उपनाम क्या आवश्यक है ?

SHARE:

  महाभारत के 18 दिनों तक चले युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। जिनके नाम हैं- क...

  महाभारत के 18 दिनों तक चले युद्ध के पश्चात कौरवों की तरफ से 3 और पांडवों की तरफ से 15 यानी कुल 18 योद्धा ही जीवित बचे थे। जिनके नाम हैं- कौरव के कृतवर्मा, कृपाचार्य और अश्वत्थामा, जबकि पांडवों की ओर से युयुत्सु, युधिष्ठिर, अर्जुन, भीम, नकुल, सहदेव, कृष्ण, सात्यकि आदि।  

जरा ध्यान दें महाभारत के समय भी उनके नामों के साथ उपनाम नहीं होते थे। महाभारत कालखंड से आगे चलकर देखें बिंबिसार, अजातशत्रु, उदयन, निपुंजय, सुनिक, प्रद्योत,महापद्म, के बाद नंद वंश का अंतिम शासक धननंद जिसका उच्छेद चाणक्य ने चन्द्रगुप्त द्वारा कराया था तक किसी राजवंश के व्यक्ति ने कोई उपनाम नहीं रखा। हाँ किन्तु चन्द्रगुप्त के द्वारा राजाओं में वंश का नाम उपनाम की भाँति प्रयोग आरंभ हो गया था जिसका प्रयोग मुगलशासन से पहले के राजाओं तक में देखने को मिलता है। 

 मुगलकालीन धार्मिक लोगों के नाम के साथ भी उपनाम का प्रयोग नहीं हुआ करता था तुलसीदास, कबीर, रैदास, मीरा, सूरदास आदि किसी के नाम के आगे किसी प्रकार का उपनाम देखने को नहीं मिलता। परन्तु मुगलकालीन क्षत्रिय राजाओं नें अपने नाम के साथ उपनाम का प्रयोग आरंभ कर दिया था जैसे मानसिंह, महाराणा प्रताप, जयमल सिंह राठौड़, गुरू गोविन्द सिंह आदि। अंग्रजों ने फूट डालो और राज करो की नीति अपनाई थी किन्तु उपनाम का खटमल उनका दिया नहीं यह तो हमारे समाज में ही उत्पन्न हुआ, और अधिक पुराना भी नहीं मुगलों और अंग्रेजों के काल में ही इसका जोर बढ़ा। अंग्रेजों ने जातिवाद को हमारे समाज में पहचान कर मुखर्जी, बनर्जी, टैगोर जैसे नए उपनाम बन-बनाए उपनामों के स्थान पर आरंभ कर इसको और हवा दी। कुछ और नहीं तो स्वयं के गढ़े उपनाम रायबहादुर बनाकर बेचने लगे। 

 कुछ लोग प्रतिवाद करते हैं कि उपनाम तो गोत्र है तो उनको समझना चाहिए कि गोत्र तो ऋषियों के नामानुसार हैं फिर ये शर्मा, वर्मा, सेठी, शुक्ल, मिश्र,पाठक,तिवारी,पांडे, शुक्ला, मिश्रा, अग्निहोत्री, वाजपेई, त्रिपाठी, द्विवेदी, चतुर्वेदी, दीक्षित कौन से ऋषि हुए ? 

 विवाह के अवसर पर गोत्र का उपयोग किया जाता है किन्तु जिन्हे हम गोत्र की श्रेणी में रखने लगे हैं उनमें से अधिकांश गोत्र ही नहीं हैं और यूं ही गोत्रों की श्रेणी में गिने जाते हैं। विवाह में तो विशेष बात ध्यान देने की यह होती है कि अत्यन्त समीप के रिश्ते न हो जावें। एक बात और कृण्वन्तो विश्‍वमार्यम् को मानने वाले मुसलमानों को शुद्ध करके किस गोत्र में रखेंगे ? 

