याज्ञवल्क्य - शाकल्य संवाद (शत.११/६/३/१, १४/३/९/१)

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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याज्ञवल्क्य - शाकल्य संवाद
याज्ञवल्क्य - शाकल्य संवाद

अनन्त देवों की निविद सख्या विशिष्ट देवों मे अन्तर्भाव है और उनका भी तैंतीस देवो मे और अन्ततः एक देव प्राण में ही अन्तर्भाव है। एक प्राण का ही अनन्त संख्या के रूप में विस्तार हुआ है। यहा अधिकार भेद से एक ही देव के नाम रुप, कर्म, गुण और शक्ति का भेद है। उसी प्राण के भेद प्रतिष्ठा सहित बताए गये हैं।

  इसके पश्चात् शाकल्य विदग्ध ने याज्ञवल्क्य से प्रश्न किया - याज्ञवल्क्य देवता कितने हैं ? 

याज्ञवल्क्य तीन सहस्र तीन सौ छ । 

शाकल्य - ठीक है। कितने देवता हैं ? 

याज्ञवल्क्य - तैंतीस ।

शाकल्य ने कहा ठीक है कितने देवता है ? 

याज्ञवल्क्य - छः देव हैं। 

शाकल्य - ठीक है, कितने देवता हैं? 

याज्ञवल्क्य - केवल तीन देव हैं। 

शाकल्य, ठीक है, कितने देवता हैं? 

याज्ञवल्क्य - दो देवता हैं। ठीक है। 

शाकल्य - कितने देवता हैं? 

याज्ञवल्क्य- एक देव है। 

शाकल्य - ठीक है, तीन सहस्र तीन सौ छः देव कौन हैं? 

याज्ञवल्क्य- देवता तो ३३ हैं, ये उनकी महिमायें हैं। 

शाकल्य - तैंतीस देवता कौन हैं ? 

याज्ञवल्क्य - आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य ये ३१ और इन्द्र तथा प्रजापति, ये ३३ देव हैं। 

शाकल्य ने कहा - वसु कौन हैं ? 

याज्ञवल्क्य - अग्नि, पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य, द्युलोक, चन्द्रमा एवं नक्षत्र - ७ ये आठ वसु हैं। इन्हीं में यह सारा जगत विहित है अतः ये वसु हैं। 

शाकल्य - रुद्र कौन हैं ? 

याज्ञवल्क्य - पुरुष में ये दश प्राण और ग्यारवां आत्मा । ये जिस समय इस मरणशील शरीर से उत्क्रमण करते हैं, उस समय रुला देते हैं। रुला देने के कारण ये रुद्र हैं। 

शाकल्य - आदित्य कौन हैं ? 

याज्ञवल्क्य - संवत्सर में १२ मास होते हैं, ये ही आदित्य हैं, ये सब का ग्रहण करते हुए चलने के कारण आदित्य कहलाते हैं। 

शाकल्य - इन्द्र कौन हैं ? प्रजापति कौन है? 

याज्ञवल्क्य- स्तनयित्नु इन्द्र है। यज्ञ प्रजापति है। 

शाकल्य - स्तनयित्रु कौन है ? यज्ञ कौन है? 

याज्ञवल्क्य - स्तनयित्नु अशनि है, यज्ञ पशु है। 

शाकल्य - छः देव कौन है। 

याज्ञवल्क्य - अग्नि, पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्य और द्युलोक ये ६ देव हैं। 

शाकल्य - तीन देव कौन हैं? 

याज्ञवल्क्य ने कहा - तीनों लोक ही तीन देव हैं। इन्हीं मे सारे देव रहते हैं। 

शाकल्य - दो देव कौन हैं? 

याज्ञवल्क्य - अन्न और प्राण। 

शाकल्य- अध्यर्द्ध कौन है? यह अध्यर्द्ध क्यों हैं? 

याज्ञवल्क्य - क्योंकि इसी में यह सब ऋद्धि को प्राप्त होता है। 

शाकल्य एकदेव कौन है ? 

