नरलोक और कर्म सिद्धान्त वरुण और भृगु संवाद

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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नरलोक और कर्म सिद्धान्त वरुण और भृगु संवाद
नरलोक और कर्म सिद्धान्त वरुण और भृगु संवाद

 वैदिक साहित्य में नरकलोक सम्बन्धी कल्पना के दर्शन सर्व प्रथम अथर्ववेद में मिलते हैं, जहां इसे अन्धतमस् लोक के रूप में चित्रित किया गया है। अथर्ववेद (५-१६) में नरकलोक की विभीषिका का भी चित्रण है। (शतपथ ब्राह्मण ६/२/२/२७) । के अनुसार समस्त प्राणी दूसरे लोको मे जन्म ग्रहण करते हैं एवं अच्छे बुरे कर्मों का फल पाते हैं। तैत्तिरीय आरण्यक ६/५/१६ के अनुसार कर्मानुकूल प्रत्येक प्राणी मरने के पश्चात यम के सम्मुख उपस्थित हो बुरे और भले के निर्धारण का उल्लेख करता है। इसी प्रकार की एक कथा शतपथ में भी आई है-

  भृगु अपने पिता को पिता वरुण की अपेक्षा अधिक विद्या सम्पन्न समझने लगा । वरुण ने इस बात को समझ लिया कि मेरा पुत्र अपने को मेरी अपेक्षा अधिक विद्वान समझने लगा है। वरुण ने कहा, पुत्र पूर्व की ओर जाओ। वहा जो कुछ भी हो देखकर पश्चिम की ओर जाना। वहां जो कुछ भी दिखायी दे उसे आकर मुझे बताना ।

  भृगु पूर्व की ओर गया। वहां उसने मनुष्य शरीर को पर्व पर्व पर काटकर कुछ मनुष्यों द्वारा परस्पर बांटते हुए देखा। देखते ही बोल पडा, अरे इतनी कठोरता, मनुष्य, मनुष्य के ही अंगों को काट कर बांट रहे हैं। उन मनुष्यों ने कहा, जिन्हें हम काट रहे हैं, उन्होने पहले हमारे साथ पूर्वलोक में यही व्यवहार किया था। अब हम लोग भी उसी प्रकार प्रतिकार कर रहे हैं। भृगु ने कहा, क्या उसका कोई प्रायश्चित है? मनुष्यों नें बताया कि प्रायश्चित अवश्य है जिसे तुम्हारे पिता जानते हैं। भृगु दक्षिण दिशा मे गया और पुरुषों के द्वारा पुरुषों के अंग-अंग को काट-काट कर परस्पर बांटते हुए देखा।

  भृगु ने दुःख के साथ कहा, कष्ट है, ये मनुष्य मनुष्य के ही अंगो को काटकर बांट रहे हैं। मनुष्यों नें बताया कि जिस प्रकार इन्होंने पूर्व लोक में हम लोगों के साथ व्यवहार किया था, वैसा ही व्यवहार हम लोग इनके साथ कर रहे हैं। भृगू के द्वारा प्रायश्चित पूछने पर उन लोगों ने बताया कि इसे तुम्हारे पिता जानते हैं। भृगु पश्चिम की ओर गया जहां उसने कुछ चुपचाप बैठे हुए लोगों को देखा। कुछ लोग बैठे हुए लोगों का मांस खा रहे थे। उसने यह भयानक दृश्य देख कर कहा, कष्ट है ये मनुष्य चुपचाप बैठे हुए लोगों का मांस खा रहे हैं। उन खाने वालों ने कहा, जैसे इन सब ने पूर्वलोक में हम लोगों के साथ व्यवहार किया। उसी का प्रतीकार हम लोग भी कर रहे हैं। भृगु ने पूँछा, क्या इसकी कोई प्रायश्चित है? लोगो ने बताया, इसका प्रायश्चित तुम्हारे पिता जानते हैं।

  भृगु अब उत्तर की ओर गया जहां रोते चिल्लाते हुए पुरूषों की शोर मचाते हुए पुरुषों द्वारा खाते हुए देखा। भृगू ने कहा, कष्ट है ये शोर मचाते हुए पुरुष रोते हुए पुरुषों को खा रहे हैं। पुरुषों ने बताया कि जो इन्होंने पूर्वलोक में हम लोगों के साथ व्यवहार किया। उसी का प्रतिकार हम लोग भी कर रहे हैं। भृगु ने पूछा, क्या इसकी कोई प्रायश्चित है? लोगों ने बताया, इसकी प्रायश्चित तुम्हारे पिता जी जानते हैं।

अब भृगु पश्चिमोत्तर कोण में गया जहां दो स्त्रियाँ कल्याणी और अतिकल्याणी के मध्य दण्डपाणि पुरुष को देखा। उन्हें देखकर भृगु डर गया और घर आकर बिस्तर पर पड़ गया।

पिता वरुण ने भृगु को निर्देश दिया कि उठो स्वाध्याय करो वेदों का स्वाध्याय क्यों नहीं कर रहे हो? भृगु बोला, स्वाध्याय क्या करूं अब उसके लिए कुछ शेष नहीं। वरुण को मालूम हो गया कि इसे कुछ नही मालूम है। उन्होने उसे बताया कि जो तुमने प्राची दिशा में लोगों को पर्वशः मानव शरीर का विभाजन करते हुए देखा, वे वनस्पतियां थीं। वनस्पतियों की समिधा बनाकर उन्हें अपने अधीन कर लेते हैं। दक्षिण दिशा में जिन्हें तुमने देखा वे पशु हैं। पय से हवन कर उन्हें अपने अधीन कर लेते हैं। पश्चिम में दिखाई पड़ने वाली औषधियाँ थीं। तृण के द्वारा अवज्योतन करके औषधियों को अपने अधीन कर लेते हैं। उत्तर की ओर दिखाई पड़ने वाली आयुः थी। वे बलपूर्वक लाकर उन्हें अपने उसर और दिखाई। अधीन कर लेते है। दिगन्तराल में कल्याणी श्रद्धा को रमाधीन कर लेता है।

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