 चाहे कोई सा उपनाम रख लो किन्तु उपनाम सच्चा प्रहरी है यह बताने के लिए कि अमुक व्यक्ति जन्म से ब्राह्मण है, क्षत्रिय है, वैश्य अथवा शुद्र। और यदि आपने कोई अलबेला ही उपनाम रख दिया या कुमार उपनाम लगा लिया तो लोग तो आपको चमार आदि ही मानेंगे। बात तो हम करते हैं कर्मणा व्यवस्था की और उपनाम रूपी जन्मना जाति से चिपके हुए हैं।

 आर्यसमाजी कहेंगे हम जातिगत उपनाम का प्रयोग नहीं करते हम तो आर्य उपनाम लगाते हैं, तो उनसे मैं तो यही कहूंगा कि भाई अपने मुँह मियाँ मिट्ठू क्यों बनते हो? स्वामी दयानन्द सरस्वती ने भी लिखा है कि गुण कर्म स्वभावानुकूल यह कर्म विभाग (वर्ण व्यवस्था) राजा ही व्यवस्थित रूप से कर सकता है तो क्या प्रत्येक आर्यसमाजी स्वयं को ही राजा मान चुके हैं ? 

यूं भी जरा ध्यान से देखें तो कोई आवश्यकता ही नहीं की राज्य व्यवस्था किसी का वर्ण निर्धारित करे क्योंकि आज के समय में प्रत्येक को अपने काम को चुनने का पूरा अधिकार है किसी का हस्तक्षेप नहीं की आप जीवन-यापन के लिए कौन सा कार्य करना पसंद करते हैं। हाँ आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो समस्या होती है शिक्षा प्राप्त करने में धन न होने की जिसे राज व्यवस्था को दूर करना चाहिए। 

हम वर्ण व्यवस्था का गाना तो गाते हैं किन्तु वर्ण व्यवस्था आज के परिप्रेक्ष्य में गौण हो गयी है। आजकल तो यह स्वयमेव निर्धारित होती है। वस्तुतः भारत में वर्ण व्यवस्था को तो राजकर्मचारियों की सहायता से बिगाड़ने का कार्य हो रहा है।

आज की राज व्यवस्था की कमी के कारण लोगों ने एक आडम्बर फैला दिया है कि दलित पिछड़े समाज में बढ़ नहीं पा रहे। निःसन्देह दलितों को आज भी सामाजिक व्यवस्था में अपना अधिकार प्राप्त करने को राज व्यवस्था द्वारा सहायता चाहिए किन्तु वे सहायता के स्थान पर चम्मच से खिलाया जाना माँगते हैं और राजनेता ऐसा करने को भी तैयार हैं जिससे वे शासन में बने रहें। यदि राज व्यवस्था द्वारा शिक्षा में प्रत्येक गरीब की बिना जाति के भेद-भाव के सहायता करें किन्तु रोजगार के अवसर के समय सभी से समान स्तर पर बिना भेद-भाव के परीक्षा ली जाए तो समाजिक विषमता को भरने का कार्य सही प्रकार संभव हो। और जब तक ऐसी व्यवस्था का शुभारम्भ नहीं होता जाति की विषबेल फूलती-फलती ही रहेगी।

राज व्यवस्था की कमियों के कारण जहाँ पहले स्वयं को उच्च वर्ग समझने वाले उपनाम की पूँछ लगाए घूमते थे अब दलित, पिछड़ा, शोषित, वर्ग की भी आवश्यकता हो गई है कि उपनाम द्वारा अपनी जाति बताई जाए ताकि उनको राज्य व्यवस्था द्वारा जातिगत लाभ मिल सके। यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ कोई रास्ता नहीं दिखता जिससे उपनाम रूपी समाज को तोड़ने वाली पूँछ को काटा जा सके। यहाँ दो रास्ते हैं प्रथम की सरकारी काम-काज आदि में उपनाम लिखने का प्रचलन राज्य व्यवस्था द्वारा समाप्त किया जाए, या दूसरा रास्ता है कि उपनाम के विरूद्ध सामाजिक चेतना का शंखनाद फूँका जाये जिससे आमजन स्वेच्छा से उपनाम का परित्याग करें। इससे कम-से-कम बाह्य तौर पर ही सही जातिगत पहचान की वरीयता कम होगी।