याज्ञवल्क्य - प्राण, वह ब्रह्म है, उसी को व्यद् कहते हैं। 

शाकल्य - पृथिवी ही जिसका आश्रय है, अग्नि जिसका नेत्र हैं, मन जिसकी ज्योति है उस पुरुष को सम्पूर्ण आत्माओं का परमाश्रय जानता है, वही सच्चा ज्ञाता है। 

याज्ञवल्क्य - जिसे सम्पूर्ण आत्माओं का परमाश्रय कहते हो उस पुरुष को मैं जानता हूँ। यह जो शरीर पुरुष है, वही यह है। शाकल्य और बोलो। 

शाकल्य - अच्छा उसका देवता कौन है? काम ही जिसका आयतन है हृदय लोक है, मन ज्योति है, उस पुरुष को जो सम्पूर्ण आत्माओं का परमाश्रय जानता है, वही ज्ञात है। 

याज्ञवल्क्य - जिसे तुम सम्पूर्ण आत्माओं का परमाश्रय कहते हो उस पुरुष को मैं जानता हैं। जो भी यह काममय पुरुष है। वही यह है । शाकल्य और बोलो। 

शाकल्य - उसका देवता कौन है ? 

याज्ञवल्क्य - स्त्रियाँ 

शाकल्य - रूप ही आयतन है, चक्षु लोक है, मन ज्योति है, उस पुरुष को जो सम्पूर्ण आत्माओं का परमाश्रय जानता है, वही ज्ञात है। याज्ञवल्क्य जिसे तुम सम्पूर्ण आत्माओं का परमाश्रय कहते हो मैं उस पुरुष को तो जानता हूं। जो भी यह आदित्य में पुरुष है, वही यह है। शाकल्य और बोलो। 

शाकल्य - उसका देवता कौन है ?

याज्ञवल्क्य - सत्य । 

शाकल्य - आकाश ही जिसका आयतन है। हृदय लोक है, मन ज्योति है, उस पुरुष को जो सम्पूर्ण आत्माओ का आश्रय जानता है, वही ज्ञाता है। 

याज्ञवल्क्य - जिसे तुम सम्पूर्ण आत्माओं का आश्रय कहते हो। उस पुरुष को तो मैं - जानता हूँ। जो भी यह श्रौत्र सम्बन्धी प्रातिश्रुत्क पुरुष है, वही यह है। शाकल्य और बोलो । 

शाकल्य उसका देवता कौन है ? 

याज्ञवल्क्य- दिशायें। 

शाकल्य - जिसका आयतन है हृदय लोक है मन ज्योति है, उस पुरुष को जो सम्पूर्ण आत्माओ तम ही का आश्रय जानता है, वही ज्ञाता है। 

याज्ञवल्क्य - जिसे तुम सम्पूर्ण आत्माओ का आश्रय कहते हो। उस पुरुष को तो मैं जानता हूँ। जो भी यह छायामय पुरुष है, वही यह है । शाकल्य और बोलो। 

शाकल्य - उसका देवता कौन है? 

याज्ञवल्क्य - मृत्यु ।

शाकल्य - रूप ही जिसका आयतन है, नेत्र लोक है, मन ज्योति है, उसस पुरुष को जो सम्पूर्ण आत्माओं का आश्रय जानता है, वही ज्ञाता है।

याज्ञवल्क्य - जिसे तुम सम्पूर्ण आत्माओ का परमाश्रय कहते हो उस पुरुष को तो मैं जानता हूँ। जो भी यहआदर्श में पुरुष है वही यह है। शाकल्य और बोलो। 

शाकल्य - उसका देवता कौन है ? 

