याज्ञवल्क्य एवं अश्वल संवाद

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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याज्ञवल्क्य एवं अश्वल संवाद
याज्ञवल्क्य एवं अश्वल संवाद


  यज्ञ विविध हैं- अधिदेव, अध्यात्म और ऋत्तिकों के द्वारा सोमपान प्रतीक यज्ञ या अधिमूत यज्ञ। अधिदैव यज्ञ में अग्नि, आदित्य, वायु और चन्द्रमा अध्यात्म में वाक्, चक्षु, प्राण, एवं मन के रूप व्यक्त हुए हैं। ये ही अधिभूत में क्रमश होता अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा है । अध्यात्म और अधिभूत में दर्शपूर्णमासादि सांग होने के कारण बन्धनकारी है। इन्हे अधिदेव अर्थ में ग्रहण करने पर आदित्यादि के प्रति दिन रातादि की सत्ता का अभाव होने से काल लक्षण मृत्यु एवं अध्यात्म अधिभूत अर्थका निषेध कर देने पर यजमान कर्मलक्षण मृत्यु से मुक्ति पा लेता है। अतएव केवल ज्ञान युक्त कर्म ही भोगकारी है।

विदेह राज जनक ने एक विशाल दक्षिणा वाले यज्ञ द्वारा यजन किया। उसमें कुरू और पांचाल देश के ब्राह्मण एकत्र हुए। राजा जनक को यह जानने की इच्छा हुई कि इन ब्राह्मणों में अनूचानतम कौन हैं। इसलिए उसने एक सहस्र गायें गौशाला में रोक लीं। उनमें से प्रत्येक के सींगों में दश दश पाद सुवर्ण बंधे हुए थे। उसने उनसे कहा, पूज्य ब्राह्मणों! आप लोगों में से जो ब्रह्मिष्ठ हो, वह इन गायों को ले जाए। किन्तु उन ब्राह्मणो का साहस न हुआ। तब याज्ञवल्क्य ने अपने ही एक ब्रह्मचारी से कहा, हे सौम्य सामश्रवा तू इन्हे ले जा । तब वह इन्हे ले चला। इससे वे ब्राह्मण यह हम सब मे अपने को ब्रह्मिष्ठ कैसे कहता है, इस प्रकार कहते हुए क्रुद्ध हो गये ।

  विदेह राजा जनक का होता अश्वल था । उसने याज्ञवल्क्य से पूछा, याज्ञवल्क्य हम सब मे क्या तुम ही ब्रह्मिष्ठ हो । उसने कहा ब्रह्मिष्ठ को तो नमस्कार करते हैं, हम तो गायो की ही इच्छा वाले हैं जैसा ब्राह्माण्ड में है वैसा ही मनुष्य शरीर मे भी घटित हो रहा है। मनुष्य शरीर में वाक्, चक्षु, प्राण, और मन क्रमश ब्रह्माण्ड पुरुषगत अग्नि, आदित्य वायु, चन्द्रमा के प्रतिनिधि ही हैं। इसी प्रकार अध्वर्यु, उद्गाता और ब्रह्मा भी यज्ञ पुरुष के क्रमश. वाक, चक्षु, प्राण, मन, स्थानीय है। इन्हीं में विविध कर्मों से मनुष्य मृत्यु आदि का अतिक्रमण कर लेता है। अज्ञान जनित आसक्ति के स्थान को छोड स्वर्गादि की प्राप्ति करता है।

  हे याज्ञवल्क्य । अश्वल ने कहा, यह सब जो मृत्यु से व्याप्त है, मृत्यु द्वारा स्वाधीन किया हुआ है, उस मृत्यु की व्याप्ति का यजमान किस साधन से अतिक्रमण करता है, याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, यजमान होता ऋत्विक रूपाग्नि से और वाक द्वारा उसका अतिक्रमण कर सकता है। वाक ही यज्ञ मे प्रमुख होता है। यह जो वाक् है यही अग्नि है, यही होता है, यही मुक्ति एवं अतिमुक्ति है।

  अश्वल ने कहा, है याज्ञवल्क्य यह जो कुछ है सब दिन और रात्रि से व्याप्त है । सब दिन एवं रात्रि के अधीन है तब भला किस साधन के द्वारा यजमान दिन एव रात्रि के व्याप्ति का अतिक्रमण कर सकता है। याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, अध्वर्यु, ऋत्विक् और चक्षुरूप आदित्य के द्वारा। अध्वर्यु यज्ञ का चक्षु ही है। अतः यह जो चक्षु है,आदित्य है । वह अध्वर्यु है, वही मुक्ति और वही अतिमुक्ति भी है। 