आज सत्पुरूषों से आग्रह है कि राज्य व्यवस्था में शामिल होकर निम्न कानूनों की वकालत करें। छूआछूत आदि की समस्या के निपटारे की तरह जाति पूछना कानूनन जुर्म घोषित कर दिया जाए और जातिगत उपनाम चाहे वह नाम के आरंभ में हो या अंत में रखना बंद कराया जाए। राज व्यवस्था द्वारा ऐसे कानून बने इसके लिए कई सत्पुरूषों का योगदान, पुरूषार्थ और त्याग की आवश्यकता है जो आज के परिप्रेक्ष्य में कठिन कार्य है क्योंकि सत्पुरूष तो आजकल राज व्यवस्था से पूर्णरूपेण दूरी बनाए रखते हैं। वर्तमान राज व्यवस्था से कोई आशा रखना आज मूर्खता के सिवा कुछ नहीं क्योंकि धर्म को दरकिनार करके ही यह राज व्यवस्था कायम की गयी है अतः देश के नागरिकों का ही कर्तव्य है कि धर्म पालन तथा धर्म संबंधी कुव्यवस्थाओं को स्वयं के पुरूषार्थ द्वारा ठीक करने का कार्य करें।

 निःसन्देह बुद्धि का स्थान उत्कृष्ट है किन्तु बुद्धि के सौन्दर्य में हमारा समाज इतना डूबा कि वह बुद्धि विलास में बदल गया और श्रम का अधिकार ही छिन गया। श्रम को घृणा की दृष्टि से लोग देखने लगे। यह भूल गए की जितना ज्ञान का महत्व है वह महत्व कर्मों के कारण है अतः कर्म या श्रम की उपेक्षा करना एक प्रकार से ज्ञान की उपेक्षा ही है। 

 वर्ण व्यवस्था के स्थान पर यदि हम आश्रम व्यवस्था की दुर्गति पर ध्यान दें तो वर्णव्यवस्था स्वयमेव परिचालित होगी और किसी से कुछ कहने की कोई आवश्यकता न होगी। वर्ण व्यवस्था से आजीविका संबंधी कार्यों का पता चलता है किन्तु कोई अपने आश्रम में कितना दृढ़ है यह व्यक्ति के धार्मिकता का उच्च कोटी का पैमाना है जिसपर हमारा समाज आज तुलने को राजी नहीं। 

जरा ध्यान से आश्रम का शब्दार्थ देखें - आ=समान्तात् (चारों ओर) श्रम=परिश्रम। अर्थात् चारों ओर से चौकन्ने होकर श्रमपूर्वक जीवन यापन करना। प्रथम आश्रम ब्रह्मचर्य आश्रम जिसकी दशा किसी से छिपी नहीं। दूसरा गृहस्थाश्रम। इस आश्रम में भी ऋषि द्वारा किया उपदेश ऋतुगामी होने का ताक पर धरा है और इसके कारण समाज की क्या दशा हो रही है किसी से छिपा नहीं। आगे वानप्रस्थ और सन्यास आश्रम की दुर्गत की तो पूछो ही मत। 

 वर्ण निर्धारण से व्यक्ति के अहंकार की तुष्टि होती है और आजकल इसके द्वारा राजव्यवस्था से लाभ प्राप्ति होती है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति-समूह वर्ण-वर्ण या कहें जाति-जाति रटता दिखाई देता है। आश्रम में तो श्रम लगता है, धर्म कार्य में आजकल के लोगों को नुकसान प्रतीत होता है अतः न तो कोई इसके सम्बन्ध में वार्ता करना चाहता है न ही इसे निभाना। पूर्वजों की सम्पत्ति में हिस्सेदारी के साथ ही आजकल लोगों को उनके गौरव का ब्याज भी चाहिए या फिर उनपर किए गए जुल्मों का जुर्माना भी वसूलना है। उपनाम का प्रपंच इसी विषबेल पर आश्रित है। किन्तु यदि उनके पूर्वजों द्वारा किये गए अपराधों का जुर्माना वसूलने का कानून बनने लगे तो अधिकांश व्यक्ति लड़ पड़ेंगें की वह कार्य तो मेरे पूर्वजों ने किया उसकी सजा मुझे क्यों। 

