मुद्गलानी की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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   यह रोचक कहानी है। यह वैदिक कालीन सभ्यता पर प्रकाश डालती है। पति के साथ पत्नी युद्ध में जाती थी स्त्रियाँ भी पुरूषों के समान युद्ध में भाग लेती थी।

  कुछ घटना ऐसी घटी। भृमस्व के पुत्र मुद्गल की गायों तथा वृषभों की चोरी हो गयी। मुद्गल के पास केवल एक वृद्ध बैल शेष रह गया। पशु-धन का अपहरण थ। मुद्गल व्यथित हो गयें उनकी चिन्ता देखी, उनकी पत्नी ने। सुपात्र गृहिणी की तरह चिन्तित नहीं हुई। घटना का सामना करने की दृष्टि से बलवती वाणी में बोलो :-

"चिन्ता क्यों करते हैं ? एक वृद्ध वृषभ बचा हैं। उसी से अपहर्ताओं का पीछा करेंगे।"

ब्रहावादिनी मुद्गालानी तथा इन्द्रसेना से अपूर्व चेतना उत्पन्न हो गयी थी। मुद्गल ने बूढ़ा बैल रथ में योजित किया । इन्द्रसेना उसकी सक्रिय सहायता करने लगी । कठिनाइयों की उन्हें चिन्ता नहीं थीं । मुद्गल के हाथ में आयुध रूप के एक दूघण था।

मुद्गल ने रथ के पहियों को चारो ओर से मजबूती से बाँधा मुद्गल की पत्नी बैल को रथ के समीप लायी।

बृषभ बूढा था। परन्तु उसकी गति कम नहीं थी। उसमें शक्ति थी अपनी सींग से से मिट्टी के ढेर को ढहाने वाला बैल उग्र रूप से चला।

इन्द्रसेना ने सारथी का स्थान ग्रहण किया। उसने बैल की रस्सी सम्हाली । उसका पति मुद्गल रथारूढ़ बृद्ध बैल योजित रथ वेग से दौड़ाता, तस्करों के पीछे चला ।

असीम साहस का परिचय दिया इन्द्रसेना ने । असीम पौरुष का प्रदर्शन किया मुद्गल ने और अपूर्व शक्ति प्रकट की वृषभ ने तीनों प्राणियों के विजय का संयुक्त साधन बन गया। उनका बज्र से भी समयोपयोगी एक मात्र अस्त्र था । द्रुघण। वही उनके विजय का कारण बना।

इन्द्रसेना चतुर सारथी प्रमाणित हुई। असके अपूर्व स्थ- कौशल के कारण रथ तस्करों तक संवेग पहुँच गया। तस्कर चकित हुए । साधनहीन विचित्र विरोधियों को देखकर |

और वापस आये वे अपहृत पशुधन के साथ दस्यु पराभूत हुए। प्रसन्न हो गया पुनः गायों को लौटा देख वृद्ध वृषभ और जगत ने देख मन्त्रद्रष्टा मुद्गल की ब्रहावादिनी स्त्री का अपूर्व वीरत्व ।

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