  अश्वल ने कहा, हे याज्ञवल्क्य - यह जो कुछ है वह पूर्वापर पक्ष से व्याप्त है। सब कुछ पूर्वापर पक्ष द्वारा वशीभूत है। किस उपाय से यजमान पूर्वपक्ष और अपरपक्ष की व्याप्ति सेस पार होकर मुक्त होता है । याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, ऋत्विक से और वायुरुप प्राण से क्योकि उद्गाता यज्ञ का प्राण ही है तथा यह जो प्राण है वही वायु है वही उद्गाता है वही मुक्ति है, और अतिमुक्ति है।

  अश्वल ने कहा, हे याज्ञवल्क्य यह जो अन्तरिक्ष है, वह निरालम्ब सा है । अत यजमान किस आलम्बन से स्वर्गलोक मे चढता है । याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, ब्रहमा ऋत्विक के द्वारा और मन रुप चन्द्रमा से । ब्रह्मा यज्ञ का मन ही है। यह जो मन है, यही चन्द्रमा है, वह ब्रह्मा है, वह मुक्ति है, और वही अतिमुक्ति है।

  अश्वल ने कहा, हे याज्ञवल्क्य आज कितनी ऋचाओ के द्वारा होता इस यज्ञ मे शस्त्रशसन करेगा ? याज्ञवल्क्य ने उत्तर दिया, तीन के द्वारा अश्वबल, वे तीन कौन सी हैं ? याज्ञवल्क्य, पुरोनुवाक्या, याज्या और शस्या ।

  अश्वल ने कहा, हे याज्ञवल्क्या आज इस यज्ञ मे अध्वर्यु कितनी आहुतिया देगा? याज्ञवल्क्य, तीन अश्वबल, ये तीन कौन-कौन सी हैं? याज्ञवल्क्य, जो होम की जाने पर प्रज्वलित होती हैं, जो होम की जाने पर शब्द करती है, जो होम की जाने पर पृथ्वी मे लीन हो जाती हैं। अश्वबल, इसके द्वारा यजमान किसे जीतता है? याज्ञवल्क्य, जो होम किये जाने पर प्रज्वलित की जाती है, उनसे यजमान देवलोक को ही जीत लेता है, क्योंकि देवलोक मानों देदीप्यमान हो रहा है। जो होम किये जाने पर अत्यन्त शब्द करती है, उनसे वह पितृ लोक को ही जीत लेता है, क्योंकि पितृ लोक अत्यन्त शब्द करने वाला है। जो होम की जाने पर पृथ्वी में लीन हो जाती है, उनसे मनुष्य लोक को ही जीतता है, क्योंकि मनुष्य लोक अधोवर्ती है।

  हे याज्ञवल्क्य! अश्वल ने कहा, आज यह ब्रह्मा यज्ञ में दक्षिण की ओर बैठकर कितने सूर्य देवताओं द्वारा यज्ञ की रक्षा करता है? याज्ञवल्क्य, एक के द्वारा। अश्वल, वह एक देवता कौन है याज्ञवल्क्य, वह मन ही है। मन अनन्त है और विश्वदेव भी अनन्त है, अत उस मन से यजमान अनन्त लोकों को जीत लेता है।

  हे याज्ञवल्क्य | अश्वल ने कहा, आज इससे यज्ञ में उद्गाता कितनी ऋचाओं का स्तवन करेगा। याज्ञवल्क्य याज्ञवल्क्य - तीनो का । अश्वबल- वे तीन कौन सी हैं? पुरोनुवाक्या, याज्या और शस्या अश्वबल, इनमें से जो शरीर के अन्दर रहने वाली है। याज्ञवल्क्य - प्राण ही पुरोनुवाक्या है, अपान याज्या है और व्यान शस्या है। अश्वबल इनसे यजमान किन पर विजय प्राप्त करता है। याज्ञवल्क्य - पुरोनुवाक्या से पृथ्वी लोक पर याज्या से अन्तरिक्ष लोक पर और शस्या से द्युलोक पर विजय प्राप्त करता है। इसके पश्चात् अश्वबल चुप हो गया ।

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