आज आवश्यकता है कि आश्रम व्यवस्था में हो रही कमियों पर ध्यान दिया जावे और कर्मयोग की महत्ता को समाज में पुनः स्थापित किया जावे तो जातिवाद की समस्या का उच्छेद हो और उपनाम जैसे जाति के प्रतीक का महत्व समाप्त हो जाए। 

पुरातन काल का ध्यान पूर्वक अवलोकन करने पर ज्ञात होता है कि उस समय लोग आश्रम व्यवस्था में बँधे हुए थे। जिस आश्रम में होते उसका पालन करते थे। आजकल के युवाओं को देखा जाए तो शहरों को छोड़ो गाँवों में भी युवा अपसंस्कृति या कहें बाजार संस्कृति जो भोगवाद की पोषक है के दलदल में फँसा जा रहा है। 

 जिन युवाजन को हम उसकी आत्मा को झकझोरकर अपसंस्कृति के विकार दिखा देते हैं वह भी वैचारिक चौराहे पर पहुँच जाता है। उसे समझ ही नहीं आता कि अब वह क्या करे। वस्तुतः परम सत्य की खोज और उसका अनुसरण पुरूषार्थ का कार्य है। यह कार्य केवल सन्यास ग्रहण करने और वन में गमन करने से ही नहीं सिद्ध होता वरन् जीवन के सभी आश्रमों में अध्यात्म और सत्य का स्थान है। वैराग्य होने का अर्थ यह नहीं की व्यक्ति जिस आश्रम में है उसे त्यागकर सन्यास ग्रहण कर ले प्रत्युत ग्रहण किए आश्रम की जिम्मेदारीयाँ निभाने को प्रस्तुत रहे। वैराग्यवान होकर अनासक्ति के साथ ग्रहण किए आश्रम की जिम्मेदारीयाँ निभाना ही कर्मयोग है। 

आश्रम व्यवस्था बड़ी ही व्यवस्थापूर्वक कार्यान्वित होती है। प्रथम ब्रह्मचर्याश्रम को विधिपूर्वक नहीं निभाने वाले अगले आश्रम में दुःख उठाने को बाधित होते हैं और यदि इस आश्रम में भी पुरूषार्थ और विवेक से काम नहीं लिया तो वृद्धावस्था में वानप्रस्थी होने पर पुनः दुःख प्राप्ति ही होगी। जिन्होने इन आश्रमों में पुरूषार्थ न किया हो उन्हे तो सन्यास आश्रम के विषय में सोचने का अवसर ही न मिलेगा। 

जातिवाद और उपनाम धर्म के लोप के कारण लोग बता देते हैं किन्तु इसका आरम्भ तो सामान्य व्रतों के खण्डन होने से ही हो गया। 

 लोग बातें तो उच्च कोटी के धर्म की स्थापना की करते हैं किन्तु सामान्य व्रतों के अनुष्ठान को नाले में बहा देते हैं। आजकल के ढोंगी समाज का ध्यान से अवलोकन करें। अपने अवलोकन में ब्रह्मचर्याश्रम, सन्यास आश्रम के लोगों को भी सम्मिलित कर लें। 

अब देखिए क्या विडंबना है कि सामान्य जन हों या ब्रह्मचारी अथवा सन्यासी सभी की जिव्हा से आप सुनेंगे क्या आप ध्यान करते हैं? अरे बावलों ध्यान तो अंतिम चरण है प्रथम चरण तो यम, नियमादि हैं। क्या किसी ने पूछा कि भाई जीवन में यम, नियमादि व्रतों का अनुष्ठान कैसा चल रहा है ? 

