यम-यमी की कथा

SOORAJ KRISHNA SHASTRI
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  "बहन!" यम अपनी सगी बहन की चंचलता देखकर चकित हुआ । उसके वक्षस्थल पर लगे आर्द्र अंगराज सहसा सूखने लगे, "हमारा तुम्हारा सखा सख्य का संबन्ध नहीं है। हम यमज हैं। माता के गर्भ में एक साथ रहे हैं। यद्यपि हमारी तुम्हारी योनि भिन्न है फिर भी तुम मेरे लिए अगम्या हो। हमें यह अभीष्ट नहीं है।"

  बहन की प्रगल्भता पर यम स्वयं लज्जित हो गया। उसकी दृष्टि बहम के कामोद्वेलित नेत्रों की तरफ नहीं उठ सकी । भूमि की ओर उसकी दृष्टि लगने लगी । यम अपनी बहन के अशोभनीय प्रस्ताव से कॉप उठा। धीरे से कहा "बहन देवताओं के गुप्त दूत सर्वदा उपस्थित रहते हैं। वे रात्रि-दिन पृथ्वी पर विचरण करते रहते हैं। उनके सर्वदर्शी नेत्र कभी बंद नहीं होते। रात्रि अथावा दिन उनके कार्य में बाधा नहीं डाल सकते। ओ नश्वर प्राणी तुम शीघ्रतापूर्वक किसी दूसरे से प्रणय कर, रथ के दो पहियों की तरह उसके साथ काम में सलग्न हो ।" "बहन वह युग आ गया है, जब बहन भाई का वरण नहीं करेगी। बहन उसका वरण करेगी, जो उसका भाई नहीं होगा। अतएव मेरे स्थान पर तुम किसी दूसरे को अपना पति वरण कर लो और अपने हाथ का सुखद तकिया अपने पति को लगा दो।" यमी खिन्न हो गयी और उसने अपने यमी भाई को उपालम्भ देती हुई बोली:

 "यम वह क्या कोई भाई है, जिसके रहते बहन का पति न मिले, वह बहन कैसी, जिसके पास दुर्भाग्य दोडता आता है, मैं काम वासना से अत्यन्त पीडित हूँ, मैं तुमसे सानुनय विनती करती हूँ। तुम अपना शरीर मेरे शरीर से मिला दो ।"

 "बहन " यम घृणापूर्वक कहा, " मैं तुम्हारे स्पर्श से दूर रहना चाहता हूँ। उन्हे पापी कहा जाएगा, जो अपनी बहन से संबन्ध करेंगे। तुम किसी दूसरे के साथ अपनी काम वासना की तृप्ति करो। मुझे इस काम सुख की इच्छा नहीं है।"

 कन्दर्प ज्वर पीडित यमी की भावना में ठेस लगी। काम- कोधित वह बोल पडी- " अहाे यम ! तुम दुर्बल हो। मै तुम्हारी बुद्धि और हृदय को नही समझ पा रही हूँ। कोई अन्य तन्वी अश्व के तंग अथवा वृक्ष की लता की तरह अपने आलिंगन में तुम्हे बाँधना चाहती है।"

"बहन " यम ने गम्भीर स्वर में कहा, अन्य व्यक्ति तुम्हारे आलिंगन का पात्र है। वह अन्य व्यक्ति वृक्ष लता की तरह तुम्हारा आलिंगन करेगा। उसका प्रणय प्राप्त करोगी वह तुम्हारा प्रणय प्राप्त करेगा और तुम्हारा वर मिलन आनन्दमय हो।" 

 यम ने बहन को आशीर्वाद दिया। आशीर्वाद की पवित्र औषधि में, जैसे यमी का काम ज्वर शान्त होने लगा। यम अग्नि है, पृथ्वी यमी है। यम अग्नि- यमी पृथ्वी के सुगन्धि नष्ट करने का साधन नही बन सका ।

नोट- 'सुदूर पूर्व काल में आर्य लोग यमुना के तट से मिन को नील नदी और कैस्पियन अर्थात कश्यप सागर तक फैले थे वहाँ के निवासी आज भी आर्यों की सन्तान हैं, परन्तु देश तथा परिस्थितियों के अनुसार रीति-रिवाज तथा विचारों में अन्तर पडता गया। एक ही स्रोत से अनेक शाखा प्रशाखाएं निकली। मिस्र के लोग आर्यों के समान सूर्योपासक थे वहाँ सगे भाई-बहन का विवाह उत्तम समझा जाता था। मिश्र के राजा फराहे का विवाह अपनी बहन के साथ के साथ सनातन काल से होता रहा है। यमज भाई बहन का विवाह औ उत्तम माना जाता था। यहां सगे भाई बहन के विवाह की प्रथा को वर्जित किया गया है। मुसलमानों मे दूध बचाकर विवाह करने की प्रथा आज भी प्रचलित है। ऋग्वेद में इस प्रकार के विवाह को अमान्य माना है इस कहानी की यही कथावस्तु है। यम-यम का अर्थ युगल किया जुड़वा शिशुओं का होता है। भिन्न लिंग के जुड़वा शिशु को यमौ मिथुनी कहा गया है। मृत्यु के देवता है। पिता सूर्य तथा माता सरव्यू थी। प्रथम मर्त्य प्राणी यम है यमी यम की जुड़वा बहन है।

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