ब्रह्मोद्य कथाएँ |
ब्रह्म अर्थात वैदिक कर्म, आध्यात्मिक ज्ञान अथवा यज्ञ विषयिणी कथाओ को ब्रह्मोद्य कथाएँ कहते हैं। उत्तर वैदिक काल में वैदिक दर्शन से सम्बद्ध दो धाराएं चलती प्रतीत होती हैं। प्रथम धारा नितान्त कर्मकाण्डपरक थी जब कि द्वितीय धारा ने वेदों में दार्शनिक अर्थ ढूढने की चेष्टा की । उत्तर वैदिक काल का अन्त होते-होते द्वितीय धारा ही प्रबल हो रही थी। यज्ञ की प्रक्रियाये जटिल तो थीं हीं साथ ही प्रबुद्ध वर्ग की वौद्धिक उत्कंठा को शान्त करने में असमर्थ भी थीं । ऐसी स्थिति में ऐसा भी एक वर्ग उठ खडा हुआ जिसने वैदिक कर्मकाण्डों से दूर अध्यात्म-चिंतन किया तथा ब्रह्म जीव और जगत के विषय में अपने विचारों को अभिव्यक्ति प्रदान की । यहां तक कि उन्होंनें यज्ञों को भी, अधिभूत से हटकर अध्यात्म और अधिदैवत से सम्बद्ध व्याख्या की । ब्रह्मोध कथाएँ ऐसे ही व्यक्तियों से परस्पर संवाद हैं। यद्यपि ब्राह्मण प्रधान रूप से अध्ययन और अध्यापन करने वाली जाति थी, किन्तु इस अध्यात्म -विधा के विकास मे क्षत्रियों का भी समान योग रहा। शतपथ ब्राह्मण में इस प्रकार की १६ कथाएँ हैं ।
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