उसी प्रकार जातिवाद भगाओ, जात-पाँत का बन्धन तोड़ो ऐसे नारे लगाने वाले बहुतेरे मिलेंगे और नाम पूछो तो घमण्ड से फलाना चौधरी, ढिकाना शर्मा आदि बताएँगे। जातिवाद का आरंभ तो आपके उपनाम उच्चारित करने से ही हो गया। इसे आप गौण क्यों समझते हैं जैसे नदी का उद्गम स्थल देखें तो एक छोटा सा नाला प्रतीत होता है किन्तु आगे चलकर वही विहंगम नदी में बदल जाता है। उसी प्रकार उपनाम हमें छोटा सा विकार प्रतीत होता है अपितु जातिव्यवस्था का उद्गम स्थल यही है। 

अतः इसे छोटा जान कर इसे नजर अंदाज करने के स्थान पर इस पर पूरी शक्ति से कुठाराघात करना ही अपेक्षित है।

COMMENTS

BLOGGER
नाम

अध्यात्म,200,अनुसन्धान,19,अन्तर्राष्ट्रीय दिवस,2,अभिज्ञान-शाकुन्तलम्,5,अष्टाध्यायी,1,आओ भागवत सीखें,15,आज का समाचार,13,आधुनिक विज्ञान,19,आधुनिक समाज,146,आयुर्वेद,45,आरती,8,उत्तररामचरितम्,35,उपनिषद्,5,उपन्यासकार,1,ऋग्वेद,16,ऐतिहासिक कहानियां,4,ऐतिहासिक घटनाएं,13,कथा,6,कबीर दास के दोहे,1,करवा चौथ,1,कर्मकाण्ड,119,कादंबरी श्लोक वाचन,1,कादम्बरी,2,काव्य प्रकाश,1,काव्यशास्त्र,32,किरातार्जुनीयम्,3,कृष्ण लीला,2,क्रिसमस डेः इतिहास और परम्परा,9,गजेन्द्र मोक्ष,1,गीता रहस्य,1,ग्रन्थ संग्रह,1,चाणक्य नीति,1,चार्वाक दर्शन,3,चालीसा,6,जन्मदिन,1,जन्मदिन गीत,1,जीमूतवाहन,1,जैन दर्शन,3,जोक,6,जोक्स संग्रह,5,ज्योतिष,49,तन्त्र साधना,2,दर्शन,35,देवी देवताओं के सहस्रनाम,1,देवी रहस्य,1,धर्मान्तरण,5,धार्मिक स्थल,48,नवग्रह शान्ति,3,नीतिशतक,27,नीतिशतक के श्लोक हिन्दी अनुवाद सहित,7,नीतिशतक संस्कृत पाठ,7,न्याय दर्शन,18,परमहंस वन्दना,3,परमहंस स्वामी,2,पारिभाषिक शब्दावली,1,पाश्चात्य विद्वान,1,पुराण,1,पूजन सामग्री,7,पौराणिक कथाएँ,64,प्रश्नोत्तरी,28,प्राचीन भारतीय विद्वान्,99,बर्थडे विशेज,5,बाणभट्ट,1,बौद्ध दर्शन,1,भगवान के अवतार,4,भजन कीर्तन,38,भर्तृहरि,18,भविष्य में होने वाले परिवर्तन,11,भागवत,1,भागवत : गहन अनुसंधान,27,भागवत अष्टम स्कन्ध,28,भागवत एकादश स्कन्ध,31,भागवत कथा,118,भागवत कथा में गाए जाने वाले गीत और भजन,7,भागवत की स्तुतियाँ,3,भागवत के पांच प्रमुख गीत,2,भागवत के श्लोकों का छन्दों में रूपांतरण,1,भागवत चतुर्थ स्कन्ध,31,भागवत तृतीय स्कन्ध,33,भागवत दशम स्कन्ध,90,भागवत द्वादश स्कन्ध,13,भागवत द्वितीय स्कन्ध,10,भागवत नवम स्कन्ध,25,भागवत पञ्चम स्कन्ध,26,भागवत पाठ,58,भागवत प्रथम स्कन्ध,21,भागवत महात्म्य,3,भागवत माहात्म्य,12,भागवत मूल श्लोक वाचन,55,भागवत रहस्य,53,भागवत श्लोक,7,भागवत षष्टम