कौन है जिज्ञासु हृदय ?

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 जिज्ञासु हृदय लगातार अपने मार्ग में आगे बढ़ता रहता है, कभी तृप्त नहीं होता और कभी थकता नहीं है। छोटी सी उम्र में ही उसने काफी कुछ देख व अनुभव कर लिया है तथा कई परिस्थितियों से अनजाने ही मगर पूरे दिल से गुज़र चुका है। यह बहुत खुश रहता है। जिज्ञासु हृदय चरम स्थितियों को संभालने में माहिर है। वह स्वयं को अपने जुनून में पूर्णतया डुबो देता है और तब वह अपने आपको ही भूल जाता है। ऐसा करने से वह अपने आप को बेहतर जान पाता है। यह अंतरतम से आने वाले अंतर्ज्ञान की तरह है।

 पहले वह समुद्री हवाओं के साथ जलयात्रा करता था, उसकी बड़ी-बड़ी तेज लहरें और उनका जबरदस्त डर होता था; फिर वह गोता लगाने लगा, विशेष रूप से साँस बंद करके; वह पृथ्वी की गहरी, अंधेरी समुद्री गुफाओं और खाइयों में श्वास नली लगाकर गोता लगाने लगा। फिर शुरू हुई चक्करदार कूदें, चिड़ियों की तरह ऊँची उड़ान भरना आदि। डॉ. जिज्ञासु हृदय हमेशा खोजता रहता है, बिना थके बिना रुके, बिना अपने प्रयास को कम किए।

 एक दिन उसकी मुलाकात पवित्र उदार हृदय से हो गई। दोनों का यह आमना-सामना असामान्य रूप से हुआ। शाम का समय था। दिन के अंतिम पहर में आकाश गहरे गेरुए रंग का हो गया था और परछाइयों का बढ़ना शुरू हो गया था। लेकिन जिज्ञासु हृदय कोई कवि तो था नहीं जो उस पर कविता लिखता। वह अपनी उंगलियों से पकड़कर अपने पैरों पर मज़बूती से खड़े होकर अपनी जंघाओं को आगे की ओर खींचते हुए, धकेलते हुए, पसीने में तरबतर, हाँफते और थूकते हुए आगे बढ़ रहा था।

 हवा और चट्टानों के बीच लटकते हुए वह चट्टान के ऊपर चढ़ रहा था। यह उसका नया जुनून था, नई चुनौती थी जिसमें वह गर्व के साथ आगे बढ़ रहा था और उसमें पूरी तरह लीन हो गया था। उसे न ही सोचने की कोई जरूरत थी, न ही उसे किसी कष्ट का एहसास था और न ही वह ठहरने को तैयार था।

 इस दर्रे के नीचे, वहाँ एक और पकड़ने की जगह थी। यह सच है कि इस छोटे से उभार पर एक टेक थोड़ा जोखिम भरा था। उसने स्वयं से कहा, "नीचे मत देखो, चट्टान को महसूस करो, हाथ से पसीने को पोंछो, अंतिम बार एक लंबी सांस छोड़ो और अपने आप को ऊपर की ओर खींचो - हाँ पूरी शक्ति से खींचो।"

"गुड इवनिंग जिज्ञासु हृदय मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था। तुम कुछ थके से लग रहे हो। लो थोड़ा पानी पी लो।" जिज्ञासु हृदय फिर से सोचने लगा, चट्टान के एक सिरे पर बैठ गया और उसकी ऊँचाई को (गर्व के साथ) देखने लगा। वह अपना माथा पोंछते हुए पानी का घूंट पीने लगा। "लेकिन तुम कौन हो?"

"एक मित्र। आराम कर लो फिर हम थोड़ी देर के लिए बात करेंगे। यह सूर्यास्त कितना सुंदर है, है ना?"

जिज्ञासु हृदय जो कि अपने खयालों में खोया हुआ था, सोचने लगा "अगली बार में इससे ज्यादा तेजी से चढ़ाई करूँगा।"

पवित्र उदार हृदय ने दृश्य की तारीफ करते हुए पूछा, "क्या तुमने ऐसे रंग देखे हैं, यह सुनहरा और यह बैंगनी रंग जो कि क्षितिज पर दिखाई दे रहे हैं?"

"और बिना पानी पिए चढाई करूँगा।"

"जिज्ञासु हृदय, तुम यह सब क्यों करते हो?"

