अरण्य विलाप

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
By -
अरण्य विलाप, आचार्य सूरज कृष्ण शास्त्री 

गधों में होड़ है इस बात की ,कोई बताए तो ,
कि उनके बीच सबसे जोर से अब रेंकता है कौन??
भले ही दौड़ने में ,या कि बोझा छोड़ कर घर का ,
पिछाड़ी से यहाँ पर बस दुलत्ती फैंकता है कौन ??

हमारे हर मुहल्ले में है बस वन्ध्याकरण जारी ,
कभी बछड़ों की है बारी , कभी घोड़ों की है बारी 
हैं सारे धान बस बाइस पसेरी अपनी मण्डी में ,
दनादन चल रही " मजदूर बेचो" इसकी तैय्यारी ।।

 स्वदेशी तेल बेचे ,हम विदेशी माल पर लट्टू ,
अभी भी द्वार पर लटका रहे हैं हम नज़रबट्टू।
पड़ोसी ही लुटेगा ,हमको क्या ? ये सोचते हैं हम,
निखखट्टू थे निखट्टू हैं ,निखट्टू होंगे ये गट्टू ।।

सड़क से राजमहलों तक निरे फेकू ,निरे जोकर ,
लगेगी लल्लुओं के ठीक पिछवाड़े कड़ी ठोकर ।.
यहाँ पर हूकते उल्लू बनाते दिन को रातों सा,
खुलेगी आँख इनकी .अपने सूरज को ही खोकर ।।

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