स्कन्ध,19,भागवत सप्तम स्कन्ध,15,भागवत साप्ताहिक कथा,9,भागवत सार,33,भारतीय अर्थव्यवस्था,4,भारतीय इतिहास,20,भारतीय दर्शन,4,भारतीय देवी-देवता,6,भारतीय नारियां,2,भारतीय पर्व,40,भारतीय योग,3,भारतीय विज्ञान,35,भारतीय वैज्ञानिक,2,भारतीय संगीत,2,भारतीय संविधान,1,भारतीय सम्राट,1,भाषा विज्ञान,15,मनोविज्ञान,1,मन्त्र-पाठ,7,महापुरुष,43,महाभारत रहस्य,33,मार्कण्डेय पुराण,1,मुक्तक काव्य,19,यजुर्वेद,3,युगल गीत,1,योग दर्शन,1,रघुवंश-महाकाव्यम्,5,राघवयादवीयम्,1,रामचरितमानस,4,रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण,124,रामायण के चित्र,19,रामायण रहस्य,65,राष्ट्रीयगीत,1,रुद्राभिषेक,1,रोचक कहानियाँ,150,लघुकथा,38,लेख,168,वास्तु शास्त्र,14,वीरसावरकर,1,वेद,3,वेदान्त दर्शन,10,वैदिक कथाएँ,38,वैदिक गणित,1,वैदिक विज्ञान,2,वैदिक संवाद,23,वैदिक संस्कृति,32,वैशेषिक दर्शन,13,वैश्विक पर्व,9,व्रत एवं उपवास,35,शायरी संग्रह,3,शिक्षाप्रद कहानियाँ,119,शिव रहस्य,1,शिव रहस्य.,5,शिवमहापुराण,14,शिशुपालवधम्,2,शुभकामना संदेश,7,श्राद्ध,1,श्रीमद्भगवद्गीता,23,श्रीमद्भागवत महापुराण,17,संस्कृत,10,संस्कृत गीतानि,36,संस्कृत बोलना सीखें,13,संस्कृत में अवसर और सम्भावनाएँ,6,संस्कृत व्याकरण,26,संस्कृत साहित्य,13,संस्कृत: एक वैज्ञानिक भाषा,1,संस्कृत:वर्तमान और भविष्य,6,संस्कृतलेखः,2,सनातन धर्म,2,सरकारी नौकरी,1,सरस्वती वन्दना,1,सांख्य दर्शन,6,साहित्यदर्पण,23,सुभाषितानि,8,सुविचार,5,सूरज कृष्ण शास्त्री,455,सूरदास,1,स्तोत्र पाठ,59,स्वास्थ्य और देखभाल,1,हँसना मना है,6,हमारी संस्कृति,93,हिन्दी रचना,32,हिन्दी साहित्य,5,हिन्दू तीर्थ,3,हिन्दू धर्म,2,about us,2,Best Gazzal,1,bhagwat darshan,3,bhagwatdarshan,2,birthday song,1,computer,37,Computer Science,38,contact us,1,darshan,17,Download,3,General Knowledge,29,Learn Sanskrit,3,medical Science,1,Motivational speach,1,poojan samagri,4,Privacy policy,1,psychology,1,Research techniques,38,solved question paper,3,sooraj krishna shastri,6,Sooraj krishna Shastri's Videos,60,
ltr
item
भागवत दर्शन: उपनाम क्या आवश्यक है ?
उपनाम क्या आवश्यक है ?
भागवत दर्शन
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/01/blog-post_1.html
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/
https://www.bhagwatdarshan.com/2024/01/blog-post_1.html
true
1742123354984581855
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content