दर्शपौर्णमास : उद्दालक और स्वैदायन शौनक संवाद |
यज्ञ दो प्रकार का होता है एक याकृत यज्ञ जो प्रकृति मे निरन्तर चलता रहता है। और दूसरा अनुष्ठेय, जो ब्राह्मणों द्वारा अनुष्ठीयमान है। इन दोनों का परस्पर घनिष्ठ संबंध है। प्रथम शाश्वत सत्य है, और दूसरा प्रथम का रूपात्मक अभिनय । इन दोनों की पारस्परिक घनिष्ठता विषयक एक कथा है।
कुरूपाचाल देश से अरूण के पुत्र उद्दालक किसी यज्ञ में भाग लेने के लिए उदीच्य देश में बुलाये गये। उद्दालक के सामने निष्क नामक सिक्का रखा गया जिसे यज्ञ भेंट किया जाता था। उदीच्य देश के ब्राह्मणों ने विचार किया। यह कुरूपाचाल देशका विद्वान स्वयं ब्रह्मा और ब्रह्मा का पुत्र है। यदि वह अपनी दक्षिणा में से आधा द्रव्य हमें न दे तो क्या हम इसे बाद के बुला सकते हैं? अन्ततः निश्चित हुआ कि स्वैदायन को बाद में पंडित बनाकर उधालक से शास्त्र चर्चा करें। स्वैदायन से उन लोगों ने प्रार्थना की और स्वैदायन ने उन्हें आश्वासन भी दिया और कहा कि पहले मैं इसकी विद्वता का पता लगा लू। इतना कहकर स्वैदायन मण्डप की ओर गये। परस्पर परिचय के अनन्तर स्वैदायन ने प्रश्न करना आरम्भ किया ।
१- गौतम पुत्र वही पुरुष यज्ञ में ऋत्विक बनकर दूर देश में जा सकता है, जो दर्शपौर्णमास के ८ पूर्व के आज्य भाग, पांच मध्य के हविर्भाग, छ प्रजापति देवता के भाग और आठ अन्त के आज्य भाग जानता हो ।
२ - गौतम पुत्र वही पुरूष यज्ञ में ऋत्विक् होने का अधिकारी है जो दर्शपौर्णमास के उस कर्म को जानता है, जिसके कारण प्रजायें दन्त-विहीन उत्पन्न होती हैं, जिसके कारण बाद में दांत निकलते हैं, जिसके कारण फिर गिर जाते हैं और जिसके कारण दूसरी बार फिर निकलते हैं। ये दांत पहले नीचे क्यों निकलते हैं, ऊपर बाद में क्यों निकलते हैं, क्यों नीचे के छोटे और ऊपर के बड़े होते हैं, दाढे क्यों फैली हुईं किन्तु जबडे समान होते हैं।
३- गौतम पुत्र वही पुरूष यज्ञ मे ऋत्विक होने का अधिकारी है जो दर्शपौर्णमास की उस प्रक्रिया को जानता है, जिसमे सब प्रजायें लोमश होती हैं, जिससे आगे चलकर श्मश्रु भी निकलते हैं। जिस कारण से पहले शिर के केश श्वेत होते हैं और अन्त में सब बाल पक जाते हैं।
४ - हे गौतम पुत्र! वही व्यक्ति यज्ञ में ऋत्विक होने का अधिकारी है जो दर्शपौर्णमास की उस क्रिया को जानता है जिसके कारण कुमार मे सैचन शक्ति नहीं होती। युवावस्था में यह वीर्य सेचन शक्ति आजाती है तथा अन्तिम अवस्था में वह फिर समाप्त हो जाती है।
५- यज्ञ में ऋत्विक् होने का अधिकारी वही हो सकता है जो यजमान को स्वर्ग तक ले जाने वाली ज्योतिष्पक्षा हरिणी गायत्री को जानता है ।