याज्ञवल्क्य - असु ।

शाकल्य - जल ही जिसका आयतन है, हृदय लोक है, मन ज्योति है, जो भी पुरुष को सम्पूर्ण आत्माओ का परम आश्रय जानता है, वही ज्ञाता है। 

याज्ञवल्क्य - जिसे तुम सम्पूर्ण आत्माओं का आश्रय कहते हो उस पुरुष को तो मैं जानता हूँ। जो भी यह पुत्र रुप पुरुष है, वही यह है। शाकल्य और बोलो। 

शाकल्य - उसका देवता कौन है? 

याज्ञवल्क्य - प्रजापति है।

याज्ञवल्क्य ने कहा - शाकल्य इन ब्राह्मणों ने तुम्हें अंगारे निकालने का चिमटा बना दिया है। 

शाकल्य - याज्ञवल्क्य,  यह जो तुम कुरुपांचालदेशीय ब्राह्मणों पर आक्षेप करते हो, क्या तुम ब्रह्मवेत्ता हो? 

याज्ञवल्क्य - मैं देवता और प्रतिष्ठा के सहित दिशाओं को जानता हूँ। 

शाकल्य - इस पूर्व दिशा में तुम किस देवता से युक्त हो?

याज्ञवल्क्य - पूर्व दिशा में मैं आदित्य देवता से युक्त हूँ। 

शाकल्य - वह आदित्य किसमें प्रतिष्ठित है। 

याज्ञवल्क्य - नेत्रों में ।

शाकल्य - नेत्र किसमे प्रतिष्ठित हैं ? 

याज्ञवल्क्य - रुपों में। पुरुष नेत्र से ही रूपों को देखता है। 

शाकल्य - रुप किसमें प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य - हृदय में, क्योकि पुरुष हृदय में ही रूपों को जानता है। 

शाकल्य- याज्ञवल्क्य, यह बात ऐसी ही है।

शाकल्य - इस दक्षिण दिशा में तुम किस देवता वाले हो ? 

याज्ञवल्क्य - यम देवता वाला हूँ। 

शाकल्य - यम देवता किसमे प्रतिष्ठित है? 

याज्ञवल्क्य - यज्ञ में । 

शाकल्य- यज्ञ किसमें प्रतिष्ठित है। 

याज्ञवल्क्य- दक्षिणा में। 

शाकल्य-दक्षिणा किसमे प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य- श्रद्धा में । 

शाकल्य- श्रद्धा किसमे प्रतिष्ठित है? 

याज्ञवल्क्य ने कहा - हृदय में, क्योंकि हृदय से ही पुरुष श्रद्धा को जानता है। 

इस पर शाकल्य ने ऐसा ही है।

शाकल्य - इस पश्चिम दिशा में तुम किस देवता वाले हो । 

याज्ञवल्क्य - वरुण देवता वाला हूँ। 

शाकल्य - वरुण देवता किसमे प्रतिष्ठित है? 

याज्ञवल्क्य - जल में । 

शाकल्य - जल किसमें प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य - वीर्य में 

शाकल्य- वीर्य किसमें प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य - हृदय में। इसी से पिता के अनुरुप उत्पन्न हुए पुत्र को लोग कहते हैं कि मानों यह पिता के हृदय से ही निकला है, क्योंकि हृदय में वीर्य स्थित रहता है। 

शाकल्य - याज्ञवल्क्य, यह बात ऐसी ही है।

शाकल्य - इस उत्तर दिशा में तुम किस देवता वाले हो ? 

याज्ञवल्क्य - सोम देवता वाला हूँ। 

शाकल्य - सोमदेवता किसमें प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य- दीक्षा में । 

शाकल्य - दीक्षा किसमें प्रतिष्ठित है? 

याज्ञवल्क्य - सत्य में। इसी से दीक्षित पुरुष को सव्यबदन के लिए आदेश दिया जाता है । 

शाकल्य - सत्य किसमें प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य - हृदय में। क्योंकि पुरुष हृदय से ही सत्य को जानता है। 

शाकल्य - यह बात ऐसी ही है याज्ञवल्क्य ।

शाकल्य - इस ध्रुव दिशा में तुम किस देवता वाले हो याज्ञवल्क्य । 

याज्ञवल्क्य- अग्नि देवता वाला हूँ। 

शाकल्य - वह अग्नि किसमें प्रतिष्ठित है ?

