुनौती से ही जाहिर हो रहा है।

 किसको चुनौती दे रहा है? पागल हुआ है, मरने फिर रहा है। फिर दूसरी बात भी है कि गधे की चुनौती मान कर उससे लड़ना अपने को नीचे गिराना है।

 गधे की चुनौती को मानने का मतलब ही यह होता है कि मैं भी उसी तल का हूं। जीत तो जाऊंगा निश्चित ही, इसमें कोई मामला ही नहीं है। जीतने में कोई अड़चन नहीं है। एक झपट्टे में इसका सफाया हो जाएगा।

 मैं जीत जाऊंगा तो भी प्रशंसा थोड़े ही होगी कुछ! लोग यही कहेंगे क्या जीते, गधे से जीते! और कहीं भूल चूक यह गधा जीत गया तो सदा सदा के लिए बदनामी हो जाएगी, इसलिए भागा जा रहा हूं। इसलिए चुपचाप सरका जा रहा हूं कि इस.. .यह चुनौती स्वीकार करने जैसी नहीं है।

मैं सिंह हूं यह स्मरण रखना जरूरी है। मन खींचेगा। मन चुनौतियां देगा। तुमने अगर अपने मालिक होने की घोषणा कर दी, तुम कहना कि ठीक है, तू चुनौती दिए जा, हम स्वीकार नहीं करते। न हम लड़ेंगे तुझसे, न हम तेरी मानेंगे। तू चिल्लाता रह। कुत्ते भौंकते रहते हैं, हाथी गुजर जाता है। तू चिल्लाता रह।

और तुम चकित होओगे, थोड़े दिन अगर तुम मन को चिल्लाता छोड़ दो, धीरे धीरे उसका कंठ सूख जाता। धीरे धीरे वह चिल्लाना बंद कर देता। और जिस दिन मन चिल्लाना बंद कर देता है उस दिन.. .उस दिन ही अंतर्गुफा में प्रवेश हुआ। बाहर की कोई गुफा काम न आएगी। बाहर शरण लेने से कुछ अर्थ नहीं होगा।

महावीर ने कहा है -

 अशरण हो जाओ। बाहर शरण लेना ही मत। अशरण हुए तो ही आत्मशरण मिलती है।

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