उद्दालक ने प्रश्न सुनते अपना निष्क स्वंदायन के सामने रखते हुए कहा, स्वैदायन तुम सचमुच अनूचान हो। सुवर्ण, सुवर्ण का ज्ञान रखने वाले को ही मिलना चाहिये। इस पर स्वैदायन उद्दालक से गले मिलकर यज्ञ भूमि चले गये। ब्राह्मणों ने पूछा, स्वैदायन गौतम का पुत्र कैसा है? उसे देखा । स्वैदायन ने उत्तर दिया, जैसा ब्रह्मा का पुत्र और ब्रह्मा होना चाहिये, वैसा ही उद्दालक है। इसके सामने जो खडा होगा, उसका सिर अवश्य झुक जायेगा । ब्राह्मण लोग निराश होकर घर चले गये। थोडी देर बाद उद्दालक समित्पाणि होकर स्वैदायन के समीप पहुंचे और बोले, भगवन्! मैं आपका शिष्य बनने आया हूं। स्वैदायन ने पूछा, आप मुझसे किस विषय का अध्ययन करना चाहते हो? उद्दालक ने कहा, जो प्रश्न आपने किये थे उन्हीं का उत्तर जानना चाहता हूं। स्वैदायन ने उत्तर देना आरम्भ किया-
१- दो आधार, पंचप्रयाज, एक आग्नेय आज्यभाग- ये दर्शपौर्णमास के आठ आज्य भाग हैं। सोमीय तथा आग्नेय आज्य भाग, पुरोडाश, रिवष्टकृत् तथा अग्नि की आहुति - ये पांच भाग मध्य के हविर्भाग हैं। प्राशित्र, इडा, आग्नीध्र, आधान, ब्रह्म भाग यजमान भाग, अन्वहार्य ये प्रजापति देवता के लिए हैं। तीन अनुयाज, चार पत्नी संयाज और समिष्टयजुः ये आठ अन्त के आज्य भाग हैं।
२– प्रयाजों मे पुरोनुवाक्या न होने से प्रजायें दॉतरहित होती हैं। हवि में पुरोनुबाक्या होने से उनके दांत निकल आते हैं। अनुयाजों में पुनः पुरोनुवाक्या न होने से उनके दांत गिर जाते हैं। पत्नी संयाज मे पुरोनुवाक्या होने से दांत फिर से उग आते हैं। अन्ततः समिष्टयजुः में पुरोनुवाक्या न होने से वृद्धावस्था में दांत गिर जाते हैं। अनुवाक्या - पाठ के पश्चात् याज्या-पाठ होता है। अतएव पहले नीचे के और बाद में ऊपर के दांत निकलते हैं। अनुवाक्या 'गायत्री है याज्या त्रिष्टप । त्रिष्टुप् से गायत्री छोटी होती है, इसलिए नीचे के दांत ऊपर के दांत से छोटे होते हैं। सबसे पहले आघार किया जाता है, इससे दाढें फैली हुई होती हैं। संयाज प्रयुक्त छन्द समान होते हैं। इस कारण जबड़े समान होते हैं।
३- क्योंकि यज्ञ में कुशाओ का आस्तरण किया जाता है, इसी कारण सारी प्रजा लोमयुक्त पैदा होती है। कुशनुष्टि कापुन आस्तरण होता है। इससे श्मश्रु निकल आती है । केवल कुशमुष्टिका आहरण किया जाता है, इस कारण शिर के बाल पहले पक जाते हैं। अन्त में सारी कुशाओं का प्रहरण किया जाता है, इसलिए बाद मे वृद्धावस्था में सारे केश श्वेत होते हैं।
४- प्रयाजों में आज्य द्रव्य होने से कुमार में वीर्य संचन शक्ति नहीं रहती। प्रधान याग मे कठोर द्रव्य पुरोडाश एव दधि होने से युवावस्था में सेंचन शक्ति का संचार होता है। अनुयाज में पुनः आज्यद्रव्य प्रयुक्त होता है अतएव वृद्धावस्था मे वह शक्ति क्षीण हो जाती है ।
५- यज्ञ की वेदी ही गायत्री है। पूर्व के आठ आज्य भाग उसके दक्षिण पक्ष हैं। अन्त के आठ आज्य भाग उसके वामपक्ष हैं। यही तेजोमय पक्ष वाली गायत्री यजमान को स्वर्ग ले जाती है। यह सुनकर उधालक सन्तुष्ट हो गये।
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