 जिज्ञासु ह्रदय ने थोड़ी देर के लिए अपना ध्यान पवित्र उदार हृदय की तरफ मोड़ा और पाया कि वह निश्चित रूप से बहुत शांत, बहुत सुंदर और मित्रवत था।

"मेरे अजनबी दोस्त, मैं यह सब जीने के लिए करता हूँ। मुझे जीना है, इसलिए करता हूँ ।"

"क्या तुम यह सोचते हो कि जीने के इस एहसास के लिए तुम्हें अपने शरीर की इतनी चरमता तक ले जाना और इसे पीड़ा देना जरूरी है?"

"बिल्कुल अन्यथा मैं ऊब जाऊँगा।"

 "तुम जिसे ऊँचाइयों और धरती की गहराइयों से डर नहीं लगता, ऊबने से डरते हो?* क्या तुम उस रिक्तता से डरते हो जो शायद ऊबने से तुम्हारे जीवन में आ जाए? क्या तुम्हें पता है, एक रिक्तता है, एक शून्यता है जो प्रकाश से भरी है और जो तुम्हारे हृदय में मौजूद है। अभी तो तुम अपने श्रम के बाद आराम कर रहे हो, है ना? अब में तुम्हें कुछ सुझाव देता हूँ। धीरे से अपनी आँखें बंद करो अपने शरीर को ढीला छोड़ दो और अपने हृदय में उस प्रकाश को महसूस करो जो तुम्हारे अंदर रहता है, यह जो जीवन का जीवन है जो तुम इतनी उत्सुकता से बाहर खोज रहे हो वह वास्तव में तुम्हारे अंदर ही मौजूद है। आओ, एक पल के लिए ध्यान करें।"

 जिज्ञासु हृदय खुश होकर सोचता है, "मैं अपनी आँखे बंद कर लूँ, एक क्षण के लिए रुक जाऊँ और ध्यान करू? अच्छा, क्यों नहीं? मैंने अपने जीवन में अनेक रोमांच किए हैं। क्यों न मैं इसको भी एक बार करके देखूँ।"

पवित्र उदार हृदय ने जिज्ञासु हृदय को बताया कि शुरू में शायद कुछ भी महसूस नहीं होगा। दोनों ध्यान में बैठ जाते है।

जिज्ञासु हृदय को महसूस होता है "लेकिन हर हाल में तनावमुक्त होना अच्छा है। लेकिन रुको, यह विचारों का बवंडर क्या है जो आ रहे हैं जा रहे हैं? यह भावनाओं का तांता क्या है जिनका एक-दूसरे से कोई संबंध नहीं? फिर यह सिर के चक्कर, यह मन जो कहीं दूर भटक रहा है, जबकि मेरे हृदय की गहराई में मानो कोई खुदाई हो रही है। रुको, मेरे गाल गीले है। क्या बरसात हो रही है? क्या ये आँसू है? नहीं, मैं रोने वाला नहीं हूँ। मैं रोना नहीं चाहता। मैं पूरी तरह खुश हूँ। लेकिन यह आँसू कहाँ से आ रहे हैं? यह आँसू किसी पुराने समय की याद दिला रहे हैं जिसे मैं नहीं पहचानता। मुझे नहीं पता यह आँसू क्यों निकल रहे हैं।"

"यह उदासी नहीं है। शायद यह अतीत की याद की तरह है। नहीं, बिल्कुल नहीं.. मुझे अब कुछ भी नहीं पता। लेकिन यह सब कितना अच्छा लग रहा है, जैसे सब कुछ छोड़ दिया हो, अपने आपको स्वतंत्र छोड़ दिया हो। यह गहराइयों में जाना और फिर शांति का एहसास होना, कुछ नरम, कोमल, ताजा और गरम, सब कितना अच्छा लग रहा है शायद यही वह प्रकाश है जिसके बारे में यह व्यक्ति बात कर रहा है।" उसने स्वयं को सुझाव दिया, "अच्छा, अब सोचना बंद करो और बस वहीं पर रहो, महसूस करो, आँख बंद रखो, इस उपस्थिति का आनंद लो, महसूस करो और इस पल के आनंद का अनुभव करो....आह, आनंद ही आनंद!"

 पहाड़ की चोटी पर एकसाथ बैठकर दोनों ध्यानकर्ता क्षितिज की ओर देखने लगे। वे शांत और स्थिर थे। सूर्यास्त हो रहा था, दिन ढल रहा था और परछाइयों का आकार बढ़ रहा था। उन पर रात का साया पड़ रहा था लेकिन उनके हृदयों में प्रकाश चमक रहा था।

शिक्षा

"कभी-कभी एक छोटी सी प्रेरणा और प्रोत्साहन ही दूसरों को उनके लक्ष्य तक पहुँचाने के लिए काफ़ी होता है।"

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