इन्द्र का जन्म और वामदेव के साथ युद्ध'

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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 अदिति के गर्भ में विद्यमान इन्द्र ने कहा कि मैं उचित रूप से जन्म नहीं लूँगा, तो अपने हित की रक्षा के लिए अदिति ने उसे समझाया किन्तु उसके समझाने के बाद भी इन्द्र ने जन्म लेने के तुरन्त बाद ही ऋषि को युद्ध के लिए ललकार दिया।

  तत्पश्चात् इन्द्र और वामदेव के साथ युद्ध आरम्भ हो गया। युद्ध आरम्भ होने के पश्चात् इन्द्र नें वामदेव को पराजित करने के लिए अपने बल का प्रयोग किया। इस प्रकार वामदेव तथा इन्द्र के बीच दस दिन तथा रात्रियों तक युद्ध चलता रहा। अन्त में वामदेव नें अपनी शक्ति द्वारा इन्द्र को पराजित कर दिया।

  "क इमम्" ऋचा में गौतम नें उसका ऋषियों की सभा मे विक्रय करते हुए इस उद्देश्य से "नकिर इन्द्र" द्वारा स्वयं उसकी स्तुति की तथा "किंम आव" के द्वारा उसके कोध को बीच में ही समाप्त कर दिया। तत्पश्चात् ऋषि ने इन्द्र के रूप, वीरता तथा धीरतापूर्ण कार्यो और विविध कर्मों को अदिति से बताया। इस प्रकार वामदेव ने 'अहम्" से प्ररम्भ अपने सूक्त में यद्यपि आत्मस्तुति की है, परन्तु वह इन्द्र की ही स्तुति मानी जाती है।

बृहदेवता में वामदेव एवं इन्द्र से सम्बन्धित एक दूसरी कथा भी पायी जाती है। इसके अनुसार दोनो में अत्यधिक मित्रता थी। किसी समय वामदेव ने देवों, ऋषियों और पितरो की पूजा के लिए अन्य सामग्री के अभाव में कुत्ते की अतडियों को पकाया था, उस समय इन्द्र उस ऋषि के लिए मधु ले आये थे। इस पर गौतम के वंशज उस ऋषि ने 'त्वाम्" से प्रारम्भ होनें वाले १५ सूक्तों द्वारा अग्नि की तथा "आ" से प्रारम्भ १६ सूक्तों द्वारा इन्द्र की स्तुति की।

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