गृत्समद इन्द्र और दैत्यगण की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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   गृत्समद ने "त्वम्"" से आरम्भ ऋचा से अग्नि की स्तुति की है। तत्पश्चात् "यज्ञेन " और "समिद्धो" जातवेदस् को सम्बोधित है। "हुवे से आरम्भ सात सूक्तों में गृत्समद् नें अग्नि की स्तुति की है। गृत्समद ने तप के साथ अपना सामंजस्य स्थापित करके इन्द्र के समान विराट शरीर धारण किये हुए वह एक मुहूर्त में ही दिव्यलोक आकाश और पृथ्वी पर प्रकट हुये।

  जिस समय गृत्समद् पृथ्वी पर प्रकट हुए उस समय धुनि और चुमुरि नामक पराक्रमी दैत्य उन्हें इन्द्र समझकर उन पर वज्र सहित टूट पड़े। दैत्यों द्वारा आक्रमण किये जाने के पश्चात दोनो के पापपूर्ण भाव को जानकर ऋषि गृत्समद ने 'योजातएव । सूक्त द्वारा इन्द्र के कार्यों का गान किया।

  जब गृत्समद् ने इन्द्र के कार्यों का गान किया तो उस गान के द्वारा दोनों दैत्यों 'धुनि और  चुमुरि में भय उत्पन्न हो गया। इन्द्र ने यह कहते हुए उन्हें मार गिरायर कि "यह मेरा अवसर है।" दैत्यों को मार गिराने के पश्चात गृत्समद ऋषि से कहा- इन्द्र ने

"हे मित्र गृत्समद तुम मुझे एक प्रिय के रूप में देखो, क्योंकि तुम मुझे अत्यन्त प्रिय हो गये हो।"

  इन्द्र ने गृत्समद् पर प्रसन्न होकर उनसे कहा- "हे गृत्समद ! तुम मुझसे कोई एक वर माँगो तुम्हारा तप अक्षय हो। इन्द्र के ऐसा कहने पर गृत्समद नत् मस्तक होकर इन्द्र से बोले-

हे वक्ताओं में श्रेष्ठ हम लोगों को ऐसी शक्ति प्रदान करो जिससे शरीर की सुरक्षा हो सके और हृदयड गम हो जाने वाली वाणी की भी सुरक्षा हो सके तथा हमें ऐसी शक्ति दो कि हम वीर बनें और सम्पत्ति से परिपूर्ण हो।"

  "हे इन्द्र हम अन्तरात्मा से तुम्हारा ध्यान करते हैं और हम तुम्हें प्रत्येक जन्म में जान लेते है, तुम हमसे दूर मत जाओ, तुम श्रेष्ठ रथी हो।" गृत्समद के इस प्रकार वर मांगने पर ऋषि ने इन सबका वर के रूप में वरण किया। यह सुनकर परम विजयी शचीपति इन्द्र ने सहमत होकर ऋषि को अपने दाहिने हाथ से पकड़ लिया। ऐसा करने पर ऋषि ने भी इन्द्र के प्रति मैत्री भाव प्रकट करते हुए उन्हें हाथ से पकड़ लिया।

  किसी समय धुनि और चुमुरि नामक दोनों दैत्यों ने साथ-साथ इन्द्र के आवास में प्रवेश किया। वहाँ पुरन्द इन्द्र ने स्वयं गृत्समद् का आदर तथा पूजन किया। अपनी मित्रता के कारण इन्द्र ने ऋषि को पुनः सम्बोधित किया-

  "हे ऋषियों में श्रेष्ठ! तुम अपनी स्तुति द्वारा हम लोगो को प्रसन्न करते हो अतः शुनहोत्र के पुत्र होने के कारण तुम्हारा नाम गृत्समद् होगा ।

   तत्पश्चात् श्रधि से आरम्भ बारह सूक्तो द्वारा ऋषि ने इन्द्र की स्तुति की। इन्द्र की स्तुति करते समय गृत्समद् ने वहाँ ब्रह्मणस्पति के दर्शन किये।

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