याज्ञवल्क्य - हृहय में। 

शाकल्य - हृदय किसमें प्रतिष्ठित है? 

याज्ञवल्क्य - अहल्लिक (प्रेता)। जिस समय तुम हृदय से इसे अलग मानते हो उस समय यदि यह हम से अलग हो जाय तो इसे कुत्ते खा जाये। अथवा इसे पक्षी चोंच मार कर मार डालें।

शाकल्य- तुम (शरीर) और आत्मा (हृदय) किसमें प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य- प्राण में। 

शाकल्य - प्राण किसमे प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य - अपान में। 

शाकल्य - अपान किसमें प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य - व्यान में।  

 शाकल्य ने पूंछा - व्यान किसमें प्रतिष्ठित है ? 

याज्ञवल्क्य - उदान में। 

शाकल्य - उदान किसमें प्रतिष्ठित है? 

याज्ञवल्क्य - समान में। जिसका नेति नेति कह कर उपदेश किया गया है, वह आत्मा अगृह्य है, अशीर्य है, असंग है, असित है। ये आठ आयतन है, आठ लोक हैं, आठ देव हैं, आठ पुरुष हैं। वह जो इन पुरुषो को निश्चय पूर्वक जानकर उनका अपने हृदय में उपसंहार करके औपाधिक धर्मों का अतिक्रमण किये हुए है, उस औपनिषद पुरुष को मैं पूंछता हू, यदि तुम मुझे स्पष्ट रूप से न बतला सकोगे, तो तुम्हारा मस्तक गिर जायेगा। 

   उसका मस्तक गिर गया क्योंकि वह शाकल्य उस औपनिषद् ब्रह्म को नहीं जानता था। चोर लोग उसके गिरे मस्तक की हड्डियों को और कुछ समझ कर उठा ले गये। 

   फिर याज्ञवल्क्य ने कहा - पूज्य ब्राह्मणों। आपमें से जिसकी इच्छा हो, वह मुझसे प्रश्न करे, अथवा आप सब मुझसे प्रश्न करें। इसी प्रकार आप सब में से जिसकी इच्छा हो, उससे मैं प्रश्न करता हूं अथवा आप सबसे मैं प्रश्न करता हूं उन ब्राह्मणों का प्रश्न करने का साहस न हुआ । 

   तब याज्ञवल्क्य ने स्वयं कुछ श्लोको द्वारा प्रश्न किया - यह सत्य है कि पुरुष, वनस्पति, वृक्ष जैसा ही होता है। पुरुष मे त्वक् वल्कल स्थानीय होता है ॥१॥ चोट लगने पर त्वक् से रक्त और वल्कल से गोद निकलता है ॥२॥ पुरुष शरीर मे मांस शर्करा स्थानीय, अस्थि दारु स्थनीय है एव मज्जा वृक्ष और पुरुष मे समान रूप से है ॥३॥ किन्तु यदि वृक्ष को काट दे तो वह अपने मूल से पुनः नवीनतर होकर अंकुरित हो जाता है, लेकिन यदि मनुष्य को मृत्यु काट देता है तो वह किस मूल से अंकुरित होता है ॥४॥ वह वीर्य से उत्पन्न होता है, ऐसा तो मत कहो, क्योंकि वीर्य तो जीवित पुरुष से ही उत्पन्न होता है। बीज से उत्पन्न होने वाला वृक्ष भी कट जाने के बाद पुन अकुरित हो उत्पन्न हो उठता है ।।५।। यदि वृक्ष को मूल सहित उखाड दिया जाया तो वह पुनरुत्पन्न नहीं होगा। इसी प्रकार यदि मृत्यु मनुष्य को मूल से काट दे तो वह किस मूल से उत्पन्न होता है।

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